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सीता अपहरण केस [नाटक] - प्रेम जनमेजय

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प्रेम  जनमेजयरचनाकार परिचय:-





प्रेम जनमेजय
73 साक्षर अपार्टमैंट्स,ए-3, पश्चिम विहार नई दिल्ली-110063
फोनः 09811154440
Dr. Prem Janmejai
# 73 Saakshara Appartments
A- 3 Paschim Vihar, New Delhi - 110063
Phones:(Home) 011-91-11-25264227
(Mobile) 9811154440
सीता अपहरण केस
पात्र

थानेदार- हरि बाबू
थानेदार की पत्नी- पत्नी
पंडित
नेताजी
पत्राकार -सिन्हा
पुलिसवाला- कृष्ण सिंह
सिपाही
गरीब
सुनयना
राम
लक्ष्मण

सीता अपहरण केस
अंक-1
दृश्य-1
(रंगमंच पर अंधेरा। प्रकाश का एक गोल घेरा कुरसी पर बैठे रौबीले थानेदार पर आता है। उसका हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा हुआ है जिसमें डंडा पकड़ा हुआ है। दो-तीन फटे हाल गरीब जिनकी पीठ पर ‘भारतीय जनता’ लिखा हुआ है आरती का सामान लिए है। नेपथ्य से आरती का स्वर आता है।)
 
ओइम जै पुलिस हरे, स्वामी जै पुलिस हरे
भ्रष्ट जनों के संकट, पल में दूर करे
(गुंडेजनों के संकट) पल में दूर करे
ओइम जै...
जो चढ़ावा चढ़ावे सब, कष्ट मिटे उसका
संपत्ति घर की जावे, जब संग मिले इनका
ओइम जै...
तुम भ्रष्टाचार-सागर, तुम बदमाशी करता
तुमरे आसीरवाद बिना, डाका नहीं डलता।
ओइम जै...
तुम बिन हत्या न होती, अपहरण न हो पाता
तुम भ्रष्टाचार शिरोमणी, मंत्रियों के अन्नदाता।
ओइम जै...
दृश्य-2
(एक कमरा। सभी कमरे चारदीवारों से बनते हैं। इन दीवारों को सजाया भिन्न-भिन्न तरह से जाता है। इन दीवारों के भीतर जो ‘सजा’ होता है वही बताता है कि इसमें रहने वालों की हैसियत क्या है। जैसा रहने वाला होता है, दीवारों की वैसी ही सजावट होती है। जनता की झोपड़ी की सजावट, जनसेवकों की कोठी तथा वेश्याओं का कोठा, सिद्ध करते हैं कि हम सब मानव होते हुए भी ‘एक मानव’ नहीं हैं। यह कमरा राष्ट्र के महान सेवक थानेदार का है। क्योंकि कमरें में पलंग है अतः यह बेडरूम है।
खूंटी पर टंगी खाकी वर्दी और सरकारी निशान चिद्दित बैल्ट वैसा ही श्रद्धाभाव जन्म दे रही जैसा सपफेद कुर्ते, धेती और गांधी टोपी को देखकर होता है। देखने वाला स्वयं को ‘शिकार’ अनुभव करने लगता हैं। इधर-उधर बिखरा बहुमूल्य स्वदेशी और विदेशी सामान घोषणा कर रहा है कि यह अमूल्य है क्योंकि इसका कोई मूल्य नहीं दिया गया है।
थानेदार का कमरे में प्रवेश। वह कच्छे और बनियान में है। खूंटी से कमीज उठाकर पहनता है। इस बीच थानेदारनी का प्रवेश। उसके हाथ में पूजा की थाली ऐसे सुशोभित हो रही है जैसे किसी ठेकेदार के हाथ में रिश्वत की थैली। थानेदार खूंटी से पेंट उतारता है।)

पत्नी: ये क्या... आप पेंट पहन रहे हो...
थानेदारः और नहीं तो क्या इस नेशनल ड्रेस में थाने जाऊंगा। मैं थाने जा रहा हूं, किसी नाटक कंपनी में नहीं।
पत्नी: पर थाने क्यों जा रहे हो ? अभी रात ही तो आए हो वहां से... थोड़ा आराम कर लेते...
थानेदार: इलाके में जब कत्ल हो तो थानेदार के लिए आराम हराम होता है।
पत्नी: (आंख मटकाते हुए मुस्कराकर) हाय क्या इलाके में कल कत्ल हो गया ? कौन जात और धर्म था, क्या नाम था उसका ?
थानेदारः तुम्हारे जैसे धर्मिक अगर कोर्ट कचहरी में जज बन जाएं, थानों के थानेदार हो जाएं... तो मामले मिनटों में सुलट जाएं... ज्यादा तफतीश में जाने की जरूरत नहीं है... देखा कौन जात-का है और फट फैसला सुना दिया... नहीं तो अपने ऊपर वाले पर छोड़ दिया... और खुद हाथ में छैने पकड़ लिए। (हाथ जोड़ते हुए) धन्य हो भगत जी... धन्य हो।
पत्नी: (प्यार से आंख मटकाते हुए) चलो यह तो बता दो जिसका कत्ल हुआ है, वो मालदार है।
थानेदार: (प्यार से उसी तरह आंखे मटकाकर, आंखों में प्यार से झांकते हुए) हां, और जिस पर कत्ल का शक है, वह भी मालदार है।
पत्नी: जय हो ऊपर वाले की... तब तो मैं आपको बिल्कुल नहीं रोकूंगी (माथे पर तिलक लगाते हुए) ईश्वर करे आप दोनों तरफ से कामयाब हों। (प्यार से) देखो इस बार मैं मंदिर में सोने का छतर जरूर चढ़ाऊंगी और अपने लिए हीरों के टाप्स लूंगी। मैंने सोलह शुक्रवार का व्रत रखा हुआ है... माता रानी ने मेरी सुन ली है। सब ठीक हुआ तो बहुत बढ़िया उद्यापन करूंगी... नहीं नहीं... इस बार मैं सुंदर कांड का पाठ कराऊंगी। पिछले महीने वकीलन का पति झूठा मुकदमा जीत कर आया था... उसने कराया था। तब से अपने सुंदर कांड की तारीफें कर रही है, मुई! मैं भी उसे दिखा दूंगी कि सुंदर कांड का पाठ कहते किसे हैं। वो अगर वकीलन है तो मैं भी थानेदारनी हूं। ऐसा परसाद बाटूंगी की सब देखते रह जाएंगें। क्योंजी ? इस बार...
थानेदारः बिल्कुल ठीक है जी। इधर कत्ल कांड, उधर , सुंदर कांड। आप भगत लोग भी कोई न कोई कांड करते ही रहते हो। वैसे यह सुंदर कांड किस सुंदरी के साथ हुआ था जी?
पत्नी: आप भी बस ! यह तो रामायण के एक अध्याय का नाम है। सीता जी को जब रावण उठा कर ले गया था..
थानेदारः यानि किडनैप हुआ और आप कहते हो कांड नहीं हुआ।...
पत्नी: आपको कुछ पता तो है नहीं...
थानेदार: अच्छा है कि मुझे कुछ पता नहीं है, वरना ऐसा केस बनाता किडनैपिंग का कि तुम्हारा वो पंडित भोलानाथ...
(इस बीच जय श्रीराम का नारा-सा लगाते हुए पंडित भोलानाथ का प्रवेश।)
...यह लो शैतान का नाम लो और शैतान जी हाजिर।
पत्नी: (प्यारभरी नाराजगी के साथ थानेदार को देखती है। पंडित का गदगद भाव से स्वागत करते हुए)
आइए पंडित जी, हमारे धन्य भाग कि आप पधारे। हम अभी आप की ही बात कर रहे थे। बहुत जल्दी मैं अपने घर सुंदरकांड का पाठ रख रही हूं।
पंडित: बहुत उत्तम विचार है देवी ! इस पाठ से सारे संकट दूर हो जाते हैं।
थानेदार: किसके संकट... हमारे या आपके?जहां आप की दक्षिणा का विचार हो वो विचार सदा उत्तम ही होता है, ब्राह्मण देवता!
पत्नी: आप भी बस... (पंडित से) आप तो जानते ही, ये बड़े मजाकिया हैं। पुलिस की नौकरी में भी मजाक कर लेते हैं... आपके लिए दूध् लाउ या...
पंडित: नहीं देवी, आज मैं जल्दी में हूं। आप के यहां जब भी आता हूं तृप्त होकर ही जाता हूं... आज क्षमा करें... आप तो बस... आज महीने का पहला शुक्रवार है और... (पंडित हाथ मलते हुए)
पत्नी: मुझे याद है पंडितजी, आज आपकी दक्षिणा का दिन...(थानेदार से) सुनो जी , आपके पास 201 रुपए होगें... पंडितजी को...
थानेदार: आप भी पंडित जी हमारी तरह अपनी ड्यूटी के पक्के हो ... आंधी हो, बरसात हो महीना लेना नहीं भूलते... (जेब से पर्स निकालने को होता है)
पत्नी: रुकिए, पंडितजी के लिए मैं आपकी नेक कमाई से, जो हर महीने धरम-करम के लिए निकालती हूं, उसमें से दूंगी।
थानेदार: भाग्यवान, उपर की कमाई उपरवाले की मेहरबानी से ही मिलती है... उपरवाले की मेहरबानी से मिलने वाली कमाई से बढ़कर क्या नेक होगा ? तनखाह तो सरकार की मेहरबानी से मिलती है और हमारे देश की सरकार कितने नेक बाहुबलियों से चल रही है... सब जानते हैं। वैसे भी पंडित जी के पास जाकर हर पैसा नेक ही हो जाता है, क्यों पंडित जी ?
पंडित: हां जजमान, चंदन पर सांप लिपटे रहें तो भी उस पर विष नहीं व्याप्तता...
थानेदार: सांप का विष भी चंदन नहीं होता पंडित जी !
पंडित: मुझे विलंब हो रहा है... आपके कल्याण के लिए देवी की पूजा भी...
थानेदार: (पंडित से) और पूजा समय पर ना हुई तो अनिष्ट हो सकता है... यह आपका अनिष्ट वाला डंडा हम पुलिस वालों के डंडे से भी तगड़ा होता है। (रुपए देते हुए) यह लो अपने महीने की दक्षिणा। (पंडित रुपए को जैसे झपटता है और जयश्रीराम कहता हुआ तेजी से प्रस्थान करता है।)
थानेदार: बहुत जल्दी में है आज तुम्हारा पंडित, लगता है कोई मोटी असामी फंसी हुई है। आज तो मुफत की भी नहीं खाकर गया और दस रुपल्ली का आशीर्वाद भी नहीं देकर गया, साला ।
पत्नी: आप भी वैसे ही बेचारे के पीछे लगे रहते हो...आप को कुछ पता तो है नहीं... मैंने कितनी बार कहा कि धर्म-कर्म के मामले में बोला मत करो जी...
(तोता मैना स्टाइल में दोनों पास-पास बैठ जाते हैं। आंखों में आंखें मिलाकर, युवा पे्रमियों की तरह लय में कहते हैं।)
थानेदारः बिल्कुल ठीक है जी... तुम्हें जो करना हो करो जी... मैंने कभी मना किया है जी...?
पत्नी: नहीं जी...।
थानेदारः तो पूजा पाठ के इन कांडों के चक्करों में मुझे मत घसीटा करो जी... तेरी पूजा में एक आध् घंटे बैठता हूं तो तेरे ऊपर वाले के चक्कर में मुझे हो जाती है बवासीर जी।
पत्नी: ऐसा नहीं कहना जी... ऊपर वाले की मेहरबानी से हमारा घर भरा पूरा है जी... उसका शुक्र तो अदा करना ही होता है जी..
थानेदार: तो तुम करो जी... मैंने तुम्हें खड़ताल बजाने से कभी रोका है जी...?
पत्नी: नहीं जी... मैंने आपको मीट-मांस खाने से रोका जी?
थानेदारः नहीं जी... मैंने तुम्हें चरणामृत पीने से रोका जी?
पत्नी: नहीं जी... मैंने आपको शराब पीने से रोका जी...?
थानेदारः नहीं जी... मैंने तुम्हें मंदिर गुरुद्वारे जाने पर रोका जी...
पत्नी: नहीं जी... मैंने आपको इधर -उधर मुंह मारने पर टोका जी...?
थानेदार: नहीं जी... इसलिए हमारी गाड़ी अलग-अलग पटरियों पर चलती हुई साथ-साथ चल रही है जी...
पत्नी: इसलिए हमारे दिलों में प्यार का पवित्र सागर हिलोरे मार रहा है जी।
थानेदारः इसलिए हमारे दिलों में प्यार की शराब बह रही है जी।
पत्नी: मैं ऊपर वाले के गुणगान में झूमती रहती हूं।
थानेदारः मैं ऊपर की कमाई में झूमता रहता हूं।
दोनो: हम दोनों झूम रहे हैं... जिंदगी के मजे लूट रहे हैं... इसी को कहते हैं सह-अस्तित्व।
(दोनों प्यार से झूमते हैं। प्रकाश गोलाकार उन पर पड़ता है... दोनों नृत्य की मुद्रा में स्थिर)
दूसरा दृश्य
 
