
१९५६ में कोण्डागांव (बस्तर) में जन्मी श्रीमती शकुंतला तरार एक वरिष्ठ कवयित्री और स्वतंत्र पत्रकार हैं। "बस्तर का क्रांतिवीर- गुण्डाधुर", "बस्तर की लोककथायें" आदि कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हल्बी भाषा में इनकी हाइकू रचनाओं का एक संग्रह भी प्रकाशित है।
दुनिया में जितनी उपमाएँ
माँ के आगे सब फीकी हैं
क्या होती कैसे होती है
माँ तो बस माँ ही होती है ॥
माँ है तो धरती चलती है
माँ है तो प्रकृति पलती है
माँ जीवन है माँ आँगन है
माँ बादल है माँ सावन है
दर्पण बन गढ़ती प्रतिमाएँ
माँ जननी बस माँ होती है॥
सुप्त निर्झर बहने लगता
चरण धूलि जहाँ माँ के पड़ते
फिर शुभमय शब्दों में ढलकर
वेद पुराण अध्याय हैं गढ़ते
ग्रंथों में उसकी रचनाएँ
मातृभूमि वही माँ होती है॥
माँ संघर्ष है माँ उत्कर्ष है
माँ प्रेरणा जीवन का हर्ष है
हर मुश्किल में साथ निभाती
हर विपदा को धूल चटाती
प्रगति पथ की वह कविताएँ
स्नेह का सोता माँ होती है॥
5 टिप्पणियाँ
वाह क्या बात है ...........सुन्दर पंक्तिया माँ है तो धरती चलती है
जवाब देंहटाएंमाँ है तो प्रकृति पलती है
मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाओं सहित , " ब्लॉग बुलेटिन की मदर्स डे स्पेशल बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंsundar !
जवाब देंहटाएंमाँ संघर्ष है माँ उत्कर्ष है
जवाब देंहटाएंमाँ प्रेरणा जीवन का हर्ष है
वाह...वाह..
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.