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होली गीत [ गीत] - कुलवंत सिंह



होली गीत


 1होली के रंग

रंग होली के कितने निराले,
आओ सबको अपना बना लें,
भर पिचकारी सब पर डालें,
पी को अपने गले लगा लें ।

रक्तिम कपोल आभा से दमकें,
कजरारे नैना शोखी से चमकें,
अधर गुलाबी कंपित दहकें,
पलकें गिरगिर उठ उठ चहकें ।

पीत अंगरिया भिगी झीनी,
सुध बुध गोरी ने खो दीनी,
धानी चुनर सांवरिया छीनी,
मादकता अंग अंग भर दीनी ।

हरे रंग से धरा है निखरी,
श्याम वर्ण ले छायी बदरी,
छन कर आती धूप सुनहरी,
रंग रंग की खुशियां बिखरीं ।

नीला नीला है आसमान,
खुशियों से बहक रहा जहान,
मस्ती से चहक रहा इंसान,
होली भर दे सबमें जान ।



2.  किससे खेलूं होली रे !

       पी हैं बसे परदेश,
       मै किससे खेलूं होली रे !
       रंग हैं चोखे पास
      पास नही हमजोली रे !
       पी हैं बसे परदेश,
      मै किससे खेलूं होली रे !
                                                                                                                               
देवर ने लगाया गुलाल
मै बन गई भोली रे !
 पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
                               
ननद ने मारी पिचकारी,
भीगी मेरी चोली रे !
 पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
जेठानी ने पिलाई भांग,
कभी हंसी कभी रो दी रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
 सास नही थी कुछ कम,
 की उसने खूब ठिठोली रे !
  पी हैं बसे परदेश,
 मै किससे खेलूं होली रे !
देवरानी ने की जो चुहल
 अंगिया मेरी खोली रे !
 पी हैं बसे परदेश,
 मै किससे खेलूं होली रे !
  बेसुध हो मै भंग में
नन्दोई को पी बोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !

3.  होली का त्यौहार

होली का त्यौहार ।
रंगों का उपहार ।

प्रकृति खिली है खूब ।
नरम नरम है दूब ।

भांत भांत के रूप।
भली लगे है धूप ।

गुझिया औ मिष्ठान ।
खूब बने पकवान ।

भूल गये सब बैर ।
अपने लगते गैर ।

पिचकारी की धार ।
पानी भर कर मार ।

रंगों की बौछार ।
मस्ती भरी फुहार ।

मीत बने हैं आज
खोल रहे हैं राज ।

नीला पीला लाल ।
चेहरों पे गुलाल ।

खूब छनी है भांग ।
बड़ों बड़ों का स्वांग ।

मस्ती से सब चूर ।
उछल कूद भरपूर ।

आज एक पहचान ।
रंगा रंग इनसान ।

4.  होली आई

हम बच्चों की मस्ती आई
होली आई होली आई ।
झूमें नाचें मौज करं सब
होली आई होली आई ।

रंग रंग में रंगे हैं सब
सबने एक पहचान पाई ।
भूल गए सब खुद को आज
होली आई होली आई ।

अबीर गुलाल उड़ा उड़ा कर
ढ़ोल बजाती टोली आई ।
अब अपने ही लगते आज
होली आई होली आई ।

दही बड़ा औ चाट पकोड़ी
खूब दबा कर हमने खाई ।
रसगुल्ले गुझिया मालपुए
होली आई होली आई ।

लाल हरा और नीला पीला
है रंगों की बहार आई ।
फागुन में रंगीनी छाई
होली आई होली आई ।

कवि कुलवंत सिंह

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2 टिप्पणियाँ

  1. लाल हरा और नीला पीला
    है रंगों की बहार आई ।
    फागुन में रंगीनी छाई
    होली आई होली आई ।



    होली है..............................................

    जवाब देंहटाएं
  2. होली आई ...होली आई...होली आई रे.....
    बहुत अच्छी कविता...कवि कुलवंत जी को काफी दिनो बाद पढ कर अच्छा लगा...
    साहित्य शिल्पी को बधाई

    जवाब देंहटाएं

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