नयन नीले, वसन पीले,
चाहता मन और जी ले।
चाहता मन और जी ले।

नामः आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)
जन्मः 01-07-1949
बचपन एवं शिक्षाः शिकोहाबाद
अध्यापनः अहमदाबाद (गुजरात)
सम्प्रतिः स्वतंत्र लेखन (नई दिल्ली)
कविता-संग्रहः मिटने वाली रात नहीं (डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित, 2012)
उपन्यासः देवम बाल-उपन्यास (डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित, 2012)
उपन्यासः पर-कटी पाखी बाल-उपन्यास (डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित, 2014)
उपन्यासः बहादुर बेटी (बाल-उपन्यास) (उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ 2015)
बाल-कविताएं- मेरे पापा सबसे अच्छे (उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ 2015)
समाज की बौनी मान्यताओं, जहरीले अंधविश्वास और आज के वेदना एवं मुश्किलों के बोझ से पिघलते जीवन के प्रति विद्रोही स्वर।
पताः
आनन्द विश्वास
सी/85 ईस्ट एण्ड एपार्टमेन्टस्
न्यू अशोक नगर मैट्रो स्टेशन के पास
मयूर विहार फेज़-1 (एक्सटेंसन)
नई दिल्ली- 110096
मोः 9898529244, 7042859040
Email: anandvishvas@gmail.com.
जन्मः 01-07-1949
बचपन एवं शिक्षाः शिकोहाबाद
अध्यापनः अहमदाबाद (गुजरात)
सम्प्रतिः स्वतंत्र लेखन (नई दिल्ली)
कविता-संग्रहः मिटने वाली रात नहीं (डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित, 2012)
उपन्यासः देवम बाल-उपन्यास (डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित, 2012)
उपन्यासः पर-कटी पाखी बाल-उपन्यास (डायमंड बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित, 2014)
उपन्यासः बहादुर बेटी (बाल-उपन्यास) (उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ 2015)
बाल-कविताएं- मेरे पापा सबसे अच्छे (उत्कर्ष प्रकाशन मेरठ 2015)
समाज की बौनी मान्यताओं, जहरीले अंधविश्वास और आज के वेदना एवं मुश्किलों के बोझ से पिघलते जीवन के प्रति विद्रोही स्वर।
पताः
आनन्द विश्वास
सी/85 ईस्ट एण्ड एपार्टमेन्टस्
न्यू अशोक नगर मैट्रो स्टेशन के पास
मयूर विहार फेज़-1 (एक्सटेंसन)
नई दिल्ली- 110096
मोः 9898529244, 7042859040
Email: anandvishvas@gmail.com.
छू हृदय का तार तुमने,
प्राण में भर प्यार तुमने।
और अंतस में समा कर,
मन किया उजियार तुमने।
चाह होती नेह भीगी,
पावसी जलधार पीले।
चंद्र मुख, औ चाँदनी तन,
और निर्मल दूध सा मन।
गंध चम्पई घोलते हैं,
झील जैसे कमल लोचन।
रूप अँटता कब नयन में,
हारते लोचन लजीले।
पी नयन का मेह खारा,
और फिर भर नेह सारा।
एक उजड़े से चमन को,
नेह से तुमने सँवारा।
हो गया मन क्यूँ हरा है,
देख कर ये नयन नीले।
और झीनी गन्ध देकर,
प्यार की सौगन्ध देकर।
स्नेह लिप्ता उर कमल का,
पावसी मकरंद देकर।
कौन सा यह मंत्र फूँका,
हो गए नयना हठीले।
नयन नीले, वसन पीले।
चाहता मन और जी ले।
आनन्द विश्वास
*****
5 टिप्पणियाँ
पी नयन का मेह खारा,
जवाब देंहटाएंऔर फिर भर नेह सारा।
एक उजड़े से चमन को,
नेह से तुमने सँवारा।...
होली मुबारक...आनंद जी...क्या बात है
बहुत सुन्दर कविता आनंद जी...आनन्द आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता आनंद जी...आनन्द आ गया
जवाब देंहटाएंसाहित्य-शिल्पी के सभी साहित्य साधकों को मेरा नमन।
जवाब देंहटाएंयहाँ पहुँचकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।
बहुत-बहुत आभार।
....आनन्द विश्वास
बहुत अच्छी कविता...बधाई हो आनंद जी...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.