(थानेदार का ड्राईंग कम डाइनिंग रूम। ड्राईंग इसलिए क्योंकि इसमें एक सोफा, सेंटर टेबल, और डाइनिंग टेबल है। सोफे पर जो समान बिखरा पड़ा है, वो बहुमूल्य सोफे को कबाड़ बना रहा है। डाइनिंग टेबल पर खाने का सामान कम, मैले कपड़े अधिक हैं। थानेदार की पत्नी भजन गुनगुनाते हुए डाइनिंग टेबल पर पड़े मैले कपड़े हटाती जा रही है और नाश्ता लगाती जा रही है। पास ही धीमे स्वर में फिल्मी गाना आ रहा है।... मेरे तो गिरार गोपाल दूसरा न कोई... थानेदार का प्रवेश, हाथ में बेल्ट पकड़ी है। आते ही रेडियो की नॉब छेड़ता है.. तेज स्वर में गाना बजता है-जब तक रहेगा समोसे में आलू।)
पत्नी: (थानेदार की ओर से देखती हैं। हाथ के इशारे से वाल्यूम धीरे करने को कहती हैं। थानेदार धीरे करता है।)
थानेदारः यह क्या कर रही हो... मेरे पास नाश्ते का टाईम नहीं है।
पत्नी: देखो जी... तुम्हें कत्ल की तफतीश पर जाना है। न जाने कितना टाईम लगे।
थानेदारः कत्ल की तफतीश पर जाना है इसलिए घर से खाकर नहीं जाना है... साले इतना ठूंस ठूंस कर खिलाएंगे...अपना ससुराल याद आ जाएगा। ऐसी वैसी पार्टी नहीं है...कपड़े फाड़-फाड़कर खिलाएगी...इशारा कर दिया तो होम डिलिवरी भी कर देगी...
पत्नी: चलो आपकी मरजी... मेरा तो आज व्रत है... यह नाश्ता मंदिर में गरीबों को बांट दूंगी...
थानेदारः एक गरीब दास हमारे घर में भी तो है...
पत्नी: कौन ?
थानेदारः ओई... महापंडित, महाज्ञानी, महाकवि ‘कलंक’... तुम्हारा भाई...
पत्नी: कलंक नही मयंक है उसका नाम...आप तो ऐसे ही उसके पीछे पड़े रहते हैं...वो बेचारा गरीब आपके घर का क्या खाता है..
थानेदारः यही तो अपफसोस है साला खाता कम है पीता ज्यादा है... बिना बोतल गटके साले की कविता नहीं उतरती है...
पत्नी: बहुत नाम है उसका... जगह-जगह से बुलावे आते हैं उसको... बड़ी सोणी कविता लिखता है...
थानेदारः आजतक उसकी कोई सोणी कविता समझ आई है... न कोई सिर होता है न पैर...
पत्नी: बड़े दिमाग वाली कविता लिखता है...
थानेदारः अपने जैसों के दिमाग में तो आती नहीं है परसो मेरे पीछे ही पड़ गया... जीजाजी एक पटियाला बनाओ। मैं आपको कविता सुनाऊंगा। मेरी तो घिग्गी बंध गई। मैंने कहा जरूरी काम से जाना है... पर वो तो पूरा बेशर्म है। जेब से कविता निकाल ही ली। इस बीच फोन बज उठा। मुझे लगा जैसे तंगहाली के मौसम में कत्ल का केस फंस गया हो। मैंने साले को कितना कहा, कविता रख जा मैं फोन के बाद पढ़ लूंगा पर वो भी साला ढीठ बोला आप काम कर लें... साला पंद्रह मिनट तक इंतजार करता रहा कब मैं फोन रखूं और वह मेरे भेजे में कविता घुसेड़े। साला इतना चिपकू तो फेवीकोल भी नहीं होता है। जब तक मैंने फोन रखा नहीं वो हाथ में कविता लिए खड़ा रहा। मेरे फोन रखते ही पता नहीं पंद्रह मिनट क्या बोल गया... और कुछ देर बोलता तो मुझे ब्रेन हेमरेज ही हो जाता... कविता भी ऐसी बोलता है जैसे कब्जी हो गयी हो... मेज पर से एक कागज उठाता है। उसे पढ़ता है... ले सुन अपने भाई की करतूत।

चिड़िया

ठंडे खून वाली चिड़िया
मेरे पेट से उगा एक पेड़
उस पर बैठी चिड़िया
आंखें सूने में ढूंढ़ती है
मुर्दे के पेट पर जा बैठी चिड़िया
मेरे सिर पर बैठा एक कौआ
ओ मेरे प्रभु
मुझे इतने कौए मत देना
कि मेरी लाश के नीचे
मेरे मरने पर करे कांव-कांव।

इस साली कविता का कुछ समय आया तो मुझे भी समझा दे।
पत्नी: आजकल की कविता ऐसे ही होती है ...पढ़े लिखों के लिए होती हैं।
थानेदारः तो भई हम अनपढ़ों के पीछे क्यों पड़ते हैं... हम तो यह जानते हैं कि कविता तो वो जो समझ आ जाए... गुनगुनाने का मन करे... दिल को छू जाए। गालिब के बचपन में पढ़े शेर आज भी याद हैं मुझे... तुझे भी तो भजन याद हैं। बुल्ले शाह... क्या बात है। पुराने टैम के ही हैं न... आज की कौन सी कविता तुझे याद है सोनयो।
पत्नी: कविता-शविता छोड़ो जी हमें कौन-सी गोष्ठी करनी है। आप तो अपनी ड्यूटी पर ध्यान दो, कत्ल के केस पर ध्यान दो। लो एक बात तो मैं बताना भूल गयी...सुबह आप सो रहे थे तो नेता जी का फोन आया था...आने की कह रहा था...थोड़ी देर में।
थानेदारः साला जरूर कातिल की सिफारिश लेकर अपना हिस्सा बनाएगा। (जूता पहनते हुए) मैं निकल रहा हूं। आए तो बोल देना सुबह-सुबह निकल गए। (दरवाजे की घंटी बजती है।) लगता है शैतान हाजिर हो गया है।
(थानेदार एक जूता पहने दूसरे में जुराब पहने और हाथ में जूता पकड़े बेडरूम की ओर जाते हुए) मैं दूसरे कमरे में जा रहा हूं... हरामजादे को टरका देना...(दोबारा घंटी बजती है) साला आता भी फायर ब्रिगेड के इंजन की तरह है...

