(31.) आज़ादी पाई कहाँ

१. पूरा नाम : महावीर उत्तरांचली
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।
आज़ादी पाई कहाँ, देश बना अँगरेज़
क्यों न रंग देशी चढ़े, रो रहे रंगरेज़
रो रहे रंगरेज़, न पूछे बाबू कोई
निज भाषा बिन ज्ञान, व्यर्थ में दुर्गति होई
महावीर कविराय, चार सू है बरबादी
भाषा का अपमान, मिली कैसी आज़ादी
(32.) बात न कोई मानता
बात न कोई मानता, झूठ झाड़ते लोग
बेशर्मी से रात-दिन, दाँत फाड़ते लोग
दाँत फाड़ते लोग, कष्ट देके खुश रहते
इन लोगों को यार, बोझ धरती का कहते
महावीर कविराय, रूह भी इनकी सोई
भले कहो तुम लाख, मानता बात न कोई
(33.) राजनीति में आ गई
राजनीति में आ गई, महावीर अब खोट
नोट की चोट पे सभी, माँग रहे हैं वोट
माँग रहे हैं वोट, गिरी सबकी खुद्दारी
व्यवस्था हुई भ्रष्ट, दादागिरी है सारी
महावीर कविराय, गिरावट अर्थनीति में
गलत चयन आधार, खोट यूँ राजनीति में
(34.) खेतों में ज्यों आप ही
खेतों में ज्यों आप ही, फैली खरपतवार
इस धरा में ग़रीब यूँ, मिलते हैं सरकार
मिलते हैं सरकार, कहूँ क्या किस्मत खोटी
मुश्किल से दो जून, मिले ग़रीब को रोटी
महावीर कविराय, मिली हमें यह देह क्यों
हम हैं खरपतवार, उगे खुद खेतों में ज्यों
(35.) गल रही ओजोन परत
गल रही ओजोन परत, प्रगति बनी अभिशाप
वक्त अभी है चेतिए, पछतायेंगे आप
पछतायेंगे आप, साँस घुट्टी जाएगी
पृथ्वी होगी नष्ट, जान क्या रह पाएगी
महावीर कविराय, समय पर जाओ संभल
कीजै कुछ उपचार, ओजोन परत रही गल
2 टिप्पणियाँ
आज़ादी पाई कहाँ, देश बना अँगरेज़
जवाब देंहटाएंक्यों न रंग देशी चढ़े, रो रहे रंगरेज़
रो रहे रंगरेज़, न पूछे बाबू कोई
निज भाषा बिन ज्ञान, व्यर्थ में दुर्गति होई
महावीर कविराय, चार सू है बरबादी
भाषा का अपमान, मिली कैसी आज़ादी
सही बात है...अच्छी कुडलियां
अभी तो सभल जाओ...
जवाब देंहटाएंगल रही ओजोन परत, प्रगति बनी अभिशाप
वक्त अभी है चेतिए, पछतायेंगे आप
पछतायेंगे आप, साँस घुट्टी जाएगी
पृथ्वी होगी नष्ट, जान क्या रह पाएगी
महावीर कविराय, समय पर जाओ संभल
कीजै कुछ उपचार, ओजोन परत रही गल
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