लिए हाथ में बड़े कटोरे,
अम्मा कहती कोई भिखारी
खाली हाथ न जाने पाये
जो भी अपने द्वारे आये
कुछ न कुछ लेकर ही जाये|
अम्मा कहती कोई भिखारी
खाली हाथ न जाने पाये
जो भी अपने द्वारे आये
कुछ न कुछ लेकर ही जाये|

श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव का जन्म- 4 अगस्त 1944 को धरमपुरा दमोह (म.प्र.) में हुआ। वैद्युत यांत्रिकी में पत्रोपाधि प्राप्त प्रभुदयाल जी विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी, कवितायें, व्यंग्य, लघु कथाएं, लेख, बुंदेली लोकगीत, बुंदेली लघु कथाएं, बुंदेली गज़ल आदि के लेखन में सक्रिय हैं।
आपकी कृतियां ’दूसरी लाइन’ [व्यंग्य संग्रह], ’बचपन गीत सुनाता चल’ [बाल गीत संग्रह] और ’बचपन छलके छल छल छल’ [बाल गीत संग्रह] प्रकाशित हो चुके हैं।
आपको राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भारती रत्न "एवं "भारती भूषण सम्मान", श्"रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान" वैदिक क्रांति देहरादून द्वारा एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा "लाइफ एचीवमेंट एवार्ड", भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा "हिंदी सेवी सम्मान", शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम होशंगाबाद द्वारा "व्यंग्य वैभव सम्मान", युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा "काव्य सम्मान" से सम्मानित किया गया है।
आपकी कृतियां ’दूसरी लाइन’ [व्यंग्य संग्रह], ’बचपन गीत सुनाता चल’ [बाल गीत संग्रह] और ’बचपन छलके छल छल छल’ [बाल गीत संग्रह] प्रकाशित हो चुके हैं।
आपको राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भारती रत्न "एवं "भारती भूषण सम्मान", श्"रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान" वैदिक क्रांति देहरादून द्वारा एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा "लाइफ एचीवमेंट एवार्ड", भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा "हिंदी सेवी सम्मान", शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम होशंगाबाद द्वारा "व्यंग्य वैभव सम्मान", युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा "काव्य सम्मान" से सम्मानित किया गया है।
जितना ज्यादा पुण्य करोगे
ईश्वर उतना फल देगा
यही बात मेरी प्रिय अम्मा
सब लोगों को समझाये|
देने वाले तो होते हैं
ऊंचे लेने वालों से
देने वाले धन्य हुये
कि लेने वाले घर आये|
जितना दोगे उससे ज्यादा
मालिक वापस कर देगा
सदियों से जेठे स्याने सब
यही बात कहते आये|
किन्तु आजकल भीख मांगनॆ
चोर लुटेरे आते हैं
ऐसा न हो कोई लुटेरा
तुम्हें लुटकर ले जायॆ|
इस कारण बच्चो तुमको
हरदम सतर्क रहना होगा
कोई चोर लुटेरा डाकू
तुमको न ठगने पाये|
2 टिप्पणियाँ
हमे भी बडे बुढों ने यही सिखाया है..अच्छी कविता...
जवाब देंहटाएंआदरणीय प्रभुदयाल जी की बाल कविताए लाजबाब होती है...बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.