(थानेदा जीवन में नैतिकता की तरह कमरे से गायब होता है... पत्नी खुली अर्थव्यवस्था का बंद दरवाजा खोलती है। नेताजी ने सपफेद झक कुरता धेती पहनी है, जैसे चीनी की दलाली की कोठरी से निकला हों। सिर पर गांधी टोपी, मानो मंत्राीमंडल में जबरदस्ती कोई फिट किया गया हो।)
 
नेताजीः सीताराम, सीताराम, सीताराम भाभी... आप तो साक्षात सीता मैया लगती हैं…चेहरे पर क्या तेज है, पहनावे में क्या सादगी है।
पत्नी: सादगी आपमें भी बहुत है भैया...खादी के अलावा कुछ नहीं पहनते हैं।(अंगुली की ओर देखकर) यह हीरे की अंगूठी अभी बनवाई..(नेताजी के हाथ में सोने का कड़ा है...अंगुलियों को दर्शकों की ओर करते हुए।हाथ बहुमूलय अंगूठियों से लदा है।)
नेता जीः है--हैं-- एक ज्योतिषी ने बोला पहन लो। इस छोटे से कस्बे से इस बार एम.पी. की सीट पक्की है... एक बार एम.पी. बन गया तो सेंटर में मंत्री पक्का बनूंगा और फिर आपको और हरि भैया को दिल्ली ले जाऊंगा। देखना खूब ठाठ कराऊंगा। लाल बत्ती वाली गाड़ी होगी, बंगला होगा, हमारे हरि भैया हैं कहां... मोहन प्यारे अभी जागे नहीं क्या !
पत्नी: जाग तो बहुत पहले गए। इधर मैं मंदिर गई और उधर वो थाने...
नेताजी: (भाभी शब्द को लटका कर बोलता है) भाभी हम लोगों की तो रोजी-रोटी झूठ के बिना चलती नहीं है... झूठे वायदे नहीं करें तो वोट नहीं मिलते... हाई कमान की झूठन न खाएं...झूठी मक्खनबाजी न करें, तो... टिकट नहीं मिलता... झूठे टेंडर न पास करें तो व्यापारियों का स्पोर्ट नहीं मिलता... झूठे दावे न करें तो हमें अपोजिशन खा जाए... झूठ के दम पर न चलें तो, हस्ती ही मिट जाए। पर भाभी... आप तो सत्य की देवी हैं... साक्षात सीता मैया हैं... आप आज कैसे असत्य वचन कह रही हैं...वह भी सुबह-सुबह। शाम-शाम को कोई झूठ बोले तो समझ आता है... पर सुबह-सुबह, भाभी...
पत्नी: पर मैंने झूठ कहां बोला?
नेताजी: प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं... हाथ कंगन को आरसी क्या... पढ़े-लिखे को अंग्रेजी क्या और भाभी हमारे जैसे नेताओं के होते भ्रष्टाचार का उदाहरण देने की जरूरत क्या ? जब...
पत्नी: भैया तुम बोलते बहुत हो...
नेताजी: भाभी हम खाते ही बोलने का हैं... हम क्या स्कूल कॉलेजों के मास्टर ...आपके साधु संत कथावाचक...सबकी दूकान इसलिए सजी हुई है कि अच्छा बोले लेते हैं...
पत्नी: और तुम्हारी तरह काम की बात एक नहीं करते हैं...
नेताजीः भाभी काम क्रोध् से हम दूर रहने वाले जीव हैं...आपके गिरिधर गोपाल ने भी तो गीता में काम से दूर रहने की शिक्षा दी है।
पत्नी: मैं उस काम वासना की बात नहीं कर रही हूं... मैं कर्म की बात कर रही हूं... तुम लोग बोलते ज्यादा हो कर्म या तो करते नहीं और करते हो तो उल्टा करते हो...
नेता: भाभी आप तो नाहक ही मेरी प्रशंसा कर रही हैं... मुझमें कहां ऐसे गुण हैं...
पत्नी: अच्छा अवगुणी जी काम की बात पर आइए और मुझ अज्ञानी को बताइए कि मैने सुबह-सुबह क्या झूठ बोला है...
नेता: आपने कहा कि हरि भाई सुबह-सुबह चले गए हैं...
पत्नी: इसमें मैंने झूठ क्या कहा ?
नेता: भाभी जैसे हम नेताओं की पहचान इस टोपी से है... अब खादी का कुर्ता और धोती तो कोई भी ऐरा गैरा पहन सकता है... फैशन में कई लोग पहनते हैं... पर हर कोई नेता तो नहीं हो जाता... नेता की पहचान होती है उसकी इस टोपी से... आजादी की लड़ाई में यह टोपी पहनना इबादत की बात होती थी। आज कोई भला आदमी पहनता है क्या ? देश सेवा के लिए हम ही पहनते हैं... तो भाभी जैसे हम देश सेवकों की पहचान टोपी से होती है... वैसे ही जन रक्षकों, पुलिस वालों, की पहचान इस (बेल्ट उठाते हुए) पेटी से होती है।... इस पेटी के बिना खाकी वर्दी की कोई कीमत नहीं... समझो कि जैसे बिन स्टेथेस्कोप के डॉक्टर, बिना काले कोट के वकील और बिना बोझ के धोबी का गधा। हम सेवक ड्यूटी पर जाते समय टोपी पहनना नहीं भूलते और जनरक्षक ड्यूटी पर जाते समय बेल्ट पहनना नहीं भूलते.. जब पेटी यहां है तो पेटी वाला भी यहीं होगा... तो मी लॉर्ड इससे सि) हुआ कि आपने झूठ कहा कि इधर आप मंदिर गई और हरि भाई डयूटी पर गए...
पत्नी: (शांत भाव से) मैंने असत्य नहीं कहा भाई साहब... मैं मंदिर गई थी, और आपके हरि भैया डयूटी पर गए थे... सुबह गए तो लौट नहीं सकते हैं कि नहीं... लौट आए हों... उन्हें स्नान ध्यान करने का अधिकार है कि नहीं।
नेता जी: (हंसते हुए) क्यों नहीं...पर केवल स्नान करने का, क्योंकि ध्यान करना तो आपका फील्ड है ? वैसे भाभी आपको तो वकील होना चाहिए... क्या बात पलटती हैं... (नाश्ते की ओर लपकते हुए) जब तक हरि भाई आते हैं... हम नाश्ते पर...
(बेचारा थानेदार एक बार हकीकत में तैयार होने की प्रक्रिया निभा चुका था। अब उसे तैयार होने की नौटंकी करनी थी। ऐसी नौटंकी करते हुए उसने प्रवेश किया)
थानेदारः क्यों नेता जी आज सुबह-सुबह हमारा ही घर मिला मुफत की खाने को...
नेताजीः (समोसा खाते हुए) ठीक कहा हरि भाई... वैसे तो हम अपने धंधे के लोगों के यहां मुफत का खाते नहीं हैं... पर सामने पड़ा मिल जाए तो छोड़ते नहीं हैं...
थानेदारः इसे ही कहते हैं मुफतखोर को मुफत की मिल ही जाती है।
नेताजीः नहीं... इसे कहते हैं चोर के घर में मोर ... क्यों भाभी...(थानेदारनी बस मुस्करा देती है)
थानेदार: कहिए मोर जी... सुबह-सुबह कौन-सा नाच दिखाने के लिए आपने हमारे यहां पधरने का कष्ट किया... चुनाव के बादल भी नहीं छाए हैं फिर ये बिन मौसम नाच कैसा?
पत्नी: आप दोनों देशसेवा की चर्चा करो। मैं चाय बना लाती हूं। (जाती है।)
नेताजीः हैं--हैं-- हम तो जन सेवक हैं... जनता की सेवा के लिए साल में 365 दिन नाचते हैं, लीप ईयर में 366 दिन।
थानेदारः आज किस जन की अंगुलियों पर नाचने आए हैं?
नेताजीः वही रात वाला मामला... छोटे सेठ के कत्ल का... मुझे जरा देर से पता चला वरना मौकाए वारदात पर पकड़ लेता, घर में कष्ट न देता।
थानेदारः हमारे कष्ट की चिंता न करें... हमारी तो यह ड्यूटी है सरकारी ड्यूटी... आपने क्यों कष्ट किया ?
नेता: हमारी भी ड्यूटी है... जनता के सेवक हैं हम... आप तो जानते ही हैं बड़े सेठ जी जन-कार्यों के लिए हमारी पार्टी की कितनी मदद करते हैं...ऐसे दयालु और दानी के छोटे भाई की हत्या हुई हो और हम चुप बैठे रहें... धिक्कार है हमें.. यह किसी व्यक्ति की हत्या नहीं है, पूरे लोकतंत्र की हत्या है।
थानेदारः अबे ओ... तेरी तो... भाषण मत झाड़। यह मेरा घर है.. चुनाव का दंगल नहीं। काम की बात कर।
नेता: काम यानि सेक्स की बात करूं? (हँसता है) सुन (पफुसपफुसाते हुए) अभी एक पेटी की बात हुई है... ज्यादा भी हो सकती है... इस मामले में खेमचंद को जरूर फंसाना है... शक भी उसी पर जा रहा है...
थानेदारः शक उस पर नहीं उसके भतीजे पर है...
नेता: बात एक ही है चाचे के साथ भतीजे का गहरा संबंध् होता है...
थानेदारः कत्ल में भी भाई-भतीजावाद... धन्य हो सेवक जी... मैं कोशिश करूंगा।
नेता: शाम को आधी पेटी पहुंच जाएगी (चाय लेकर थानेदारनी आती है)
थानेदारनीः आप भी नेता भैया किसी बात को लेकर बैठ ही जाते हैं...
नेता: क्यों क्या हुआ भाभी...
पत्नी: वही पेटी वाली बात...
थानेदार: पेटी वाली बात... ओए तू हमारी जनानी से बिजनेस की बात करता है ... साला...
नेता: शांत... शांत... थानाधिकारी शांत... मैंने सुबह थानेदारनी से जिस पेटी की बात की थी उसे अंगेजी में बेल्ट कहते हैं और वो इस समय आपकी कमर में ऐसे ही बंधी हुई है जैसे किसी पेड़ के साथ लता लिपटी होती है... (चाय सुड़कते हुए कहता है।) चाय बहुत अच्छी बनी है भाभी और (चाय को मेज पर रखकर) हाथ जोड़ते हुए हे देवी, जगत जननी अभी मैं जिस पेटी की बात कर रहा था... वह हमारे बिजनेस का कोड वर्ड है यानि कूट शब्द... इसे मैं आपको समझा नहीं सकता...
(इतनी देर में नीचे से स्कूटर की आवाज आती है)
थानेदार: ये कौन आ गया...
पत्नी: ये तो सिन्हा के स्कूटर की आवाज है। लगता है... नारद जी आए हैं... (खिड़की की ओर देखते हुए) वही है...
नेता: साला ब्लैकमेलर... रिपोर्टर... साले ने मुझे यहां देख लिया तो न जाने क्या मिर्च मसाला लगाकर खबर छाप देगा...आजकल तो इन साले पत्राकारों की जी-जान से सेवा करनी पड़ती है...न जाने कब कहां कैमरा फिट कर दें। ये कमीना सिन्हा...खेमचंद का माल खाकर मुझ पर गुर्राता है... मैं पिछवाड़े से निकलता हूं।
थानेदारः ( हंसते हुए ये आप पिछवाड़े की राजनीति कब छोड़ेंगे देशसेवक जी?
नेता: आजकल वही सफल है जिसका पिछवाड़ा मजबूत है... तुम तो जानते ही हो... तुम लोगों का तो पिछवाडे़ से खास वास्ता रहता है... जिसका पिछवाड़ा मजबूत नहीं होता, वो दो चार डंडों में ही बोल जाता है। हमारे पिछवाडे़ पर भी जनता, हाईकमांड, आदि पडे़ रहते हैं... साला पिछवाड़ा मजबूत न होगा तो अगवाड़ा कैसे जमेगा ! चलता हूं। (नेता जाता है)
पत्नी: क्या बोलना है उसे... कह दूं आप घर पर नहीं हैं...
थानेदारः नहीं आने दे उसे... देखता हूं खेमचंद का यह दलाल क्या कहता है... (घंटी बजती है) (थानेदार जूते उतारने लगता है।)
पत्नी: ये जूते क्यों उतार रहे हो आज जाना नहीं है क्या...
थानेदारः जाना क्यों नहीं है... पहले ही बहुत लेट हो गया हूं
पत्नी: नंगे पैर जाओगे?
थानेदारः भक्त जी... जूते सिन्हा के सामने पहनूंगा तो वो समझेगा जाने की जल्दी में हूं... जूते पहनने की नौटंकी करनी है...
