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एन० आर० आई० [लघुकथा] - महावीर उत्तरांचली

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"देख कुलवंत ज़माना बहुत ख़राब है। आजकल एन० आर० आइज़ ने नया ट्रेंड चला रखा है। कई जगह ऐसे केस हो चुके हैं कि यहाँ कि भोली-भाली लड़कियों या विधवा औरतों को विदेश जाने का लालच देकर अप्रवासी भारतीय उनसे शादी का नाटक रचा लेते हैं और अपनी छुट्टियों को रंगीन बनाकर वापिस चले जाते हैं, हमेशा के लिए..."


 महावीर उत्तरांचली रचनाकार परिचय:-



१. पूरा नाम : महावीर उत्तरांचली
२. उपनाम : "उत्तरांचली"
३. २४ जुलाई १९७१
४. जन्मस्थान : दिल्ली
५. (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से।

"नहीं-नहीं मेरा मनिंदर ऐसा नहीं है, उसने मुझे शादी से पहले ही सोने की अंगूठी भेंट की थी और कहा था इंग्लैंड में वह बहुत बड़े बंगले का मालिक है। जिसे शादी के बाद वह मेरे नाम कर देगा और कुछ ही समय बाद जल्द से जल्द वह मुझे भी इंग्लैंड ले जायेगा..."

"रब करे ऐसा ही हो कुलवंत, तेरा बच्चा इंग्लैंड में ही आँखें खोले..."

असहनीय प्रसव पीड़ा में भी कुलवंत कौर के कानों में अपनी सखी मनप्रीत के कहे शब्द गूंज रहे थे। उसे यकीन नहीं रो रहा था कि उसके साथ भी छल हुआ है, "तो क्या मै उस हरामी का पाप जन रही हूँ ... जो परदेश जाकर मुझे भूल ही गया, पिछले छह महीनों से जिसने एक फ़ोन तक नहीं किया ... हाय! मै क्यों उसके झांसे में आई ... लन्दन में उसका आलीशान बंगला, थेम्स नदी की सैर... इंग्लैंड की सुपरफार्स्ट ट्रेने ... आह! इन वादों की आड़ में वह गिद्ध दिन-रात मुझे नोचता रहा ... मेरे भोले-भले जज्बातों से खेलता रहा ... काश! उसके इरादों का पहले पता चल जाता तो ..."

छल-कपट की ग्लानि में प्रसव की पीड़ा गौण हो गई। उसकी नवजात बच्ची की किलकारियां वातावरण में गूंजने लगी। एन० आर० आई० मनिंदर का विश्वाशघाती चेहरा उसकी आँखों में घूमने लगा। अतः उसका भी जी चाहा कि नवजात बच्ची की किलकारियों के बीच वह भी दहाड़े मारके रोने लगे।

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4 टिप्पणियाँ

  1. आजकल भावनाएं तो खो ही गई है...औरत को लोग उपभोग की वस्तु ही समझते है...

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    1. रमेशजी ने लिखा है....औरत को लोग उपभोग की वस्तु समझते हैं....रमेशजी बौद्धकाल में वैशाली की सबसे सुंदर कन्या का नगरवधु किसने बनाया? पूरा इतिहास....औरत के शोषण, असमानता और भोग की कहानियों से भरा पड़ा है। द्वापर में द्रोपदी के दर्द को भी समझिए. पांच पांडवों की पत्नी बनी और भरी सभा में अपमानित की गई।

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    2. रमेशजी ने लिखा है....औरत को लोग उपभोग की वस्तु समझते हैं....रमेशजी बौद्धकाल में वैशाली की सबसे सुंदर कन्या का नगरवधु किसने बनाया? पूरा इतिहास....औरत के शोषण, असमानता और भोग की कहानियों से भरा पड़ा है। द्वापर में द्रोपदी के दर्द को भी समझिए. पांच पांडवों की पत्नी बनी और भरी सभा में अपमानित की गई।

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    3. रमेश कुमार8 मई 2016 को 5:33 pm बजे

      वही तो बात मैने बोली मुकेश जी....आपके सहयोग के लिए धन्यवाद

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