पेशे से पुस्तक व्यवसायी तथा इलाहाबाद से प्रकाशित त्रैमासिक ’गुफ़्तगू’ के उप-संपादक वीनस केसरी की कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आकाशवाणी इलाहाबाद से आपकी ग़ज़लों का प्रसारण भी हुआ है। आपकी एक पुस्तक “इल्म-ए-अरूज़” प्रकाशनाधीन है।
सुखन जो रोज़गार हो, तो हो रहे, हुआ करे
अदब जो दरकिनार हो, तो हो रहे, हुआ करे
अभी न फैसला हुआ, गलत सहीह का तो फिर
तुम्हें कुछ अख्तियार हो, तो हो रहे, हुआ करे
यकीन करके उसपे कर, रहा हूँ सारे फैसले
सनक में यह शुमार हो तो हो रहे, हुआ करे
बिखर गया वो शख्स जो, न चल सका समय के साथ
हज़ार शहसवार हो तो हो रहे, हुआ करे
उन्हें कहाँ समय कि, मेरे दिल का हाल जानते
मुझे जो उनसे प्यार हो, तो हो रहे, हुआ करे
ग़ज़ल की राह चुन ही ली, तो राह तो कठिन न कर
ये क्या कि, गुल हो, ख़ार हो, तो हो रहे, हुआ करे
अवाम को सहर की चाह, हुक्मरां ये कह रहा
घना जो अन्धकार हो, तो हो रहे, हुआ करे
ए दोस्त अब ये शहर हादिसों का शहर हो गया
न सोचना कि यार! हो, तो हो रहे, हुआ करे
ए वीनस अब वही करो, तुम्हारा दिल जो कह रहा
ख़फा जो बार बार हो, तो हो रहे, हुआ करे
3 टिप्पणियाँ
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंWaah
जवाब देंहटाएंgreat collection.................!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.