नाम : वर्षा ठाकुर
शिक्षा: बी ई (इलेक्ट्रिकल)
पेशा: पी एस यू कंपनी में अधिकारी
मेरा ब्लौग: http://varsha-proudtobeindian.blogspot.in
तुम बसंत हो
तुम तब आते हो
जब लू के थपेड़ों से
तपकर सिकी
रिमझिम लड़ियों से
सीली पड़ी
तूफाँ के तेवर से
थर थर हिली
थककर गिरी
औंधी पड़ी
एक जीवन की लौ
अपने होने की वजह
तलाशने लगती है।
तुम आते हो
हाथ थाम,
उसे उठाते हो
कुछ उसकी सुनते हो
कुछ अपनी बताते हो।
सीलनों को हवा देकर
जख्मों को दवा देकर
ऋतु के अगले चक्र के
काबिल बनाते हो,
फिर मिलने का
वास्ता देकर
चले जाते हो
कुछ सुस्ताने के लिए
फिर लौट आने के लिये
जीवन को, जीने की
वजहें बताने के लिये।
6 टिप्पणियाँ
वर्षा जी, आपकी बसंत ये कविता बहोत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंkeep it up .....................
शुक्रिया!
हटाएंबसंत का आना जिंदगी में बहार का आना है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद कविता जी।
हटाएंबसंत की अच्छी चित्रण ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया!
हटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.