
कांकेर (उत्तर बस्तर) में नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी), नई दिल्ली द्वारा आयोजित बस्तर की भाषा बोलियों पर विमर्श और आठ पुस्तको के विमोचन कार्यक्रम (20.03.2016) में मैं मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुआ था। यह एक नितांत आवश्यक कार्यक्रम था और ऐसा कार्य बस्तर की भाषा-बोलियों के संरक्षण संवर्धन के लिये आवश्यक भी। बस्तर की भाषा बोलियों पर तथा मौखिक साहित्य के संग्रहण पर कतिपय काम हुए हैं, इन सभी को चाहे वह लाला जगदलपुरी का कार्य हो, हरिहर वैष्णव जी का कार्य हो, रामसिंह ठाकुर जी का कार्य हो, दादा जोकाल का कार्य हो अथवा ऐसे ही समर्पित किसी साहित्यकार का, उसे व्यक्तिगत साधना निरूपित किया जा सकता है। संगठित रूप से बस्तर की भाषा-बोलियों पर काम करने की बडी आवश्यकता महसूस की जाती रही है, विशेषरूप से यहाँ के बच्चों के लिये उनके साहित्य की रचना और उसका प्रकाशन। मैने यहाँ दिये अपने वक्तव्य में उद्धरित किया कि वर्ष 1950 को जगदलपुर में हुए मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की बैठक में महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव ने कहा था – “सब अध्यापकों को स्थानीय भाषा का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिये जिससे जब विद्यार्थियों को हिन्दी पढ़ने में कठिनाई होगी तो वह आसानी से दूर की जा सकेगी।....। हिन्दी में पढ़ाने के लिये हमारी प्रारंभिक पाठ्य पुस्तकें बेकार हैं, इनमें हमें चित्रों की भी आवश्यकता है। प्रत्येक अक्षर को एक जानवर की तस्वीर लगा कर समझाया जाये और उस जानवर का नाम हिन्दी, हल्बी और गोंडी में लिखा जाये।“ यह अवस्थिति आज भी बनी हुई है और हमने अपने वनांचल में बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के लिये भी समुचित पुस्तकें तैयार नहीं की हैं।
यह प्रसन्नता की बात है कि पहली बार हलबी, भतरी और गोंडी भाषाओं में बच्चों के लिये पुस्तक लेखन का कार्य हुआ। एक भाषा-बोली की बालकथा का दूसरी भाषा-बोली में अनुवाद और उनका आंचलिक कलाकारों द्वारा चित्र के माध्यम से प्रस्तुतिकरण भी, यह एक अनुपम प्रस्तुति है और बहुत समय बात बस्तर में इस स्तर का महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। पुस्तकों में चेन्द्रू आरू बाग़ पिला (शिव कुमार पाण्डेय), बालमतिर भँईस (सोनिका कवि), जाने कियानाँद अपूना मीत तून (उग्रेश चन्द्र मरकाम), सरगी-रूख (यशवंत गौतम), अमुस तिहार (पीताम्बर दास वैष्णव), नना मुया (जयमति कश्यप), बस्तर चो तिहार (महेश पाण्डे), टेंडका आऊरी मेंडाक (डॉ. रूपेन्द्र कवि) विमोचित की गयीं जिनके अनुवादक अनुवादक:- नन्दिता वैष्णव, उग्रेश चन्द्र मरकाम, नरपति राम पटेल तथा चित्रकार खेम वैष्णव, राजेन्द्र राव राउत, सरला यादव, लतिका वैष्णव, रागिनी वैष्णव, सुरेन्द्र कुलदीप, अशोक कुमार ठाकुर आदि का श्रम उल्लेखनीय है। कार्यशालायें आयोजित कर इन पुस्तकों को तैयार किया गया है। इसमें संलग्न सभी लेखकों, अनुवादकों, कलाकारो को बधाई दी जानी चाहिये। इस कार्य को आगे बढाने व इसकी संकल्पना के लिये एनबीटी के सम्पादक पंकज चतुर्वेदी जी का भी धन्यवाद किया जाना चाहिये और उनसे यह भी अपेक्षा है कि यहीं पूर्णविराम न हो। मैं इन सभी पुस्तकों पर अलग से भी आलेख लिखूंगा जिससे प्रत्येक लेखक, अनुवादक और चित्रकार के महत्वपूर्ण योगदान पर विमर्श हो। सभी को हार्दिक हार्दिक बधाई।
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1 टिप्पणियाँ
पुरी टीम को हार्दिक बधाई।।। आशा है ,,महादेवी वमा जी के जन्मदिवस पर यह आपका अच्छा पोस्ट,, बस्तर के भाषा बोली के साहित्यका विकास के संकेतक हो।।
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