

संगीता पुरी जी का जन्म 19 दिसम्बर 1963 को झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत ग्राम - पेटरवार में जन्म हुआ। रांची विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री 1984 में ली। उसके बाद झुकाव अपने पिताजी श्री विद्या सागर महथा जी के द्वारा विकसित की गयी ज्योतिष की एक नई शाखा गत्यात्मक ज्योतिष की ओर हुआ, जिसके अध्ययन मनन में अपना जीवन समर्पित कर दिया। कंप्यूटर का प्रोग्रामिंग सीखा और गत्यात्मक ज्योतिष पर आधारित अपना साफ्टवेयर बनाने में सफलता प्राप्त की। सितम्बर 2007 से ही ज्योतिष पर आधारित अपने अनुभवों के साथ ब्लागिंग की दुनिया में । दुनिया को देखने का अपना नजरिया कभी कभी फुर्सत के क्षणों में कविताओं , कहानियों के रूप में पन्नों पर उतर जाता है। भारत सरकार के बाल विकास मंत्रालय की ओर से वर्ष 2016 की 100 सफलतम महिलाओं में शामिल।
आए दिन हमारी भेंट ऐसे अभिभावकों से होती है, जो अपने बेटे या बेटी के विवाह न हो पाने से बहुत परेशान हैं। उनकी विवाह योग्य संतानें पढ़ी-लिखी है ,पर पॉच-सात वर्ष से उपयुक्त वर या वधू की तलाश कर रहें हैं ,कहीं भी सफलता हाथ नहीं आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण किसी संतान का मंगली होना है और मंगली पार्टनर न होने से वे कई जगह बात बढ़ा भी नहीं पाते। अगर पार्टनर मंगली मिल भी जाए तो कई जगहों पर लड़के-लड़कियों के गुण न मिल पाने से भी समस्या बनी ही रह जाती है। ये समस्या समाज में बहुतायत में है और सिर्फ कन्या के ही अभिभावक नहीं , वर के अभिभावक भी ऐसी समस्याओं से समान रुप से जूझ रहे हैं । लड़का-लड़की या परिवार के पूर्ण रुप से जंचने के बावजूद भी मंगला-मंगली और गुण-मिलान के चक्कर में संबंध जोड़ना संभव नहीं हो पाता है।
पुराने युग में शादी-विवाह एक गुड्डे या गुड़िया की खेल की तरह था। सिर्फ पारिवारिक पृश्ठभूमि का ध्यान रखते हुए किसी भी लड़की का हाथ किसी भी लड़के को सौंप दिया जाता था । कम उम्र में शादी होने के कारण लड़के-लड़कियों कें व्यक्तित्व ,आचरण या व्यवहार का कोई महत्व नहीं था। इस कारण बड़े होने के बाद कभी-कभी लड़के-लड़कियों के विचारों में टकराव होने की संभावना बनी रहती थी । इसी कारण अभिभावक शादी करने से पूर्व ज्योतिषियों से सलाह लेना आवश्यक समझने लगें और इस तरह कुंडली मिलाने की प्रथा की शुरुआत हुई। कुंडली मिलाने के अवैज्ञानिक तरीके के कारण समाज में वैवाहिक मतभेदों में कोई कमी नहीं आई ,साथ ही दुर्घटनाओं के कारण भी जातक के वैवाहिक सुख में बाधाएं उपस्थित होती ही रहीं , लेकिन फिर भी कुंडली मिलाना वर्तमान युग में भी एक आवश्यक कार्य समझा जाता है यद्यपि कुंडली मिलाना आज किसी समस्या का समाधान न होकर स्वयं एक समस्या बन गया है।
ज्योतिष की पुस्तकों के अनुसार किसी भी लड़के या लड़की की जन्मकुंडली में लग्न भाव , व्यय भाव , चतुर्थ भाव , सप्तम भाव या अश्टम भाव में मंगल स्थित हो तो उन्हें मांगलीक कहा जाता है। परंपरागत ज्योतिष में ऐसे मंगल का प्रभाव बहुत ही खराब माना जाता है। यदि पति मंगला हो तो पत्नी का नाश तथा पत्नी मंगल हो तो पति का नाश होता है । संभावनावाद की दृष्टि से इस बात में कोई वैज्ञानिकता नहीं है। किसी कुंडली में बारह भाव होते हैं और पॉच भाव में मंगल की स्थिति को अनिष्टकर बताया गया है। इस तरह समूह का 5/12 भाग यानि लगभग 41 प्रतिशत लोग मांगलिक होते है ,लेकिन अगर समाज में ऐसे लोगों पर ध्यान दिया जाए जिनके पति या पत्नियां मर गयी हों ,तो हम पाएंगे कि उनकी संख्या हजारों में भी एक नहीं है।
