दादाजी से आठ-दश-वर्षीय पोती बोली, “दादाजी, रामायण की कथा सुनाते समय दादी ने मुझे बताया कि राम, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे । एक बार ऋषि विश्वामित्र राजा के पास पहुंचे और राजा से बोले कि राजकुमार राम तथा लक्ष्मण को मैं अपने साथ वन को ले जाता हूं, ताकि वे दोनों मेरे आश्रम की रक्षा करें और राक्षसों को मार डालें । दादी ने यह भी कहा कि बाद में वनवास के समय भी श्रीराम-लक्ष्मण ने राक्षसों को मार डाला था ।
पूरा नाम - योगेन्द्र प्रसाद जोशी
जन्मतिथि - 2 जनवरी 1948
जन्मस्थान - उत्तराखंड राज्य, बागेश्वर जिला, भेटा गांव
शैक्षणिक योग्यता - इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.एससी., पी.एचडी. (भौतिकी)
व्यावसायिक जीवनवृत्त - भौतिकी (फिज़िक्स) विषय में शिक्षण-सह-शोधकार्य; 1971-72 में लगभग 1 वर्ष इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कार्यरत; तत्प्श्चात्1972 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) में नियुक्ति; 2004 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। शैक्षिक जीवन-काल के दौरान शोधकार्य हेतु इंग्लैंड (साउथहैम्टन) में दो वर्ष (1983-1985) का प्रवास। उच्चाध्ययन हेतु 1986 में त्रिएस्ते (ट्रिएस्ट), इटली, में प्रायः एक माह का प्रवास। शैक्षिक कार्यकाल में भौतिकी में शोधपत्र लेखन एवं तत्संबंधित कंप्यूटर-विषयक पुस्तक लेखन, अधिकांशतः अंगरेजी में। इन्हीं विषयों पर हिन्दी एवं अंगरेजी में लेख। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद विविध विषयों का स्वाध्ययन। रुचि के विषय : धर्म, दर्शन, नीति आदि, पर्यावरण-प्रदूषण, एवं हिन्दी/भारतीय भाषाओं की दशा। संस्कृत भाषा में विशेष रुचि। स्वांत-सुखाय कहानियां लिखी हैं लेकिन प्रकाशित नहीं कीं। उक्त विषयों को लेकर ब्लॉग लेखन। संप्रति 5 ब्लॉग :
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इसके अतिरिक्त फ़ेसबुक, ट्विटर एवं गूगल-प्लस पर भी उपलब्ध। स्वाध्ययन के अतिरिक्त देशाटन/पर्यटन में रुचि।
“जब दादी से मैंने पूछा कि राक्षस क्या होते थे, कैसे होते थे, क्या वे बाघ-भालू की तरह कोई जानवर होते थे कि काटने दौड़ते थे और आश्रम में तोड़फोड़ मचाते थे ? तब उन्होंने कहा कि वे आदमी की तरह ही दो-दो हाथ-पांव, आंख-कान वाले काले-कलूटे जीवधारी होते थे, लेकिन देखने में डरावने होते थे । उनका शरीर भारी-भरकम होता था और वे बहुत ताकतबर होते थे । उनके सिर पर जानवरों की तरह सींग होते थे । बाल उलझे और बिखरे रहते थे । नाखून बड़े-बड़े होते थे और मुंह में कुत्तों की तरह के नुकीले और लंबे-लंबे दांत होते थे । वे देखने में भद्दे और भयंकर लगते थे । वे जंगलों में अधिक रहते थे और कभी-कभी मनुष्यों के बीच भी आ जाते थे । ...”
“और क्या-क्या बताया तुम्हारी दादी ने राक्षसों के बारे में ?” दादाजी ने बीच में रोकते हुए पूछा ।
“उन्होंने यह भी कहा कि वे लूटपाट करते थे, लोगों को किसी न किसी बहाने तंग करते थे । लोगों का सामान छीनकर अपने पास रख लेते थे या उसे बरबाद कर डालते थे । आम मनुष्यों के काम में अड़ंगा डालने में उन्हें मजा आता था । वे जादू-टोना करके मनुष्यों को धोखा देना भी जानते थे । जो उनकी बात नहीं मानता था उसको वे मार भी डालते थे । बड़े ही खराब होते थे वे राक्षस, इसीलिए श्रीराम-लक्ष्मण ने उन सबको मार डाला ।”
“क्या तुमने दादी से यह नहीं पूछा कि वे अब दुनिया में नहीं रहे क्या ?” दादाजी ने मुस्कराते हुए फिर सवाल किया ।
“पूछा था दादाजी, मैंने पूछा था । दादी ने कहा कि सभी राक्षस मारे गए और वे अब धरती पर नहीं रह गए ।”
“अच्छा ! तुम यह बताओ कि इतना सब तुम मुझे क्यों बता रही हो ?”
“मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि क्या अब राक्षस सचमुच में नहीं होते हैं ?”
“दादी ने जो बताया उस पर शक है क्या तुम्हें ?”
“आपको ज्यादा मालूम होगा क्योंकि आप पढ़ते-लिखते रहते हैं और शहर से बाहर कई जगह भी आते-जाते रहते हैं । हो सकता है राक्षस अभी भी कहीं होते हों, लेकिन दादी को मालूम न हो ।” पोती ने मासूमियत से जवाब दिया ।
“मैं अगर कहूं कि दादी की बातें सही नहीं हैं तो तुम क्या करोगी ?”
“कुछ नहीं करूंगी । मैं क्या करूंगी भला ? बस, मुझे पता चल जाएगा कि आज भी राक्षस होते हैं । और दादी को भी ये बात बताऊंगी । ... बताइए दादाजी, कहां होते हैं वे ? मैं भी उनको देखना चाहूंगी । बताइए न कहां होंगे वे ?”
“तुम अभी छोटी हो, इसलिए उन्हें नहीं देख पाओगी ।” दादाजी ने टालने के लहजे में जवाब दिया ।
“वाह दादाजी, आप को दिखेंगे और मुझे नहीं ? ऐसा कैसे हो सकता है भला ?” पोती ने असहमति के स्वर में सवाल किया ।
“मेरा मतलब है कि वे तुम्हारे इर्दगिर्द भी हों तो भी उन्हें पहचान नहीं सकोगी ।”
“सो कैसे ?”
“दरअसल राक्षस मनुष्य ही थे, कोई और नहीं । देखने-भालने में वे कुछ अलग नहीं थे । बस उनका स्वभाव इतना खराब था कि साधारण आदमी उनसे डरता था । वे अपने स्वभाव के कारण डरावने थे न कि रंग-रूप से । तुम ही सोचो कि कुंभकर्ण और रावण क्या थे और विभीषण ? वे तीनों भाई-भाई ही तो थे, एक ही माता-पिता की संतानें, फिर भी विभीषण की बात राक्षस के रूप में नहीं की जाती है । वह सीधासाधा व्यक्ति और भगवान का भक्त था । युद्ध में वह श्रीराम की तरफ आ गया था । रावण की पटरानी मंदोदरी थी जिसे मनुष्य के तौर पर लोग जानते हैं न कि राक्षसी के रूप में । रावण खुद शिवभक्त था और पूजापाठ करता था । रावण ने सीता के स्वयंवर में भाग भी लिया था । सच तो यह है कि मनुष्यों और राक्षसों के बीच नाते-रिश्ते होते थे । महाभारत में कथा है कि भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया था और उनका पुत्र था घटोत्कच । हिडिम्बा को राक्षसी कहा गया है क्योंकि वह राक्षस कहे जाने वाले लोगों के बीच पैदा हुई थी जो वन में रहते थे और सामान्य मनुष्यों के साथ लूटपाट, मारपीट आदि करते थे । बताओ घटोत्कच क्या हुआ, राक्षस या मनुष्य ? हर कोई अपने स्वभाव या तौरतरीकों से राक्षस होता है न कि शरीर से । असल में राक्षस खुराफाती स्वभाव के थे जिन्हें दूसरों को परेशान करने में मजा आता था । लोग उनसे डरते थे । अब बताओ तुम उन्हें कैसे पहचानोगी जब देखने-भालने में साधारण मनुष्य की तरह ही हों और उन्हीं की तरह पहनते-संवरते हों ?” दादाजी ने पोती को अपने तरीके से समझाने की कोशिश की ।
“दादाजी, तो फिर दादी ने क्यों कहा कि वे डरावने होते थे, उनके सिर पर सींग होते थे, मुंह में बड़े और पैने दांत होते थी, वगैरह-वगैरह ।”
“डरावने तो वे थे ही, लेकिन शरीर से नहीं बल्कि अपनी असभ्य तथा उत्पाती हरकतों से । ऐसा व्यक्ति जो दूसरों का कत्ल कर डालता हो, लूटता हो, बच्चों को उठा ले जाता हो, या ऐसी ही कोई घिनौनी हरकत करता हो उसकी शक्ल तक से सभ्य लोग चिढ़ते हैं । उन्हें वह खूंखार तक लगने लगता है । पौराणिक कथाओं में राक्षसों की सूरतशक्ल को बढ़ाचढा कर खराब दिखाया गया है । ऐसा क्यों किया गया होगा मैं ठीक-ठीक नहीं कह सकता । हो सकता है आम लोग उनसे दूर रहें, उनके चक्कर में न फंसें, धोखा न खाने पावें, उनकी संगत-शोहबत से खुद न बिगड़ जायें इस इरादे से राक्षसों को शरीर से भी भयानक बताया जाता हो । वनों में रहने वाले वे लोग हो सकता है साफसुथरे न रहते हों, कम ही नहाते-धोते हों, बाल भी न संवारते हों, दाढ़ी औैर नाखूनों का रखरखाव भी न करते हों, इसलिए डरावने लगते हों । अवश्य ही उनके बारे में बढ़ाचढ़ा कर बातें की गई हैं मैं ऐसा मानता हूं । समझ में आया कुछ ?”