पत्नी: तो ये बात सीधे मुंह से बोल दो... जूते खोलकर क्यों बोलना... (दोबारा घंटी बजती है)
थानेदारः चल जल्दी दरवाजा खोल... तू भी दिमाग बहुत खाती है... पता नहीं तुम्हारा भगवान भी अपने भक्तों को कैसे-कैसे दिमाग देता है। (थानेदारनी दरवाजा खोलने जाती है, और थानेदार दूसरा जूते के फीते खोलकर उसे दोबारा बांधने की नौटंकी करने लगते है।)
नेपथ्य से: जीवन में नौटंकियों का बहुत महत्व है। इनके अभाव में जीवन सीधा-साधा साफ-सुथरा सा बनता है। आदमी जो हो वही दिखाई देने लगता है। नौटंकी जीवन में हमें अनेक सच्चाइयों का सामना करने से बचाती है।
सिन्हाः (बिहारी उच्चारण) कैसे हैं थानेदार जी ... कहीं जाने की तैयारी है क्या ?
थानेदारः आओ सिन्हा... भई हम तुम्हारे जैसे खुशनसीब तो हैं नहीं... वारदात वाली जगह गए दो चार कलम घसीटी और हो गई ड्यूटी... हमें तो वारदात वाली जगह जाना पड़ता है, और फिर थाने को भी संभालना पड़ता है। वहीं जा रहा हूं...
सिन्हाः का है कि... हमारी नौकरी में जो फालतू दिमाग लगाना पड़ा है उसे आप नहीं समझ सकते हैं... कत्ल वाले मामले के चक्कर में जा रहे होंगे... कोई गिरफतारी-विरफतारी की क्या...
थानेदारः वो भी करनी ही है...
सिन्हा: देखिए, ऊ भ्रष्ट नेता के चक्कर में खेमचंद पर तो हाथ नहीं डाल रहे हैं ?
थानेदारः मैं किसी के दबाव में काम नहीं करता... सिन्हा !
सिन्हाः लक्ष्मी मैया के दबाव में भी नहीं (हंसता है) हरि बाबू ऊ के दबाव को तो विष्णु भगवान भी मानते हैं... और उस हमाम में सभी नंगे हैं... तो हम कह रहे थे कि ऊ भ्रष्ट नेता इस मामले में आपको गुमराह करेगा... तभी तो सुबह-सुबह आपके यहां हाजिरी दे गया है...
थानेदारः मेरे यहां हाजिरी...! वो तो यहां...
सिन्हाः (टोपी को ऊंगली में चक्र की तरह घुमाते हुए) यह पवित्र टोपी उसी हरामी की है,आपके चरणों में डालने आया होगा...
थानेदारः (बेशर्मी से हंसते हुए) तुम भी सिन्हा पूरे खोते पत्राकार हो...
सिन्हाः और हम ई भी बता देते हैं कि वो ससुरवा इस समय अपनी टोपी के चक्कर में आपके घर के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा होगा... ताक में होगा कि कब हम निकलें और वो अपनी टोपी संभाले... बिना टोपी के साला धोबी का कुत्ता लगता है...क्या आफर कर गया है ?
थानेदारः टेड सिक्रेट...सिन्हा...सिन्हा ट्रेड सिक्रेट। तुम जानो इस मामले में हम गुप्त ज्ञानी हैं... इधर का माल उधर चाहे कर दें... पर इधर की बात उधर नहीं होने देते... सारा ज्ञान गुप्त ही रखते हैं। आज तक तुम्हारी बात नेता तक पहुंची है...
(थानेदार की पत्नी का प्रवेश, हाथ में पानी का गिलास है।)
सिन्हा : परनाम भौजी...।
पत्नी : जीते रहो देवरजी।
सिन्हा : आपके सुबह सुबह दरसन हो जाते हैं ता मन परसन्न हो जाता है। आपके दरसन के परताप से सारे रुके काम बन जाते हैं। खेमचंद आपको बहुत मानते हैं, भाभी जी वो आपका बहुत सम्मान करते हैं... उनके भतीजे को कत्ल के चक्कर में फंसाया जा रहा है... खेमचंद जी इस बात से बहुत परेशान हैं... हमसे बोले, हरि बाबू और तुम्हारे जैसे अपने लोगों के होते हमारा भतीजे पर केस बने, हम पर अंगुली उठे, बहुत सरम की बात है... बोले हरि बाबू की पत्नी धरम-करम करने वाली है... उनकी बदौलत ही धरम-करम बचा हुआ है... बहुत बिसवास करते हैं... बोले हम तो डेढ़ पेटी उनके चरणों पर अर्पित कर देवेंगे, चाहे जिस में खरच करें। किस साले में हिम्मत होगी उनसे हिसाब लेने की... मुझे बोले सिन्हा ये आधी पेटी तुम अभी ले जावो...फिर बोले शाम को हम खुद ही चलेंगे और उस देवी के दरसन भी कर लेवेंगे। क्यों हरिबाबू।
थानेदारः देखो, सिन्हा... धरम-करम में हम कभी टांग नहीं अड़ाते हैं... दसहरे पर दस जगह रामलीला होती है... हजारों रुपया चढ़ावे का आता है... हमने कभी कुछ बोला नहीं है... आपकी रामलीला समिति में हमने कभी कुछ हिसाब, किताब की बात की है अपने मुंह से हफता मांगा... जिसकी जो श्रद्धा हो सो करे... खेमचंद की धरम-करम में श्रद्धा है सो करे... हम क्या कह सकते हैं... धरम-करम करेंगे तो ही फल पावेंगे।
सिन्हाः (मुस्कराते हुए) सही कहा धरम-करम करेंगे तो ही फल भी पावेंगे... अपना ही अजीज समझना... केस थोड़ा ढीला ही बने... बाकी तो आप समझदार ही हैं...
थानेदारः और तू कम समझदार है... साला सिद्धांतवादी...
सिन्हाः (टोपी उठाते हुए) अच्छा चलते हैं... तुमको भी तो जल्दी है... मेरे साथ चलो, थाने ड्राप कर दूंगा...
थानेदारः (उठते हुए) टोपी रख दो सिन्हा... तुम तो जानते हो साले कि हम माल इधर का उधर कर दें पर किसी की बात इधर की उधर नहीं होने देते हैं... ... साले पूरी बोतल पीकर भी होश गायब होने नहीं देते...टोपी रख दे सिन्हा
सिन्हा: सिद्धांत के बड़े पक्के हो।
थानेदारः अपना सिद्धांत है खुद खाओं और दूसरे को भी खिलाओ... स्वर्ग भी यहीं और नर्क भी यहीं...जो खुद खाता है और दूसरे को भी खिलाता है वह स्वर्ग में रहता है और जो न खाता है और न दूसरे को खाने देता है, वह नर्क खुद तो नर्क मे रहता ही अपने बीवी बच्चों को भी रखता है...सिन्हा तूं भी तो कम सिद्धांतवादी नहीं है...
सिन्हा: ... उस हरामी की टोपी नहीं उठाने दी... सच्चा सिद्धांतवादी तो तू है... हमें अखबार में लिखना तेरे बारे में
(दोनों हंसते हैं। अंधेरा)
दोनों: हम दोनों सिद्धांतवादियों के कारण देश में उजाला है, (प्रकाश होता है) देश प्रगति के रास्ते पर दौड़ रहा है (दोनो लड़खड़ाते हुए चलते हैं।)
कितनी तेजी से दौड़ रहा है (दोनों हंसते हैं, गिरते हैं। ) साला देश गिर गया।
थानेदारः समझदार तो तुम भी कम नहीं हो सिन्हा।
सिन्हाः तो दोनों की इस समझदारी पर बिलायती चरणामृत हो जावे...(अंगूठे को मुंह पर ले जाते हुए शराब पीने का इशारा करता है।)
थानेदार: चलो सिन्हा तुम भी क्या याद रखोगे...आज हम तुम्हारे दिन की शुरुआत स्कॉच से करवा देते हैं।...हम ये सोच रहे थे ...सुबह सुबह चाय पीकर साला मुंह का जायका ही खराब हो गया...
सिन्हाः उस हरामी भ्रष्टाचारी नेता के साथ रहोगे तो जिंदगी का जायका खराब होवेगा कि नहीं... (थानेदार बार की अलमारी खोलता है... सिन्हा जीभ लपलपाता है... उचक कर देखता है... बार में विदेशी स्काच की बोतलों का ढेर है...)
सिन्हाः कमाल है हरि बाबू आपके यहां तो जन्नतवा है... विराज रही है साला शराब का दरिया बह रहा है...
(थानेदार गिलास लाकर सिन्हा को देता है)
थानेदारः अब नजर मत लगाना... शराब देखकर तुम साले पत्राकारों की लार टपकती है... इतनी हराम की पीते हो पचाते कैसे हो...
सिन्हा: जैसे तुम साले पचाते हो... हंसता है... (दोनों जाम से जाम टकराते हैं..) दोनों का हाजमा दुरुस्त है आज का यह जाम कत्ल के नाम... (एक घूंट में पीता है) देश की माली हालत जैसा मरियल पैग बनाया... पंजाबी आदमी है... जरा सुपर पटियाला बना... पंजाबी हाथ दिखा...
थानेदारः ओए तूने पंजाबियों का हाथ नहीं देखा है... साले शराब में नहला सकता हूं नहला... पर (पैग बनाने जाता है) पर साले तुम नहाते समय कुछ और राग अलापते हो... और अखबार में कुछ और अलापते हो...
सिन्हा: हम तो जो लिखते हैं सच लिखते हैं...
थानेदार: और वो सच तुम्हारा होता है...
सिन्हा: इस सच की बदौलत तो हमारा नाम है...
थानेदारः इस सच की बदौलत... सिन्हा जब तू यहां आया था तो तेरे पास साइकिल नहीं थी... दोनों पैरों में साली चप्पलें भी अलग-अलग रंग की होती थी... और आज फस्र्ट क्लास कोठी है... स्कूटर है... साले तू कह रहा था... कि कार लेने वाला है...।
सिन्हा: (नशे में ) सोच रहे हैं एक दो मारुति हम भी ले ही लें...।
थानेदारः तभी साली इस कस्बे में पत्राकारिता स्पीड से दौड़गी...कितनी चिंता है तुझे पत्राकारिता की...साली को स्पीड से दौड़ाने का... मारुति...
सिन्हाः हमारी कलम में सच की ताकत है...
थानेदारः ताकत तो महेश की कलम में भी है
सिन्हाः वो साला टटपूंजिया पत्राकार... खूंसट बूढ़ा...
थानेदारः टंटपूंजिया है तभी तो आज भी टूटी फूटी साइकिल पर दौड़ता है... उस साले की कलम उसके पास है... और तेरी कभी खेमचंद के पास होती है... कभी... मेरे पास और कभी... महेश से लोग डरते हैं... और तू डराता है तो लोग तेरे सामने टुकड़े डाल देते हैं।
सिन्हा: अबे ओ ज्यादा मत उड़... थानेदार... ज्यादा मत उड़...तेरे जन्नत की हकीकत हम भी जानते हैं।
थानेदारः और हम तेरी की...तभी तो हम दोनों की दोस्ती है...साले साथ पीते हैं... साथ खाते हैं... (खाने पर जोर देकर) समझा साथ-साथ खाते हैं... और साथ-साथ निगलते हैं... (हँसते हैं)
सिन्हाः (गाता है ) ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेगे (दोनों नशें में लड़खड़ाते हैं)
अंक-2
दृश्य-1
थाने का दृश्य
(थाने का नाम कलियुगी थाना है। थाना क्या है, जैसे भ्रष्टाचार, अनैतिकता और असत्य की मूर्ति है। कुरसी पर बैठा थानेदार ऐसे ही लग रहा है जैसे कीचड़ में काला कमल सुशोभित होता है। उसके चरण कमल सामने रखी मेज की फाइलों पर पड़े घोषणा कर रहे हैं कि इस इलाके का सारा कानून इन चरणों के नीचे दबा हुआ है। खाली समय का सदुपयोग करने के लिए थानेदार कान में कागज का टुकड़ा डालकर मैल निकाल रहा है। थानेदार सिपाही कृष्ण सिंह को आवाज लगता है।)

