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रसानंद दे छंद नर्मदा ३१ ​​ : उपेन्द्रवज्रा [लेखमाला]- आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

साहित्य शिल्पी
साहित्य शिल्पी के पाठकों के लिये आचार्य संजीव वर्मा "सलिल" ले कर प्रस्तुत हुए हैं "छंद और उसके विधानों" पर केन्द्रित आलेख माला। आचार्य संजीव वर्मा सलिल को अंतर्जाल जगत में किसी परिचय की आवश्यकता नहीं। आपने नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई., एम. आई. जी. एस., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ए., एल-एल. बी., विशारद, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।

साहित्य सेवा आपको अपनी बुआ महीयसी महादेवी वर्मा तथा माँ स्व. शांति देवी से विरासत में मिली है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपने निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नाम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी 2008 आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपने हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में सृजन के साथ-साथ कई संस्कृत श्लोकों का हिंदी काव्यानुवाद किया है। आपकी प्रतिनिधि कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद 'Contemporary Hindi Poetry" नामक ग्रन्थ में संकलित है। आपके द्वारा संपादित समालोचनात्मक कृति 'समयजयी साहित्यशिल्पी भागवत प्रसाद मिश्र 'नियाज़' बहुचर्चित है।

आपको देश-विदेश में 12 राज्यों की 50 सस्थाओं ने 75 सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं- आचार्य, वाग्विदाम्बर, 20वीं शताब्दी रत्न, कायस्थ रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञान रत्न, कायस्थ कीर्तिध्वज, कायस्थ कुलभूषण, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, साहित्य वारिधि, साहित्य दीप, साहित्य भारती, साहित्य श्री (3), काव्य श्री, मानसरोवर, साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, हरी ठाकुर स्मृति सम्मान, बैरिस्टर छेदीलाल सम्मान, शायर वाकिफ सम्मान, रोहित कुमार सम्मान, वर्ष का व्यक्तित्व(4), शताब्दी का व्यक्तित्व आदि।

आपने अंतर्जाल पर हिंदी के विकास में बडी भूमिका निभाई है। साहित्य शिल्पी पर "काव्य का रचना शास्त्र (अलंकार परिचय)" स्तंभ से पाठक पूर्व में भी परिचित रहे हैं। प्रस्तुत है छंद पर इस महत्वपूर्ण लेख माला की इकतीसवीं कड़ी:
रसानंद दे छंद नर्मदा ३१ ​​ : उपेन्द्रवज्रा


दोहा, ​सोरठा, रोला, ​आल्हा, सार​,​ ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई​, ​हरिगीतिका, उल्लाला​,गीतिका,​घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर तथा मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी)छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए​ उपेन्द्रवज्रा छन्द ​से.........



छंद-लक्षण:

उपेन्द्र वज्रा द्विपदिक मात्रिक छंद है. इसके हर पद में क्रमश: जगण तगण जगण २ गुरु अर्थात ११ वर्ण और १७
मात्राएँ होती हैं.

उपेन्द्रवज्रा एक पद = जगण तगण जगण गुरु गुरु = १२१ / २२१ / १२१ / २२

उदाहरण:

१. सरोज तालाब गया नहाया
सरोद सायास गया बजाया
न हाथ रोका नत माथ बोला
तड़ाग झूमा नभ मुस्कुराया

२. हथेलियों ने जुड़ना न सीखा
हवेलियों ने झुकना न सीखा।
मिटा दिया है सहसा हवा ने-
फरेबियों से बचना न सीखा

३. जहाँ-जहाँ फूल खिलें वहाँ ही,
जहाँ-जहाँ शूल, चुभें वहाँ भी,
रखें जमा पैर, हटा न पाये-
भले महाकाल हमें मनायें।
***

*******************
- क्रमश:32

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5 टिप्पणियाँ

  1. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' जी को मेरा हृदय से प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  2. आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' जी को मेरा हृदय से प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  3. रमेश कुमार11 जून 2016 को 3:10 pm बजे

    आचार्य जी,
    जानकारी हेतु धन्यवाद...अच्छा आलेख

    जवाब देंहटाएं
  4. इतना अच्छी लाइने लिखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं

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