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रंग मेरे साथ होली खेल रहे थे [कविता]- प्रदीप मिश्र

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गुलाब से चुराया गुलाबी रंग

 प्रदीप मिश्र
रचनाकार परिचय:-



जन्म - १ मार्च १९७०, गोरखपुर, उ. प्र. । विद्युत अभियन्त्रण में उपाधि, हिन्दी तथा ज्योतिर्विज्ञान में स्नात्कोत्तर। साहित्यिक पत्रिका भोर सृजन संवाद का अरूण आदित्य के साथ संपादन। कविता संग्रह “फिर कभी” (1995) तथा “उम्मीद” (2015), वैज्ञानिक उपन्यास “अन्तरिक्ष नगर” (2001) तथा बाल उपन्यास “मुट्ठी में किस्मत” (2009) प्रकाशित। साहित्यिक पत्रिकाओं, सामाचारपत्रों, आकाशवाणी, ज्ञानवाणी और दूरदर्शन से रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण । म.प्र साहित्य अकादमी का जहूर बक्स पुरस्कार, श्यामव्यास सम्मान, हिन्दी गरिमा सम्मान तथा कुछ अन्य सम्मान । अखबारों में पत्रकारिता । फिलहाल परमाणु ऊर्जा विभाग के राजा रामान्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, इन्दौर में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत। संपर्क - प्रदीप मिश्र, दिव्याँश ७२ए, सुदर्शन नगर, अन्नपूर्णा रोड, डाक : सुदामानगर, इन्दौर - ४५२००९, म.प्र.। मो.न. : +९१९४२५३१४१२६, दूरभाष : ०९१-७३१-२४८५३२७, ईमेल – mishra508@gmail.com.

टेशू से हथियाया केशरिया
घास से हरा रंग लिया उधार
नीला पछाडख़ाते समुद्र ने दिया उपहार
उगते हुए सूर्य ने मुस्कराकर
दिया लाल रंग
और मैंने इनको मिलाकर कर बनायी
अपनी रंगीन दुनिया
जिसमें तुम थी
मैं था और हमारा प्रेम

प्रेम था हमारे बीच
इसलिए उमंग थी
उमंग थी
इसलिए फागुन था
फागुन था इसलिए तरंग
तरंग में झूमते हुए
मुट्ठी में रंग लिए जब पहली बार
तुम्हारे कऱीब पहुँचा
देखा नीला रंग पछाड़ खा रहा था
तुम्हारी आँखों में
तुम्हारे गुलाबी गालों को छूते ही
झरने लगा गुलाब
मांग में उग आया सूर्ख़ लाल सूरज
पूरे बदन पर ख़िल गए टेशू के फूल
नदी अंगड़ाई लेने लगी तुम्हारी रगों में
पसर गया हरा रंग तुम्हारे सपनों में
मेरे जीवन के सारे रंग उमगने लगे
तुम्हारे अंगों में

मैं फ़सलों की तरह लहलहाते हुए
कह रहा था बुरा न मानो होली है

मेरा पोर-पोर रंग से सराबोर था
रंग मेरे साथ होली खेल रहे थे।

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9 टिप्पणियाँ

  1. प्रेम था हमारे बीच
    इसलिए उमंग थी
    उमंग थी
    इसलिए फागुन था

    क्या बात है...फागुन की बहुत बहुत बधाई...

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    उत्तर
    1. रमेश कुमार जी आपने कविता को पसंद किया। यह मेरे लिए उत्साहवर्धक है। पुनः धन्यवाद एवं रंगपर्व पर आप सबके जीवन में हसीन और शुभ रंगों की आमद की कामना के साथ - प्रदीप मिश्र

      हटाएं
  2. बहरीन कविता। होली के रंगों से श्रंगार रस का खूबसूरत वर्णन। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहरीन कविता। होली के रंगों से श्रंगार रस का खूबसूरत वर्णन। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने कविता पढ़कर प्रतिक्रिया दी इस उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद एवं रंगपर्व पर आप सबके जीवन में हसीन और शुभ रंगों की आमद की कामना के साथ - प्रदीप मिश्र

      हटाएं
  4. प्रदीप जी,
    बहुत अच्छी कविता...बधाई

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने कविता पढ़कर प्रतिक्रिया दी इस उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद एवं रंगपर्व पर आप सबके जीवन में हसीन और शुभ रंगों की आमद की कामना के साथ - प्रदीप मिश्र

      हटाएं
  5. मेरा पोर-पोर रंग से सराबोर था
    रंग मेरे साथ होली खेल रहे थे।
    भाई प्रदीप जी, कविता पसंद आई .... मेरी हार्दिक बधाई .
    रावेल पुष्प
    कोलकाता,

    जवाब देंहटाएं
  6. आपने कविता पढ़कर प्रतिक्रिया दी इस उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद एवं रंगपर्व पर आप सबके जीवन में हसीन और शुभ रंगों की आमद की कामना के साथ - प्रदीप मिश्र

    जवाब देंहटाएं

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