थानेदारः किशन सिंह, अबे ओ किड़शन सिंह, अबे ईंट के भुट्टे सुनता नहीं है।
कृष्ण सिंहः (अंदर आते हुए देखो) देखो साब आपसे कितनी बार कहा कि मेरा नाम ठीक से पुकारा करो... मेरा नाम किड़शन नहीं, कृष्ण सिंह है। साब, आप चाहे मुझे कितनी गाली दें। गाली खराब नहीं लगती हैं, क्योंकि वो तो हम लोगों की रोजाना की खुराक हैं रोज गालियां देते हैं, रोज खाते हैं। जिस दिन छुट्टी होती है, उस दिन गालियां न खाने के चक्कर में अपने को तो कब्ज हो ही जाती है। पर साब अपना नाम कोई बिगाड़ कर बोलता है तो भेजा घूम जाता है। नाम मत बिगाड़ो साब.
थानेदारः (अट्टहास करते हुए) हो... हो... हो... तू तो बीवियों की तरह बहुत जल्दी नाराज हो जाता है। अब तुझे किड़शन कहूं या कृष्ण, तूने कौन-सा रावण को मारना है।
कृष्ण: साब आपकी जनरल नालेज तो हमारे नेताओं की तरह बिलकुल कमजोर है। साब, रावण को कृष्ण ने नहीं, राम ने मारा था। लगता है आपने रामायण नहीं पढ़ी है और न ही कभी रामलीला देखी है। साब देखा करो बड़ी धंसू चीज है रामलीला।
थानेदारः अबे तू भी हमारी बीवी के चक्कर में धरमकरम वाला तो नहीं हो गया... ये लोग बड़े चालू होते हैं... हमसे तो धरम-करम करवाते हैं खुद नोटों की थैलियां भरते हैं।
कृष्ण सिंह: थोड़ा बहुत तो धरम-करम करना चाहिए न... अगला जन्म सुधर जाता है...
थानेदारः धरम की औलाद। यहां पिछले का पता नहीं तू अगले की बात करता है। कलयुग में जो कुछ है, यहीं है यहीं। कत्ल का केस अगले जन्म में नहीं निबटाना होता है या इसी जन्म में निबटाना होता है...बता
कृष्ण सिंह: पर वकीलों के चक्कर में तो कई केस किसी भी जन्म में नहीं निबटते...केस निबटाने के लिए जज से...
थानेदारः धीरे बोल...मानहानी का दावा ठुक जाएगा... ज्यादा धरम-करम की बातें मत किया कर।
कृष्ण सिंहः पर साहब रामायण की कहानी है बड़ी धंसू...
थानेदारः (गुस्से में डंडे को मेज पर मारता है, खड़ा हो जाता है) अबे खाक धंसू है, ईट के भट्टे... चिलगोजे की औलाद रामायण में जो पुलिस-डिपार्टमैंट की बेइज्जती की गई है वैसी बेइज्जती तो किसी ने नहीं की है। तू खुद सोच घोंचू प्रसाद... इतने मर्डर हुए... शूर्पनखा जैसी सुंदर औरतों के नाक-कान काट लिए गए... सीता किडनैप हुई... लंका पर अनओथेराइज्ड ब्रिज बनाया गया... हनुमान ने लंका जला दी... क्या-क्या बदमाशी नहीं हुई। इतनी बदमाशी तो हमारे इलाके में कभी नहीं हुई।... अब तूं खुद सोच कैकटस की औलाद कि इतना सब कुछ हो जाए और पुलिस का कोई रोल भी न हो। यानि, पुलिस का बायकाट। ये तुलसीदास जैसे रामकथा के लेखकों की सरासर बदमाशी है। वो नहीं चाहते कि हमारा डिपार्टमैंट लाईम-लाइट में आए... हम पुलिस वालों को इसके खिलाफ जुलूस निकालना चाहिए और तू कैसा पुलसिया है कि रामायण को देखकर खुश हो रहा है। अरे किड़शन सिंह... अबे टोपी के... जरा सोच अगर पुलिस होती तो क्या सीता गायब हो सकती थी... सारा डिपार्टमैंट लग जाता... वायरलेस खड़क जाते... बस पुलिस वालों को क्या चाहिए थोड़ी-सी सेवा ही न।... पर पुलिस पर तो विश्वास ही नहीं किया। राम-लक्ष्मण पेड़ों से, हिरणों से... पत्तों से सीता का पता पूछते रहे... जरा पुलिस स्टेशन आ जाते तो सीता का पता न मिलता।
कृष्ण सिंहः साब बड़ी समझदारी की बातें कर रहे हो, क्या आज घर से ही लगाकर आए हो...
थानेदारः चुप ओए खड़क सिंह हर समय खड़कता रहता है। (कान में पफुसपफुसाते हुए) अब अगर हमने ना लगाई होती तो क्या हम सुबह-सुबह ऐसी धर्मिक बातें करते ? (हंसता है) वैसे तो धार्मिक बातें भी एक प्रकार का नशा है, नशा क्या, नशे का बाप है। अब हमारी थानेदारिन को लो। हर समय मंदिर में छैने बजाती रहती है। हमें पीकर होश नहीं रहता है, वो भजन कीर्तन में बेहोश रहती है। हमें जब बहुत टेंशन होती है तो हम पी लेते हैं, थानेदारनी को जब टेंशन होती है तो वो भजन गाने लगती है।
कृष्ण सिंहः साब कभी उल्टा नहीं होता है कि आप भजन गाने लगें और...
थानेदारः ओए... तू हम शहीदों के साथ मजाक करता है... (मेज के नीचे से बोतल निकाल कर ऊपर रखते हुए) जा हमारे लिए कुछ नाश्ते-पानी का इंतजाम कर... सुबह से गला भारत की जनता की तरह सूखकर कांटा हो गया है।
कृष्ण सिंहः साब मुझे तो आप कांटा लग रहे हो भारतीय जनता के गले का जो एक बार फंस जाए तो जान निकाल लेता है...
थानेदारः बड़े पर निकल आए हैं तेरे... एक बार झूठे एनकाऊंटर में तेरी टांग पर गोली मारनी पड़ेगी... (पैग बनाकर पीता है)
कृष्ण: (पांव दबाता है ) नहीं... सॉब... माफी सॉब... आपकी कुदृष्टि पड़ गई तो मेरे बाल-बच्चे ईमानदार आदमी की तरह कटोरा लिए भीख मांगते फिरेंगे.. साहब कल मैं हनुमान मंदिर चला गया था तब से ऐसे नीच विचार हृदय में उठ रहे हैं... साब कल सेठ जी के भाई के कतल वाला केस भी आपने चोखा कर दिया...दोनों पार्टियां खुश... साब आपमें कमाल की बुद्धि है... थाने में आपने सबको खुश कर दिया था... साब आप बहुत दरियादिल... दरिया नहीं समुंदर दिल हो...
थानेदारः ओए हमसे मक्खनबाजी... हमें तिया समझता है। हम कोई भारत की जनता है... जिसको जब चाहा बना लिया...
कृष्ण सिंहः क्या साहब... भारतीय जनता हो आपके दुश्मन... साहब आप तो इस देश का कानून हो... सत्यमेव जयते... और मैं हूं आपका पुत्र... साब अपने पुत्र से नाराज़ मत हुआ करो... साब सुबह एक खूबसूरत साफ सफाईवाली मिली थी... मैंने बोल दिया... हमारे थानेदार जी का कमरा शाम को साफ करने आ जाइयो... साब शाम को आप होंगे थाने में दलितों का उद्धार करने के लिए?
थानेदारः (मुस्कराता हुआ) साला... हरामी...
कृष्ण सिंहः साहब पूरण के ढाबे से तंदूरी चिकन लाऊं ?
थानेदारः जा ले आ... सुन जरा एक भरी हुई सिगरेट भी देता जा। (कृष्ण सिंह एक अलमारी से सिगरेट लेकर थानेदार को देता है और चला जाता है। थानेदार सिगरेट के कश लगाता है और बड़बड़ाता है..)
थानेदारः साला किड़शन सिंह... हमें तिया नंदन समझाता है... कहता है रामायण देखो... अबे क्या देखो उसमें महादेव जी... (नशे में स्वर धीमें होता है) अब क्या है उसमें... पुलिस कहां है... इतने मर्डर और पुलिस गायब... सीता गायब हुई और राम-लक्ष्मण हमारे थाने में नहीं आए... क्यों नहीं आए... मैं ढूंढ़कर देता सीता को... मैं बिना पैसे के ढूंढ़कर देता... पर हम पुलिस वालों पर तो कौनफीडेन्स ही नहीं है... नो काडफीडेंस रामा... ऑन पुलिस व्हाई... पुलिस नॉट देयर... व्हाई...
 
