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हिन्दी पत्रकारिता दिवसः 30 मई - हिन्दी पत्रकारिता और राजस्थान [आलेख] - डॉ0 विनोद कुमार केवलरामानी

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डॉ0 विनोद कुमार केवलरामानी’
रचनाकार परिचय:-






डॉ0 विनोद कुमार केवलरामानी’




मनुष्य का मस्तिष्क सदैव जिज्ञासु वृत्ति का रहा है। इसी प्रवृत्ति से प्रेरित होकर मनुष्य यह जानने को उत्सुक रहता है कि उसके आसपास क्या घटित हो रहा है, क्यों घटित हो रहा है और जो कुछ घटित हो रहा है, उसका प्रभाव उसके अपने जीवन और कार्य-व्यापारों पर क्या होने वाला है। उसे अपने स्वयं के तथा अपने परिचय-क्षेत्र के लोगों और स्थानों के विषय में ही जानने की उत्सुकता नहीं रहती, अपितु अपरिचित व्यक्तियों, स्थलों, नगरों और ग्रामों, यहां तक कि सात समुद्र पार बसे लोगों और देषों के जीवन की हलचल के बारे में भी वह जानना चाहता है। इसीलिए हर्बर्ट ब्रूकर ने पत्रकारिता की व्याख्या करते हुए कहा है कि यह वह माध्यम है, जिसके द्वारा हम अपने मस्तिष्क में उस दुनिया के बारे में समस्त सूचनाएं संकलित करते हैं, जिसे हम स्वतः कभी नहीं जान सकते।

मुद्रण-यंत्रों के आविष्कार से पूर्व जब आधुनिक अर्थ में समाचार-पत्रों की परिकल्पना तक नहीं की जा सकती थी, उस समय भी विष्व के विभिन्न भागों में सूचना-प्रसार किसी न किसी माध्यम से अवष्य होता था, जैसे सूचना स्तंभों अथवा पट्टों के द्वारा, एक दूसरे से सम्पर्क द्वारा, पत्राचार के माध्यम से, अत्यन्त महत्वपूर्ण सूचनाओं को पाषाण स्तंभों पर खुदवा कर, जैसा कि सम्राट अषोक के काल में षिलालेखों आदि के द्वारा किया जाता था अथवा राज्य के संदेष वाहकों द्वारा प्रचार किया जाता था।

पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, रिपोर्ट करना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि।

15वीं शताब्दी के मध्य में योहन गूटनबर्ग ने छापने की मशीन का आविष्कार किया। असल में उन्होंने द्यातु के अक्षरों का आविष्कार किया। इसके फलस्वरूप किताबों का ही नहीं, अख़बारों का भी प्रकाशन संभव हो गया। विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार-पत्र ‘रिलेशन्स‘ को माना जाता है। इसे इसके सम्पादक-प्रकाषक जान कैरोलस ने फ्रांस के स्ट्रेसबर्ग से प्रकाषित किया। दुनिया में प्रेस के आगमन के साथ ही समाचार पत्रों की शुरूआत मानी जा सकती है। विश्व में पहली प्रेस लगाने का श्रेय इंग्लैंड को है और 1702 में लंदन का पहला दैनिक ‘डेली कॉर्नट‘ नामक समाचार पत्र अस्तित्व में आया। इसके पष्चात तो विष्व के लगभग सभी देषों से समाचार पत्रों के प्रकाषन प्रारम्भ हो गये।

मुद्रण यंत्र के आविष्कार हो जाने और भारत में अंग्रेजों की सत्ता काबिज होने के बावजूद भी भारत में पत्रकारिता का उद्भव काफी विलम्ब से हुआ। 29 जनवरी, 1780 को पहला भारतीय समाचार पत्र ‘बंगाल गजट अथवा कलकत्ता एडवर्टाइजर‘ जेम्स हिक्की ने निकाला। यह पत्र ‘कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर‘ एवं ‘हिक्की गजट‘ के नाम से भी प्रसिद्ध है। भारत में शुरूआती दौर के जो समाचार पत्र प्रकाषित हुए, वे अंग्रेजी में थे एवं इन्हें अंग्रेज ही निकालते थे।