मंगला-मंगली के अतिरिक्त ज्योतिष की पुस्तकों में कुंडली मिलाने के लिए एक कुंडली मेलापक सारणी का उपयोग किया जाता है। इस सारणी से केवल चंद्रमा के नक्षत्र-चरण के आधार पर लड़के और लड़कियों के मिलनेवाले गुण को निकाला जाता है। यह विधि भी पूर्णतया अवैज्ञानिक है। किसी भी लड़के या लड़की के स्वभाव , व्यक्तित्व और भविष्य का निर्धारण सिर्फ चंद्रमा ही नहीं ,वरन् अन्य सभी ग्रह भी करतें हैं । इसलिए दो जन्मकुंडलियों के कुंडली-मेलापक द्वारा गुण निकालने की प्रथा बिल्कुल गलत है।
इस संबंध में एक उदाहरण का उल्लेख किया जा सकता है। मेरे पिताजी के एक ब्राह्मण मित्र ने , जो स्वयं ज्योतिषी हैं और जिनका जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ था , पुष्य नक्षत्र में स्थित चंद्रमावाली लड़की को ही अपनी जीवनसंगिनी बनाया , क्योंकि ऐसा करने से कुंडली मेलापक तालिका के अनुसार उन्हें सर्वाधिक 35 अंक प्राप्त हो रहे थें । इतना करने के बावजूद उन्हें अपनी पत्नी से एक दिन भी नहीं बनी । किसी कारणवश वे तलाक तो नहीं ले पाए परंतु उनका मतभेद इतना गहरा बना रहा कि एक ही घर में रहते हुए भी आपस में बातचीत भीं बंद रहा। इसका अर्थ यह नहीं कि ज्योतिष विज्ञान ही झूठा है , ग्रहों का प्रभाव मनुष्य पर नहीं पड़ता है।दरअसल मेरे पिताजी के उस मित्र की कुंडली में स्त्री पक्ष या घर-गृहस्थी के सुख में कुछ कमी थी ,इसलिए विवाह के बावजूद उन्हें सुख नहीं प्राप्त हो सका।
एक सज्जन अपनी पुत्री की तुला लग्न की कुंडली लेकर मेरे पास आएं। सप्तम भावाधिपति मंगल अतिवक्र होकर अष्टमभाव में स्थित था , ऐसी स्थिति में लड़की पूरी युवावस्था यानि 24 वर्ष से 48 वर्ष तक पति के सुख में कमी और घर-गृहस्थी में बाधा महसूस कर सकती थी , यह सोंचकर मैने उस लड़की को नौकरी कर अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह दी ,लेकिन अभिभावक तो लड़की की शादी करके ही निश्चिंत होना चाहते हैं ,उन्होनें दूसरे ज्योतिषी से संपर्क किया , जिसने अच्छी तरह कुंडली मिलवाकर अच्छे मुहूर्त में उसका विवाह करवा दिया। मात्र दो वर्ष के बाद ही एक एक्सीडेंट में उसके पति की मृत्यु हो गयी और वह लड़की अभी विधवा का जीवन व्यतीत कर रही हैं। मेरे पिताजी एक ज्योतिषी हैं पर उन्होने अपने सारे बच्चों की शादी में कुंडली मेलापक की कोई चर्चा नहीं की । क्या कोई पंडित 10 पुरुष और 10 स्त्रियो की कुंडली में से वर और कन्या की कुंडली को अलग कर सकता है , यदि नही तो वह किसी जोड़े को बनने से भी नहीं रोक सकता।
आज घर-धर में कम्प्यूटर और इंटरनेट के होने से मंगला-मंगली और कुंडली मेलापक की सुविधा घर-बैठे मिल जाने से यह और बड़ी समस्या बन गयी है। किन्ही भी दो बायोडाटा को डालकर उनका मैच देखना काफी आसान हो गया है , पर इसके चक्कर में अच्छे-अच्छे रिश्ते हाथ से निकलते देखे जाते हैं । उन दो बायोडाटा को डालकर देखने से ,जिनकी बिना कुंडली मिलाए शादी हुई है और जिनकी काफी अच्छी निभ रही है या जिनकी कुंडली मिलाकर शादी हुई है और जिनकी नहीं निभ रही है , कम्प्यूटर और उसमें डाले गए इस प्रोग्राम की पोल खोली जा सकती है। एक ज्योतिषी होने के नाते मेरा कर्तब्य है कि मै अभिभावकों को उचित राय दूं। मेरा उनसे अनुरोध हे कि वे पुरानी मान्यताओं पर ध्यान दिए बिना , कुंडली मेलापक की चर्चा किए बिना , अपने बच्चों का विवाह उपयुक्त पार्टनर ढूंढ़कर करें । किसी मंगला और मंगली की शादी भी सामान्य वर या कन्या से निश्चिंत होकर की जा सकती है।