(थानेदार लुढ़क जाता है। मंच पर कुछ क्षण के लिए अंधेरा। प्रकाश आने पर कलियुगी थाने के स्थान पर ‘थाना पंचवटी’ लिखा हुआ है। थानेदार मेज पर लुढ़का हुआ है। इस भाग में अंधेरा होता है। मंच की दूसरी ओर से कृष्ण सिंह का प्रवेश, उसके वस्त्र कुछ पौराणिक काल के कुछ आधुनिक काल के हैं। वो हाथ पर सुरती बनाता हुआ चल रहा है। दूसरी ओर से एक तपस्वी आ रहा है। कृष्ण सिंह तपस्वी को नख-शिख कुटिलता से घूरता है। तपस्वी कांपता है।)

कृष्ण सिंहः (मुस्कराते हुए) ये तू कांप क्यों रहा है...
तपस्वीः आपके सामने शरीफ आदमी कांपने के इलावा और कर भी क्या सकता है ?
कृष्ण सिंहः तो तू शरीफ है... (तपस्वी सर हिलाता है)
कृष्ण सिंहः और हम बदमाश। (तपस्वी सर हिलाता है, अपनी गलती समझ हकलाते हुए कहता है...)
तपस्वी: नहीं... नहीं... क्षमा... आप भी शरीफ हैं।
कृष्ण सिंहः (हंसते हुए) हम शरीफ... अब साले हम तो बदमाशों के बदमाश हैं... बदमाशी को बदमाशी ही काटती है... तो हम क्या हुए बदमाश की शरीफ...
तपस्वी: थानाध्यक्ष जी आप जो सिद्ध कर दें वही मैं हुआ और वही आप हुए। आपकी वरदी में बहुत शक्ति है प्रभु, आप चाहें तो हत्यारे को शरीफ और शरीफ को हत्यारा सि) कर दें।
कृष्ण सिंहः तुम तपस्वी लोग बहुत समझदार होते हो।...तपस्या से क्या-क्या नहीं पा लेते हो... हमें तपस्या सिखाओगे ?
तपस्वी: जी...
कृष्ण सिंहः जानता है कौन-सी... वही सदा जवान रहने वाली... जीवन का आनंद लूटने वाली... ... इस थैली में क्या है, यज्ञ का सामान ? राक्षसराज रावण का आदेश जानता है, यज्ञ करने वाले के लिए मृत्युदंड !
तपस्वी: सुरक्षाअधिकारी क्षमा करें मैं तो गुरुदेव की आज्ञा का पालन ...
कृष्णसिंहः (उसी के स्वर में) तपस्याधिकारी, मुझे क्षमा करें, मैं तो अपने महागुरु थानास्वामी की आज्ञा का पालन..साला अज्ञाकारी... चल निकाल जो है तेरे पास...
तपस्वी: मेरे पास इस समय आपको उत्कोच देने के लिए कुछ नहीं है
कृष्ण सिंह: उत्कोच ? यह तो सेवा शुल्क है, देता है कि या फिर तेरे आश्रम में सेवा शुल्क लेने आउ... तेरी कन्या का क्या हाल है तपस्वी... बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी?
तपस्वी: वो... वो... (थैली से मुद्रा निकालकर देते हुए) यह आपके लिए हैं...
कृष्ण सिंह: (गिनते हुए) बड़ा समझदार है... वरना तेरे घर आता... जा तपस्या कर... कोई कुछ नहीं कहेगा... और हां मेरे लिए भी थोड़ी सा कर लेना...(उसके पिछवाड़े डंडा जमाते हुए) चल फूट... 
(तपस्वी भागता है। उधर से राम लक्ष्मण का प्रवेश)
लक्षमण:भैया न जाने कहां छिपा हुआ है पंचवटी थाना... थाने के कोई संकेत चिह्न भी नहीं हैं। मैं तो कहता हूं भैया थाना ढूंढने से अच्छा है कि सीता माता को हम ही ढूंढ लेते हैं...
राम: भैया लक्ष्मण धैर्य ... कानून व्यवस्था यही कहती है कि हमें पहले कानून का आश्रय लेना चाहिए... यहां के व्यवस्थापक को सीता के अपहरण की सूचना देना आवश्यक है।
लक्ष्मणः मेरा तो यहां की कानून-व्यवस्था में विश्वास नहीं है भैया... जहां सीता माता का अपहरण हो सकता है वहां की व्यवस्था कम दुष्ट नहीं होगी...
राम: लक्ष्मण व्यवस्था कैसी भी हो, तुम अपने क्रोध को संयत रखना। आरामपरस्तों के साथ रहते-रहते इन लोगों की भाषा असभ्य और व्यवहार अशोभनीय हो जाता है... हमें अपना संयम नहीं छोड़ना चाहिए... समझे...
लक्ष्मणः जैसी आपकी आज्ञा भैया...
कृष्ण: (हाथ में सुरती बनाते हुए, चलते-चलते बड़बड़ा रहा है) हमारे साहब को तो चैबीसों घंटे पीने को सोमरस चाहिए और खाने को भुना हुआ हिरण का बच्चा... चल बेटा कृष्ण सिंह इंतजाम कर।
लक्ष्मणः (लक्ष्मण कृष्ण सिंह की ओर इशारा करके राम से कहता है) भैया इससे पूछें पंचवटी थाने का पता...
राम: इससे ? ये तो स्वयं कोई दस्यु लग रहा है...
लक्ष्मणः भैया अगर ये दस्यु है तो थाने का पता अवश्य ही जानता होगा...सुनो भैया... (कृष्ण सिंह को पुकारते हुए..) सुनो भद्रपरुष, क्या आप हमारी सहायता करने का कष्ट करेंगे ?
कृष्ण: भई इतनी इज्जत से बात मत कर... शरीर में गुदगुदी होती है। ( राम लक्ष्मण की वेशभूषा को ध्यान से देखता है, आश्चर्यचकित होता है) कौन जीव हो... का चाहते हो?
राम: ( मुस्कराकर) हमें पंचवटी थाने का पता चाहिए भद्र।
कृष्ण: पंचवटी थाना... आपको क्या काम है वहां...?
लक्ष्मण: हम जरा वहां की व्यवस्था देखना चाहते हैं... काम हम वहां की व्यवस्था देखकर ही बताएंगे।
कृष्ण: आप जैसे तपस्वियों को थाने से क्या काम?
लक्ष्मण: हम तपस्वी नहीं हैं...।
कृष्ण सिंहः तपस्वी नही हैं... व्यवस्था देखेंगे... वो उधर... कुछ नहीं... कुछ नहीं... वो उधर... मैं चलता हूं ( यह कहकर कृष्ण सिंह घबराकर भागता है।)
दृश्य तीन
( थानेदार नशे में धुत देश के हितचिंतकों की तरह लुढ़का हुआ है)
 