भारत में हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव की बात अगर की जाये तो हिन्दी का पहला पत्र साप्ताहिक ‘उदन्त मार्तण्ड‘ 30 मई, 1826 को कोलकाता से युगल किषोर शुक्ल ने प्रकाषित किया। इसके बाद तो हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाषन का सिलसिला बढ़ता गया और हिन्दी पत्रकारिता की जड़े जमने लगी। साथ ही अंग्रेजी, बंगला, हिन्दी, फारसी, उर्दू में दैनिक, साप्ताहिक और मासिक पत्र निकलने लगे। बंगदूत, (1829, कलकत्ता), बनारस अखबार (1845, कलकत्ता), ज्ञानदीपक (1846, कलकत्ता), मालवा अखबार (1848, मालवा), बुद्धि प्रकाष (1852, आगरा), ग्वालियर गजट (1853, ग्वालियर), प्रजाहितैषी (1853, आगरा), समाचार सुधावर्षण (1854, कलकत्ता), पयामे आजादी (1857, दिल्ली), धर्म प्रकाष (1859, अहमदाबाद), सूरज प्रकाष (1861, आगरा), लोकहित (1863, आगरा), जोधपुर गवर्नमेंट गजट (1864, जोधपुर), ज्ञान प्रदायिनी पत्रिका (1866, लाहौर), मारवाड़ गजट (1866, जोधपुर) द्वारा हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं की पृष्ठभूमि तैयार की गई।

भारत में पहला समाचार पत्र 1780 में प्रारम्भ हुआ जबकि राजपूताना (राजस्थान पूर्व में राजपूताना के नाम से जाना जाता था) में इसके उनहत्तर वर्ष बाद 1849 में कोई पत्र निकला। यह कटु सत्य है कि जब बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेष में समाचार पत्रों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही थी एवं हिन्दी पत्रकारिता को भी लगभग आधी शती से ज्यादा का समय हो चुका था, उस समय तक राजपूताना में पत्रकारिता अपने प्रारम्भिक चरण में ही थी। राजपूताना का सर्वप्रथम पत्र ‘मजहरूल सरूर‘ माना जाता है। यह द्विभाषी पत्र उर्दू और हिन्दी मेें सन् 1849 में भरतपुर से प्रकाषित होता था, इस पत्र की कोई प्रति उपलब्ध न होने के कारण इसके स्वरूप के बारे में प्रामाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। फ्रेंच लेखक तासी ने अपने ‘डिसकोर्सेज‘ में इसका केवल उल्लेख मात्र किया है।

सन् 1856 में जयपुर से हैडमास्टर कन्हैयालाल के नेतृत्व में एक पत्र ‘रोजतुल तालीम‘ अथवा ‘राजपूताना अखबार‘ प्रकाषित किया गया। यह पत्र द्विभाषी थी। इस पत्र की आधी सामग्री हिन्दी में तथा आधी सामग्री उर्दू में प्रकाषित होती थी। इसके बाद राजपूताना में पत्रकारिता को थोड़ी गति प्राप्त हुई। विभिन्न रियासतों से कई समाचार पत्र निकलने लगे। सन् 1861 में अजमेर से ‘जगलाभ-चिन्तक‘, वहीं 1863 में ‘जगहितकारक‘ का प्रकाषन हुआ। ये दोनों पत्र हिन्दी भाषा में प्रकाषित होते थे। जोधपुर दरबार की ओर से 1864 में ‘जोधपुर गवर्नमेंट गजट‘ शुरू हुआ। यह साप्ताहिक था एवं हिन्दी तथा अंग्रेजी, दोनों में निकलता था। 1866 में जोधपुर से ‘मारवाड़ गजट‘ का प्रकाषन प्रारम्भ हुआ। सन् 1868 में ‘जयपुर-गजट‘, 1869 में ‘उदयपुर-गजट‘ का प्रकाषन प्रारम्भ किया गया। 1876 में ‘सज्जनकीर्तिसुधाकर‘ नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाषन तत्कालीन महाराणा सज्जन सिंह के संरक्षण में हुआ। उसके सम्पादक पं. बंषीधर वाजपेयी थे। 1882 में अजमेर से ‘देष हितैषी‘, 1885 में जयपुर से मासिक ‘सदाचार मार्तण्ड‘ प्रकाषित हुए। इन सभी पत्रों का मूल स्वर धार्मिक और समाज सुधार से प्रेरित था। लोकचेतना को प्रबुद्ध करने वाली विषुद्ध पत्रकारिता का प्रारम्भ 1885 में मनीषी समर्थदान द्वारा प्रकाषित ‘राजस्थान समाचार‘ के प्रकाषन से हुआ।

