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नीयत [कहानी] - योगेन्द्र प्रसाद जोशी

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 योगेन्द्र प्रसाद जोशी रचनाकार परिचय:-







पूरा नाम - योगेन्द्र प्रसाद जोशी

जन्मतिथि - 2 जनवरी 1948

जन्मस्थान - उत्तराखंड राज्य, बागेश्वर जिला, भेटा गांव
शैक्षणिक योग्यता - इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.एससी., पी.एचडी. (भौतिकी)

व्यावसायिक जीवनवृत्त - भौतिकी (फिज़िक्स) विषय में शिक्षण-सह-शोधकार्य; 1971-72 में लगभग 1 वर्ष इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कार्यरत; तत्प्श्चात्‍1972 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी) में नियुक्ति; 2004 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। शैक्षिक जीवन-काल के दौरान शोधकार्य हेतु इंग्लैंड (साउथहैम्टन) में दो वर्ष (1983-1985) का प्रवास। उच्चाध्ययन हेतु 1986 में त्रिएस्ते (ट्रिएस्ट), इटली, में प्रायः एक माह का प्रवास। शैक्षिक कार्यकाल में भौतिकी में शोधपत्र लेखन एवं तत्संबंधित कंप्यूटर-विषयक पुस्तक लेखन, अधिकांशतः अंगरेजी में। इन्हीं विषयों पर हिन्दी एवं अंगरेजी में लेख। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद विविध विषयों का स्वाध्ययन। रुचि के विषय : धर्म, दर्शन, नीति आदि, पर्यावरण-प्रदूषण, एवं हिन्दी/भारतीय भाषाओं की दशा। संस्कृत भाषा में विशेष रुचि। स्वांत-सुखाय कहानियां लिखी हैं लेकिन प्रकाशित नहीं कीं। उक्त विषयों को लेकर ब्लॉग लेखन। संप्रति 5 ब्लॉग :
http://hinditathaakuchhaur.wordpress.com
http://indiaversusbharat.wordpress.com;
http://jindageebasyaheehai.wordpress.com;
http://vichaarsankalan.wordpress.com;

http://satyamnaivajayati.wordpress.com;

इसके अतिरिक्त फ़ेसबुक, ट्विटर एवं गूगल-प्लस पर भी उपलब्ध। स्वाध्ययन के अतिरिक्त देशाटन/पर्यटन में रुचि।






मैं घर के पास के मुख्य मार्ग से लौट रहा हूं । रास्ते में सड़क के किनारे कच्ची जमीन पर भट्टी सुलगाए हुए कर दो भाई मूंगफली भूनकर बेच रहे हैं । बड़े-से कड़ाह में एक भाई भूनने का काम करता है तो दूसरा ग्राहकों को तौलकर बेचता है । मैं इनको करीब दो महीनों से यहां अपना छोटा-सा कारोबार करते हुए देख रहा हूं । पिछले वर्षों तक मैंने इनको यहां पर कभी नहीं देखा था । पूछे जाने पर बताते हैं कि ये इसी साल पहली बार मेरे शहर में रोजीरोटी की तलाश में पहुंचे हैं । मूंगफली भूनकर बेचने का धंधा उनकी समझ में आया, सो उसी पर लग गये ।

उस रास्ते से कभी-कभार आते-जाते मैं भी उनसे मूंगफली खरीद लेता हूं । वे पच्चीस रुपया पाव बेचते हैं, जब कि आम ठेलों पर भुनी मूंगफली बेचने वालों की दर 35 रुपया पाव है । दाम के साथ मूंगफली में अंतर जरूर रहता है । ठेले वाले कच्ची मूंगफली को छानकर-फटककर साफ करते हैं, अपुष्ट या खोखली फलियों को हटाते हैं और तब भूनते हैं, जब कि ये भाई बाजार से बोरों में भरी मूंगफली को जैसा का तैसा ही इस्तेमाल करते हैं ।

इनके पास पहुंचकर मैं ठहर जाता हूं । दो-तीन गाहक पहले से मौजूद हैं । मुझसे ठीक पहले बारी आती है एक दंपती की । महिला बाइक से उतरकर मूंगफली खरीदती हैं, मेरे अनुमान से पाव भर, और उनके पति बाइक पर बैठे प्रतीक्षा करते हैं । महिला मूल्य चुकाते हुए दुकानदार से मूंगफली भरी पॉलिथीन की थैली थाम लेती हैं । जिज्ञासावश मैं उनके हावभाव गौर से देख रहा हूं । चलते-चलते वे मुठ्ठी में कुछ मूंगफली उठा लेती हैं । हो सकता कि उनके मन में बाइक पर बैठे उन्हें ठूंगने का विचार हो । मैं सोचने लगता हूं कि बाइक में बैठकर अपने को संतुलित रखते हुए यह कार्य आसान तो नहीं ही होगा । लेकिन ऐसा कुछ होना नहीं है । वे मुठ्ठी की सामग्री अपनी झोली में डालती हैं, बाइक पर बैठती हैं, और बाइक चल देती हैं ।

मैं विक्रेता से पूछता हूं, “आपके खरीददार ढेरी में से बिना पूछे कुछ मूंगफली उठा लेते हैं क्या ?”

जवाब मिलता है, “हां, कोई-कोई गाहक खरीदते-खरीदते लगे हाथ दो-चार फलियां ठूंग ही लेते हैं । पर सब ऐसा नहीं करते ।”

मैं अपनी साइकिल पर सवार होकर घर की ओर बढ़ जाता हूं । उस महिला की मुठ्ठी में भला कितनी मूंगफली समाई होगी इस बात का मैं रास्ते में अनुमान लगाता हूं । मुझे लगा कि मुश्किल से बीस-तीस पैसे की रही होगी, या अधिक से अधिक पचास पैसे की, उससे अधिक शायद नहीं ।

जीवन की यह एक विडंबना ही तो है कि कभी-कभी खाते-पीते व्यक्ति की नीयत उतने पर भी डोल जाती है । - योगेन्द्र जोशी










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1 टिप्पणियाँ

  1. गरीब आदमी को सभी दबाते है भाई साहब...यही काम किसी मॉल मे जाकर करें पुलिस ले जाएगी...अच्छी कहानी

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