कृष्ण सिंह: ( पास आकर चिल्लाता है..).सॉब, ओ सॉब... सॉब... उठो ना सॉब... क्या देश के भविष्य की तरह सोए हुए हो...?
थानेदारः ( नींद से उठता हुआ-सा) अब क्या हुआ, कांप क्यों रहा है... क्या सुबह-सुबह कोई उर्वशी या मेनका देख ली है...?
कृष्ण सिंहः नहीं साहब, वो दो मानव आ रहे हैं... धनुष बाण से लैस हैं...था... थाने का पता पूछ रहे थे...
थानेदारः अबे भुट्टे कोई शिकारी होंगे... हफता देने आ रहे होंगे... बिना लाइसेंस इस इलाके में शिकार जो करने देता हूं... तू तो अपने ग्राहकों को भी नहीं पहचानता है... लगता है तेरी नजर कमजोर हो गई है...
कृष्ण सिंहः नहीं साहब वो शिकारी नहीं है... उनके कपड़े ऋषि मुनियों के हैं...
थानेदारः अबे इसमें गलत क्या है... अच्छा है भेस बदल कर शिकार कर रहे हैं... अब हम पुलिस की वरदी पहने हैं पर लोगों का शिकार करते हैं कि नहीं... शिकार चाहे जानवर का हो या जनता का, भेस बदलकर ही करना चाहिए। तेरे से तो बगुला समझदार है...तू उससे भी कुछ सीख...या फिर अपने नेताओं से कुछ सीख
कृष्ण सिंह: साहब ये गुप्तचर विभाग वाले भी भेस बदल कर छापा मारते हैं...
थानेदारः ( घबराते हुए) हां... हं... हं... तू ठीक कह रहा है... कितने घटिया हैं ये गुप्तचर वाले... डरपोक कहीं के, अबे छापा मारना है तो सीना तानकर आओ... चोरी पकड़ने के लिए चोरों की तरह आते हैं... अबे देख क्या रहा है चल जल्दी से ये सोमरस की बोतल छिपा... हिरण का मांस उधर रख... और जब मैं कहूं तो अलकापुरी की स्पेशल ले आइयो और नुक्कड़ से हिरण के बच्चे को तल कर ले आइयो... बढ़िया भोज होना चाहिए... और कुछ सोने के टुकड़े भी रख दीजियो, समझा... कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए... वरना यह डंडा देख रहा है। सही स्वागत करूंगा उनका... अगर गुप्तचर विभाग के हुऐ... बहरूपिए हुए तो ( डंडा घुमाते हुए) इससे वो स्वागत करूंगा कि कपड़े पहनने भूल जाएंगे... ( डंडे को हथेली पर मारता है और चेहरा सख्त करके कुरसी पर बैठ जाता है। कृष्ण सिंह के साथ राम लक्ष्मण का प्रवेश)
थानेदारः आओ... ओ... शिकारियो... पंचवटी में शिकार करने आए हो क्या...?
राम: नहीं थाना अधिकारी, हम शिकारी नहीं है।
थानेदारः हमसे उड़ते हो... शिकारी नहीं हो तो इस तीर कमान से क्या गिल्ली-डंडा खेलते हो ? ( हंसता है। कृष्ण सिंह भी हंसता है)
राम: थाना अधिकारी,इस प्रकार का उपहास उचित नहीं है...हम क्षत्रिय हैं और ये शस्त्रा दुष्टों का दमन करने के लिए हैं...
थानेदारः ( क्रोध् से) तुम हमारा द द दमन करोगे...?
लक्ष्मणः ( मुस्कराकर) आपकी दाढ़ी तो है नहीं फिर भी आपने अपनी दाढ़ी में तिनका कैसे ढूंढ़ लिया...?
थानेदारः हमसे मजाक मत कर बालक, हम थानेदार हैं। थानेदार से मजाक करना बड़ा महंगा होता है... घर खाली हो जाता है हमारे चंगुल से निकलने के लिए... आदमी हमेशा के लिए गली-गली भीख मांगता है और कोई उसको घास नहीं डालता... हमसे मजाक करना कानून से मजाक करना है... और एक बार कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंसा तो पफंसा... समझा बच्चे। अपने को क्षत्रिय कहते हो और वस्त्रा मुनियों के पहने हुए हैं... अभी भेस बदलकर धोखा देने के केस में फंसवा सकता हूं... चल बता ये चक्कर क्या है?.
लक्ष्मण: हम अपने पिता की आज्ञा से वनवास के लिए आए हैं।
थानेदारः तुम जैसों को पिता घर से निकालते ही हैं... कहां से आ रही है ये सवारी?
लक्ष्मणः हम अयोध्या से आ रहे हैं।
थानेदारः ( सोचते हुए अयोध्या से पंचवटी में आए हैं... वस्त्र मुनियों के हैं... अपने को क्षत्रिय कह रहे हैं... कुछ घपला है... उस्ताद कहीं अयोध्या का माल इधर और पंचवटी का माल उधर करने का चक्कर तो नहीं है... अरे भईया पहले बताते... तुम तो हमारे अन्नदाता हो। जरा अपने चरण इधर कर...
लक्ष्मण: ( क्रोध् से) सावधान थाना अधिकारी...अनर्गल प्रलाप मत कर...तूने अभी लक्ष्मण का क्रोध नहीं देखा है।
थानेदारः ( डरता हुआ-सा) देखो... देखो तुम इस तरह सरकारी कर्मचारी को डरा नहीं सकते हो। हमारा काम पूरी तपफतीश करना है... धमका मत... वरना मैं... वरना मैं... तुझे अंदर कर दूंगा... ( कृष्ण सिंह लक्ष्मण के पास आता है, गौर से देखता है।)
कृष्ण: आप लक्ष्मण सिंह हो...
लक्ष्मण: लक्ष्मण सिंह नहीं, सिर्फ लक्ष्मण।
कृष्ण सिंहः ठीक है, नाम के आगे सिंह लगाने से कोई शेर नहीं हो जाता। सिंह तो कईयों के नाम के आगे लगा होता है पर वह पुचकारने पर कुत्ते की तरह दुम हिलाते हैं। पर आप तो साहब असली सिंह हो। सुना है आपने तो रावण की बहन शूर्पनखा के नाक-कान काट डाले।
थानेदारः इसने... इसने नाक-कान काटे... इसने रावण से पंगा लिया ... भई तू तो गया काम से। शासन से पंगा लेना बड़ा महंगा पड़ता है... तू तो बड़ा पंगेबाज लगता है प्यारे ? तभी मुझसे भी पंगे पर पंगा लिए जा रहा है। पर प्यारे पुलिस से पंगा लेना बड़ा महंगा पड़ता है हमारी दोस्ती भी खराब, हमारी दुश्मनी भी खराब। पर ये तो कहिए श्रीमान पंगेबाज, आपने उस सुंदरी के नाक-कान क्यों काटे ?
लक्ष्मणः वो जबरदस्ती मेरे गले पड़ रही थी, मुझे शृंगार के लिए उकसा रही थी।
थानेदारः हाय, हाय बेदर्दी, इसमें गलत क्या कर रही थी अबला नारी? नारी का तो काम ही है उकसाना। तू मत उकसता ...सुंदर नारियों के नाक कान काटना कहां का इंसाफ है। सुदंर नारी तो हमारे समाज की शोभा होती है...
लक्ष्मणः व्यभिचारीणी चाहे कितनी सुंदर हो हमारे समाज की शोभा नहीं बन सकती।
थानेदारः व्यभिचार तो सुंदर नारी ही करेगी...पुरुष का सामना करेगी। काली कलूटी तो दलित बनकर रह जाएगी...उस कमजोर का..
राम: ( क्रोध से) सावधन सुरक्षाकर्मी, राम नारी के संबंध् में अनर्गल प्रलाप नहीं सुन सकता । अपनी जिह्वा को विश्राम दे, अन्यथा ...
कृष्ण सिंह: ( थानेदार को मंच के एक कोने में ले जाकर समझाता हुआ) साहब यह थाना है थाना ... आप भी क्या नारी विमर्श और दलित विमर्श के पचड़े में पड़ गए। यह बहसें तो बुद्धिजीवियों की जुगाली के लिए होती हैं आप तो अपनी सुंदर नारियों को ढूंढने की ड्यूटी पर ध्यान दो । ये हमसे डर नहीं रहे हैं और उसपर बात बात में हमारी हत्या करने की धमकी दे रहे हैं, कुछ ज्यादा ही पहुंचधरी लोग लगते हैं । आप तो जल्दी से जल्दी इनको रफा-दफा कर दो ।
थानेदारः ( राम से) तो भइए, तेरा यह भाई अपराध करके भागा है।
रामः नहीं... किसी अपराधी को दंड देकर आया है। हम लोग अपराधी नहीं हैं, सज्जन हैं।
थानेदारः न... न... तुम सज्जन नहीं हो सकते। सज्जनों का थाने में क्या काम ? आज थाने का उद्घाटन तो है नहीं... और भाई उद्घाटन भी होता तो उसे इस प्रदेश का कोई मंत्री करता... मंत्रियों का आशीर्वाद न मिले तो थाने में कोई काम हो ही नहीं सकता... ये तो उनका प्रताप है कि थाने फल-फूल रहे हैं... तो भइए सज्जन हो तो किसी विद्यालय में जाकर पढ़ाओ-लिखाओ, हमारे पास क्या करने आए हो...?
राम: भद्र हम कष्ट में हैं... हम आपके पास सहायता के लिए आए हैं।
थानेदारः ( हंसते हुए) सहायता ! भई पुलिस को तो खुद हर समय सहायता चाहिए होती है। तुमने देखा नहीं है, चारों ओर पुलिस-बूथ बने हुए हैं जिन पर लिखा होता है…‘पुलिस सहायता’। इसका मतलब हुआ कि जनता तन और ध से पुलिस की सहायता करे।... तुम्हारी खुशकिस्मती कि आज हम अच्छे मूड में हैं...हम...तुम्हारी सहायता करेंगे... बोलो क्या कष्ट हैं ?
राम: मेरा नाम राम है, किसी दुष्ट ने मेरी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया है...
थानेदारः किस दुष्ट ने कर लिया है?
राम: यही तो हम पता करना चाहते हैं।
थानेदारः अब यही तो खराबी है जनता में... जरा भी सहयोग नहीं करती पुलिस से, चाहती है कि सारा काम पुलिस ही करे। जनता को चाहिए कि चोर-डकैतों को पकड़े, अपहरण करने वाले का पीछा करे...उसे थाने में पकड़ कर लाए...
लक्ष्मण: और पुलिस को क्या चाहिए ? पकड़े लोगों से धन बटोरे तथा ईमानदार जनता को पकड़ जेल में डाले...
थानेदारः बड़ी सयानी बातें करता है तू तो भई... ये सयानापन अपने पास रहने दे... वरना तुझे भी ईमानदार जनता बना दूंगा...
राम: इसे क्षमा करें भद्र, आपका धन्यवाद कि आप हमारी सहायता कर रहे हैं।
थानेदारः सूखी सहायता तो हम अपने बाप की भी नहीं करते हैं... ये तो केस जरा दिलचस्प है... और भई सूखे धन्यवाद से हमारा कुछ भला नहीं होता है... हमारे शरीर को चलाने के लिए अगर अयोध्या की सोमरस लाया हो तो दे... सुना है बड़ी तीखी होती है।
राम: मैंने आपसे निवेदन किया है कि हमारा इन चीजों में विश्वास नहीं है... हम सज्जन हैं।