“आपकी बात कुछ-कुछ समझ में आ रही है । आप बता रहे थे कि आज भी राक्षस होते हैं । तो वे कहां और कैसे होते हैं ?” आज भी राक्षस होते हैं दादाजी की इस बात को लेकर पोती ने जिज्ञासा प्रकट की ।
“मैंने कहा न कि वे हमारे ही बीच मिल जाऐंगे । लेकिन तुम उन्हें नहीं पहचान पाओगी क्योंकि तुम अभी छोटी हो ।”
पोती शान्त होकर विचारमग्न-सी हो गई । वह समझ नहीं पा रही थी कि वह उन्हें क्यों नहीं पहचान पाएगी । उसके चेहरे पर उभरे भावों से दादाजी समझ गए कि वह मुद्दे को और स्पष्टतया समझना चाहती है । दादाजी समझाते हुए बोले, “ठीक है, बताता हूं । यह तो तुम समझ ही चुकी हो कि राक्षसों की हरकतें कैसी होती थीं । जो उस प्रकार की हरकत करता है वह राक्षस । लेकिन तुम्हें जब यही पता नहीं होगा कि वैसा काम कौन कर रहा है तो पहचानोगी कैसे । अच्छा, यह बताओ कि तुम अखबार में छपी खबरें पढ़ती हो ? या टेलिविजन के समाचार चैनलों को देखती-सुनती हो ? तुम तो कार्टून फिल्में देखती हो, अपनी मां के साथ कभी-कभार सीरियल देख लेती हो, या हम लोगों से बच्चों की कहानियां सुनती हो । अखबार पढ़ो या टेलिविजन समाचार देखो तो पता चलेगा कि ऐसे भी लोग हैं जो वह सब करते हैं जो राक्षस करते थे । किसी को गोली मार दी जाती है, किसी औरत को जिंदा जला दिया जाता है, कहीं व्यापारियों और बैंकों का पैसा लूट लिया जाता है, कोई बच्चों को उठा ले जाता है । इस प्रकार की अनेक बातें रोजमर्रा होती रहती हैं । जो यह सब करते हैं वे ही तो राक्षस हैं । ऐसे लोगों को अपराधी कहा जाता है । राक्षस शब्द का इस्तेमाल कोई नहीं करता, ऐसा करना शायद सभ्यता के विरुद्ध समझा जाता है । पर ऐसे लोग वास्तव में राक्षस ही होते हैं । मेरी ये सभी बातें तुम मानो या न मानो यह तुम्हारी मरजी है ।”
“समझ गई मैं । जाती हूं दादी के पास ।” कहते हुए पोती दादी को समझाने चल दी ।
- योगेन्द्र जोशी
2 टिप्पणियाँ
बेहतरीन पोस्ट, आज कल बच्चो को सभी चीजो की समझ होना बहोत जरुरी हैं,
जवाब देंहटाएंआज कल के माहौल को देखते हुए कहानी के राक्षस के बदले हमारे समाज मे छुपे राक्षसो के बारे मे बच्चो को पता होना चाहिए...अच्छी कहानी
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.