पुराने युग में शादी-विवाह एक गुड्डे या गुड़िया की खेल की तरह था। सिर्फ पारिवारिक पृश्ठभूमि का ध्यान रखते हुए किसी भी लड़की का हाथ किसी भी लड़के को सौंप दिया जाता था । कम उम्र में शादी होने के कारण लड़के-लड़कियों कें व्यक्तित्व ,आचरण या व्यवहार का कोई महत्व नहीं था। इस कारण बड़े होने के बाद कभी-कभी लड़के-लड़कियों के विचारों में टकराव होने की संभावना बनी रहती थी । इसी कारण अभिभावक शादी करने से पूर्व ज्योतिषियों से सलाह लेना आवश्यक समझने लगें और इस तरह कुंडली मिलाने की प्रथा की शुरुआत हुई। कुंडली मिलाने के अवैज्ञानिक तरीके के कारण समाज में वैवाहिक मतभेदों में कोई कमी नहीं आई ,साथ ही दुर्घटनाओं के कारण भी जातक के वैवाहिक सुख में बाधाएं उपस्थित होती ही रहीं , लेकिन फिर भी कुंडली मिलाना वर्तमान युग में भी एक आवश्यक कार्य समझा जाता है यद्यपि कुंडली मिलाना आज किसी समस्या का समाधान न होकर स्वयं एक समस्या बन गया है।
ज्योतिष की पुस्तकों के अनुसार किसी भी लड़के या लड़की की जन्मकुंडली में लग्न भाव , व्यय भाव , चतुर्थ भाव , सप्तम भाव या अश्टम भाव में मंगल स्थित हो तो उन्हें मांगलीक कहा जाता है। परंपरागत ज्योतिष में ऐसे मंगल का प्रभाव बहुत ही खराब माना जाता है। यदि पति मंगला हो तो पत्नी का नाश तथा पत्नी मंगल हो तो पति का नाश होता है । संभावनावाद की दृष्टि से इस बात में कोई वैज्ञानिकता नहीं है। किसी कुंडली में बारह भाव होते हैं और पॉच भाव में मंगल की स्थिति को अनिष्टकर बताया गया है। इस तरह समूह का 5/12 भाग यानि लगभग 41 प्रतिशत लोग मांगलिक होते है ,लेकिन अगर समाज में ऐसे लोगों पर ध्यान दिया जाए जिनके पति या पत्नियां मर गयी हों ,तो हम पाएंगे कि उनकी संख्या हजारों में भी एक नहीं है।
मंगला-मंगली के अतिरिक्त ज्योतिष की पुस्तकों में कुंडली मिलाने के लिए एक कुंडली मेलापक सारणी का उपयोग किया जाता है। इस सारणी से केवल चंद्रमा के नक्षत्र-चरण के आधार पर लड़के और लड़कियों के मिलनेवाले गुण को निकाला जाता है। यह विधि भी पूर्णतया अवैज्ञानिक है। किसी भी लड़के या लड़की के स्वभाव , व्यक्तित्व और भविष्य का निर्धारण सिर्फ चंद्रमा ही नहीं ,वरन् अन्य सभी ग्रह भी करतें हैं । इसलिए दो जन्मकुंडलियों के कुंडली-मेलापक द्वारा गुण निकालने की प्रथा बिल्कुल गलत है।
इस संबंध में एक उदाहरण का उल्लेख किया जा सकता है। मेरे पिताजी के एक ब्राह्मण मित्र ने , जो स्वयं ज्योतिषी हैं और जिनका जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ था , पुष्य नक्षत्र में स्थित चंद्रमावाली लड़की को ही अपनी जीवनसंगिनी बनाया , क्योंकि ऐसा करने से कुंडली मेलापक तालिका के अनुसार उन्हें सर्वाधिक 35 अंक प्राप्त हो रहे थें । इतना करने के बावजूद उन्हें अपनी पत्नी से एक दिन भी नहीं बनी । किसी कारणवश वे तलाक तो नहीं ले पाए परंतु उनका मतभेद इतना गहरा बना रहा कि एक ही घर में रहते हुए भी आपस में बातचीत भीं बंद रहा। इसका अर्थ यह नहीं कि ज्योतिष विज्ञान ही झूठा है , ग्रहों का प्रभाव मनुष्य पर नहीं पड़ता है।दरअसल मेरे पिताजी के उस मित्र की कुंडली में स्त्री पक्ष या घर-गृहस्थी के सुख में कुछ कमी थी ,इसलिए विवाह के बावजूद उन्हें सुख नहीं प्राप्त हो सका।
