पेशे से पुस्तक व्यवसायी तथा इलाहाबाद से प्रकाशित त्रैमासिक ’गुफ़्तगू’ के उप-संपादक वीनस केसरी की कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी इलाहाबाद से आपकी ग़ज़लों का प्रसारण भी हुआ है। आपकी एक पुस्तक “इल्म-ए-अरूज़” प्रकाशनाधीन है।
दिखा है झूठ में कुछ फ़ाइदा तो |
मगर मैं खुद से ही टकरा गया तो |
मुझे सच से मुहब्बत है, ये सच है,
पर उनका झूठ भी अच्छा लगा तो |
शराफत का तकाज़ा तो यही है,
रहें चुप सुन लिया कुछ अनकहा तो |
करूँगा मन्अ कैसे फिर उसे मैं,
दिया अपना जो उसने वास्ता तो |
रहीम इस बार तो 'कुट्टी' न होना,
अगर मैं राम से 'मिल्ली' हुआ तो |
रकीबों में वो गिनता है मुझे और,
गले भी लग गया मुझसे मिला तो |
हमें बस शायरी का शौक है, पर,
यही इक शौक भारी पड़ गया तो |
वो मानेगा मेरी बातें, ये सच है,
करेगा दिल की ही ज़िद पर अड़ा तो |
बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
डरे भी हो धुँआ उठने लगा तो |
1 टिप्पणियाँ
बने हो यूँ तो आतिशदान 'वीनस',
जवाब देंहटाएंडरे भी हो धुँआ उठने लगा तो
अच्छी गज़ल
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.