राजपूताना में 1849 में पहले पत्र ‘मजहरूल सरूर‘ से लेकर 1920 में ‘राजस्थान केसरी‘ तक अनेक पत्र निकले, परन्तु इस दौर में बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं ने जन-जागृति एवं कुप्रथाओं के विरोध में प्रयास किए, उनमें ‘मारवाड़ गजट‘, ‘राजपूताना हेराल्ड‘, ‘राजपूताना गजट‘, ‘राजपूताना समाचार‘, ‘राजपूताना टाइम्स‘ एवं ‘सर्वहित‘ प्रमुख थे। इन पत्रों ने लोकधर्मी पत्रकारिता की शुरूआत की एवं इनके ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता। राजपूताना में 1920 के पश्चात् जो पत्र आरम्भ हुए वे स्वातंन्न्य भाव से ओत-प्रोत थे। उनका उद्देष्य सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक जागृति था। राजपूताना की राजनीतिक कमान उसके आंदोलन के प्रारम्भ से पत्रकारों के हाथ में रही। ‘राजस्थान समाचार‘ के प्रकाषन के पष्चात राजपूताना में पत्रकारी क्षेत्र का निरन्तर विकास होता गया। कई साप्ताहिक एवं मासिक पत्रों का प्रकाषन प्रारम्भ हो गया। राजपूताना में गणेष शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप‘ ने पत्रकारिता को सृदृढ़ आधार प्रदान किया एवं इस परंपरा को ‘राजस्थान केसरी‘ ने आगे बढ़ाया। इसके पश्चात् ‘नवीन राजस्थान‘, ‘तरूण राजस्थान‘, ‘राजस्थान‘, ‘रियासती‘, ‘त्यागभूमि‘, ‘मीरां‘, ‘प्रभा‘, ‘आगीवाण‘, ‘यंग राजस्थान‘, ‘नवज्योति‘, ‘प्रजा सेवक‘, ‘नया राजस्थान‘, ‘लोकवाणी‘, ‘जयभूमि‘, ‘प्रचार‘, ‘अलवर पत्रिका‘, ‘जयपुर समाचार‘ आदि पत्र निकले। राजस्थान मंे स्वाधीनता पूर्व हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास कुछ अपवादों को छोड़कर प्रकारान्तर से स्वतंत्रता-संग्राम के लिए किये गये विभिन्न आन्दोलनों का इतिवृत्त प्रस्तुत करने, उन्हें सम्बल प्रदान करने और उनके प्रति जनचेतना को जागृत करने का ही इतिहास है। इन पत्रों में सामाजिक जागरण, राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक पुनरूत्थान की सामग्री प्रभूत परिमाण में प्रकाषित हुई। भले ही इन पत्रों में अधिकांष दीर्घजीवी नहीं हो सके, तथापि अपने अल्पजीवी होने और सीमित पाठक वर्ग के बावजूद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम काल में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की। इसी कारण राजपूताना की हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास स्वाधीनता आंदोलन का ही इतिहास है और यहां की राजनीति उसके आंदोलन की शुरूआत से ही पत्रकारों के हाथ में रही।

एक पत्रकार के कहा है ‘समाचार पत्र जनता की संसद है, जिसका अधिवेषन सदैव चलता रहता है।‘ इस समाचार पत्र रूपी संसद का कभी सत्रावसान नहीं होता। जिस प्रकार संसद में विभिन्न प्रकार की समस्याओं पर चर्चा की जाती है, विचार-विमर्ष किया जाता है, उसी प्रकार समाचार-पत्रों का क्षेत्र भी व्यापक एवं बहुआयामी होता है। पत्रकारिता तमाम जनससमयाओं एवं सवालों से जुड़ी होती है, समस्याओं को प्रषासन के सम्मुख प्रस्तुत कर उस पर बहस को प्रोत्साहित करती है। समाज जीवन के हर क्षेत्र में आज पत्रकारिता की महत्ता स्वीकारी जा रही है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, विज्ञान, कला सब क्षेत्र पत्रकारिता के दायरे में हैं। इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, तभी वे लिखते हैंः-

“खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”

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