एक सज्जन अपनी पुत्री की तुला लग्न की कुंडली लेकर मेरे पास आएं। सप्तम भावाधिपति मंगल अतिवक्र होकर अष्टमभाव में स्थित था , ऐसी स्थिति में लड़की पूरी युवावस्था यानि 24 वर्ष से 48 वर्ष तक पति के सुख में कमी और घर-गृहस्थी में बाधा महसूस कर सकती थी , यह सोंचकर मैने उस लड़की को नौकरी कर अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह दी ,लेकिन अभिभावक तो लड़की की शादी करके ही निश्चिंत होना चाहते हैं ,उन्होनें दूसरे ज्योतिषी से संपर्क किया , जिसने अच्छी तरह कुंडली मिलवाकर अच्छे मुहूर्त में उसका विवाह करवा दिया। मात्र दो वर्ष के बाद ही एक एक्सीडेंट में उसके पति की मृत्यु हो गयी और वह लड़की अभी विधवा का जीवन व्यतीत कर रही हैं। मेरे पिताजी एक ज्योतिषी हैं पर उन्होने अपने सारे बच्चों की शादी में कुंडली मेलापक की कोई चर्चा नहीं की । क्या कोई पंडित 10 पुरुष और 10 स्त्रियो की कुंडली में से वर और कन्या की कुंडली को अलग कर सकता है , यदि नही तो वह किसी जोड़े को बनने से भी नहीं रोक सकता।
आज घर-धर में कम्प्यूटर और इंटरनेट के होने से मंगला-मंगली और कुंडली मेलापक की सुविधा घर-बैठे मिल जाने से यह और बड़ी समस्या बन गयी है। किन्ही भी दो बायोडाटा को डालकर उनका मैच देखना काफी आसान हो गया है , पर इसके चक्कर में अच्छे-अच्छे रिश्ते हाथ से निकलते देखे जाते हैं । उन दो बायोडाटा को डालकर देखने से ,जिनकी बिना कुंडली मिलाए शादी हुई है और जिनकी काफी अच्छी निभ रही है या जिनकी कुंडली मिलाकर शादी हुई है और जिनकी नहीं निभ रही है , कम्प्यूटर और उसमें डाले गए इस प्रोग्राम की पोल खोली जा सकती है। एक ज्योतिषी होने के नाते मेरा कर्तब्य है कि मै अभिभावकों को उचित राय दूं। मेरा उनसे अनुरोध हे कि वे पुरानी मान्यताओं पर ध्यान दिए बिना , कुंडली मेलापक की चर्चा किए बिना , अपने बच्चों का विवाह उपयुक्त पार्टनर ढूंढ़कर करें । किसी मंगला और मंगली की शादी भी सामान्य वर या कन्या से निश्चिंत होकर की जा सकती है।
4 टिप्पणियाँ
समय गुजर जायेगे , लौटकर न आयेंगे
जवाब देंहटाएंमंजिल कठिन हो अपनी,शास्त्र भूल जाएगे |
मनमें हो विश्वाष यदि,ईश्वर राह दिखाएँगे
जिह्वा वास सरस्वती,मंगल कहते आएगे ||
आदरणीय संगीता पुरी जी मेरी राय में तो यह फलित ज्योतिष ही अनुमान पर आधारित विद्या है जिसका उद्देश्य किसी की आजीविका चलाने से अधिक कुछ भी नहीं है।मैंने भी काफी रूचि से फलित ज्योतिष का काफी अध्ययन किया है और लोगों की कुण्डलियाँ देखकर उनका भविष्य कथन किया है लेकिन अब में इसका सबसे बड़ा आलोचक हूँ।आपने भी स्वयं इस विद्या पर विश्वास रखते हुए इस लेख को प्रकाशित किया इसके लिए बधाई की पात्र है।सच में बहुत अच्छा आलेख है आपका। http://samanvichar.blogspot.in
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता पुरी जी मेरी राय में तो यह फलित ज्योतिष ही अनुमान पर आधारित विद्या है जिसका उद्देश्य किसी की आजीविका चलाने से अधिक कुछ भी नहीं है।मैंने भी काफी रूचि से फलित ज्योतिष का काफी अध्ययन किया है और लोगों की कुण्डलियाँ देखकर उनका भविष्य कथन किया है लेकिन अब में इसका सबसे बड़ा आलोचक हूँ।आपने भी स्वयं इस विद्या पर विश्वास रखते हुए इस लेख को प्रकाशित किया इसके लिए बधाई की पात्र है।सच में बहुत अच्छा आलेख है आपका। http://samanvichar.blogspot.in
जवाब देंहटाएंज्योतिष वैज्ञानिक विद्द्या है...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.