थानेदारः तुम धन्य हो सज्जनो... आज का मेरा दिन तो बरबाद हो ही गया... अच्छी बोहनी हुई है आज... मैं क्या सारा देश बरबाद हो रहा है ऐसे सज्जनों के चक्कर में। लोग सज्जन बन रहे हैं और प्रदेश में चोरी-चकारी के किस्से कम हो रहे हैं... हमारी असली कमाई के रास्ते बंद हो रहे हैं। एक दिन यही हाल रहा तो सारे थाने मंदिर बन जाएंगे और हम छैने बजाते हुए भजन गायेंगे... सज्जनों ने निकम्मा कर दिया, वरना हम भी थे आदमी काम के।’’ एक तो सरकार तनखाह के नाम पर हमारे मुंह में जीरा डाल देती है और दूसरे तुम्हारे जैसे सज्जनों की जनसंख्या बढ़ रही है। जब एक थानेदार एक-दो रथ, एक-आध महल, कुछ स्वर्णमुद्राएं तथा एक-आध पुष्पक विमान नहीं खरीद पाएगा, तो देश की क्या खाक प्रगति होगी। खैर भई तुम सज्जनों को हमारे दुःख-दर्द से क्या ? तुम तो अपना दुख-दर्द लिखवाओ सज्जन जी। हां भई बोल।
राम: मेरी पत्नी का अपहरण हो गया है।
थानेदारः नाम ?
राम: सीता !
थानेदारः आगे-पीछे ?
राम: आगे पीछे से तात्पर्य, क्या है भद्र ?
थानेदारः आगे पीछे का मतलब भी नहीं समझते हो। आगे पीछे का मतलब हुआ सीता क्या ? सीता श्रीवास्तव, सीता मिश्रा, सीता मेहता, सीता भटिया, सीता कुंद्रा... क्या लिखूं ?
राम: कुछ नहीं, केवल सीता।
थानेदारः पति का नाम ?
राम: रामचंद्र।
थानेदारः हूं रामचंदर, कैसे गायब हुई सीता ?
राम: हम अपनी कुटिया में बैठे थे तभी मेरी पत्नी ने कुटिया के सामने एक सोने के हिरण को चरते हुए देखा, और...
थानेदारः ( कुरसी से उचकते हुए) सोने का हिरण... यानि हमारे इलाके में सोने के हिरण बन रहे हैं... अरे भई वाह केस तो बड़ा दिलचस्प हो रहा है... सोने के बिस्कुट तो बनते थे सोने के हिरण भी बनने लगे और हमें पता ही नहीं। खैर पता तो मैं कर ही लूंगा... काफी माल बनेगा इसमें... जल्दी... जल्दी बताओ फिर क्या हुआ...
राम: मेरी पत्नी सीता ने उस सोने के हिरण की इच्छा प्रकट की। मैं धनुष-बाण लेकर उस हिरण के पीछे दौड़ा। लक्ष्मण को भी धेखे से कुटिया से हटा दिया। इस बीच किसी ने सीता का अपहरण कर लिया। हमने जब हिरण को मारा तो वह मारीच नामक मायावी राक्षस निकला...
( यह सुनते ही थानेदार जैसे हतोत्साहित होता है और, पेन छोड़कर माथा पकड़ लेता है)
थानेदारः मारीच था क्या ? न भई, इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता... मारीच ऊपर वालों का खास आदमी है। तुम तो मेरी भी नौकरी छुड़वाओगे लगता है। भइए अगर ऊपर के आदेश से तुम्हारी सीता गायब हुई हो तो समझ लो उसे गायब होना ही था। तुम सात तालों में बंद करके रख लेते, तब भी तुम्हारी सीता गायब हो जाती। ये ऊपर वाले तो पूरा देश गायब करके विदेशी बैंकों में रख देते हैं... हम तुम किस खेत की मूली हैं। भई सज्जन मुझे माफ कर, तेरा दुख मैं समझ सकता हूं...मारीच पर मैं हाथ नहीं डाल सकता हूं। उसके लिए तुझे तगड़ी सिफारिश लानी होगी... मैं मारीच को नहीं पकड़ सकता।
लक्ष्मण: पर मारीच तो मारा गया...
( ये सुनते ही थानेदार के जैसे हाथ-पांव फूल जाते हैं)
थानेदारः मारीच मारा गया। हत्या... यानि तुम लोगों ने मारीच का कत्ल कर दिया... बिना हमारी इजाजत के। हत्या करते हो और अपने आपको सज्जन कहते हो... तुम तो हमारे मंत्रियों के भी बाप हो। मारीच की हत्या कर दी...
राम: मैंने जब मारीच को मारा वो एक मायावी मृग था। मायावी का यही अंत होता है। फिर भी, हमने उसकी ससम्मान अंत्येष्टी भी कर दी है।
थानेदारः ( हाथ में सिर पकड़कर) क्रिया करम भी कर डाला। यानि हत्या के सारे निशान सापफ कर डाले। बहुत अच्छे... तुम्हें तो इस बात पर पुलिस मैडल मिलना चाहिए। वैसे मारीच की हत्या करके तुमने मेरा सरदर्द कम कर दिया। मैं बहुत दुःखी था उससे, हर समय सिफारिशी केस लाता रहता था और पैसा एक नहीं देता था। गृहमंत्री का बड़ा मुंहलगा था। पर भइए उसके मरने का पक्का कर लिया है न। एक बार पहले भी मारीच के मरने का समाचार आया था। आकाशवाणी ने उसे प्रसारित भी कर दिया था, फिर पता चला कि वो जिंदा है। बड़ी बदनामी हुई। खैर तुमने तो उसका क्रिया करम भी कर डाला है... मर ही गया होगा... तुम तो मुझे बड़ी चीज लग रहे हो... खैर, तुम्हारी पत्नी सीता को मारीच ने उड़ाया ?
लक्ष्मण: नहीं... उसने सीता माता के अपहरण में सहायता की। अपहरण किसने किया है, यह जानने के लिए हम आपके पास आए हैं। आप उसे ढूंढने में हमारी सहायता कीजिए। उसका पता चलते ही मैं उसका वध् कर दूंगा।
( थानेदार यह सुनते ही क्रोध् में आता है। मेज पर डंडा मारता है...)
थानेदारः हमारे होते हुए तू उसकी हत्या करेगा... मैं देख रहा हूं जब से आया है अपने को तीसमारखां समझ रहा है। कानून हाथ में लेना चाहता है। तेरा भाई राम तो पहले हत्या कर चुका है, तू भी करेगा क्या ? मालूम है थानों में एक हत्या का क्या दाम चल रहा हैµएक लाख स्वर्ण मुद्राएं। दे सकता है ? अगर दे सकता है तो दो-चार हत्याएं और कर डाल, हमारी तो कमाई ही होगी। देख ज्यादा पर मत निकाल... हमारे सामने अच्छे-अच्छों के पर कट जाते हैं...हम कानून के रक्षक हैं... हमसे टकराना कानून से टकराना है, कानून से टकराने वालों को हम अंदर कर देते हैं...
राम: सावधन थानाधिकारी। अब बार-बार लक्ष्मण को अंदर कर देने की धमकी देना बंद करें। तुम जैसे दुष्टों से व्यवहार करना हमें भी आता है।
थानेदारः मेरे भाई... अंदर कर दूंगा तो हमारा तकिया कलाम बन गया है। घर में अपने बच्चे भी जब उधम मचाते हैं तो मैं उनको ऐसे ही धमकाता हूं... अंदर कर दूंगा। पर थानेदारनी के होते मेरा यह साहस ... ( इस बीच एक सिपाही, एक गरीब से मनुष्य को घसीट कर लाता है।)अबे ईंट के भुट्टे इस नमूने को कहां से पकड़ लाया... ऐसे लग रहा है जैसे हमारे देश का प्रतीक चिह्न हो।
सिपाही: साहब ये बड़ी ऊंची चीज है...
थानेदारः ( राम लक्ष्मण की ओर संकेत करके) पर इनसे ऊंची चीज नहीं हो सकता है। बदमाशी की किन ऊंचाइयों को छुआ है इस हरामजादे ने... ( मनुष्य के पेट में डंडा घुसेड़ता है) क्यों बे, हमारे सामने ही ऊंची चीज बनता है...
मनुष्यः नहीं, मैंने कुछ नहीं किया है... जुआ तो दूसरे लोग खेल रहे थे, मैं तो पास बैठा पढ़ रहा था... उन्होंने इस सिपाही को मुद्राएं दीं तो ये उन्हें छोड़कर मुझे पकड़ लाया है।
थानेदारः चोप्प बेटी के... हम पर इलजाम लगाता है... तुझे तो अभी देखता हूं... ( सिपाही थानेदार को एक ओर ले आता है। सिपाही कुछ रुपए छुपाकर थानेदार को देता है। दोनों में बहस का मूक अभिनय। सिपाही कुछ और रुपए निकाल कर देता है। थानेदार टहलता हुआ मनुष्य के पास आता है।) हूं... तो जनाब नशीले पदार्थों का धंधा करते हैं... बेट्टी के थाने में आज तेरा वो हुलिया बिगाड़ईगा कि... बंद कर दे साले को...
राम: ( क्रोध से) सावधान थाना अधिकारी, यह सभ्य भाषा नहीं है।
थानेदारः भइए इसे पुलिस भाषा कहते हैं। जो महत्व साहित्य में अलंकारों का है वही हमारी भाषा में गालियों का है। इन बदमाशों से ऐसे नहीं बोलूं तो कैसे बोलूं ? ये कहूं क्या....( एक लय में आरती गाने की शैली में बोलता है) हे, श्रीमान चोर-देवता जी, धन्यभाग जो हमारे थाने में आप पधारे... आपके आने से हमारी कुटिया के भाग जाग गए... आपने हत्या करके बड़ा पवित्रा कर्म किया है... इस खुशी के अवसर पर मैं आपको हथकड़ी डालकर सुशोभित करना चाहता हूं। आप कौन से हाथ में हथकड़ी पहनना पसंद करेंगे। आपकी सेवा के लिए हमने देस-विदेस से अनेक रंगों की हथकड़ियां मंगाई हुई हैं। आप लोहे की हथकड़ी पहनना पसंद करेंगे या फिर सोने की? हे श्रीमान् जी, आपने सुबह से नाश्ता पानी नहीं लिया है... क्या मंगवाऊं शाकाहारी या मांसाहारीं... पहले नहाना पसंद करेंगे या अपनी परम्परा निभाते हुए बिना नहाए ही खाएंगे? ( टोन बदलते हुए) रहने दे भाई, रहने दे अपनी सभ्य भाषा। तुम्हारी इसी सज्जनता के कारण तुम्हारी साीता गायब हुई है। आजकल जो जितना असभ्य है उतना ही सुखी है और जो सभ्य है वो गलियों-गलियों मारा फिरता है... ईमानदारी के गीत गाता है... और अपने साथ हमारा भी बंटाधार करवाता है। मैं तो कहता हूं सज्जनता छोड़ो तथा अपनी सीता गायब करवाने की जगह दूसरों की सीता गायब करना शुरू कर दो...
राम: ( क्रोध में )सावधान थाना अधिकारी, तुम्हारी वाणी मर्यादा में नहीं है...
थानेदारः हो भी कैसे सकती है... ये पुलिस की वरदी है ही ऐसी चीज... घर में बच्चे हर समय कांपते रहते हैं... विवाह की पहली रात पत्नी ने ऐसा प्रेम-व्यवहार किया जैसे प्यार नहीं कर रही हो बयान दे रही हो। वो रात भर डर के कारण कांपती रही और मैं इस भुलावे में रहा कि मेरे प्यार में कांप रही है। मोहल्ले में कोई शरीफ आदमी हमसे हाथ नहीं मिलाता है, घर बुलाते हुए घबराता है। पुलिस का मतलब ही बदमाशी हो गया है। जब बिना बदमाशी के लोग बदमाश समझते हैं तो बदमाशी करके बदमाश कहलाना ज्यादा अच्छा है।
( इतने में कृष्ण सिंह मुस्कराता हुआ अंदर आता है।)
कृष्ण सिंहः सॉब, वो सुनयना मिल गई।
थानेदार: कौन सुनयना ?
कृष्ण सिंहः सॉब वही जो दस दिन पहले गायब हुई थी, जिसके पति ने आपको दस हजार मुद्राएं भी दी थीं। बेचारा रोज चक्कर लगाता है... चक्कर भी क्यों न लगाए उसकी बीवी है ही बड़ी मस्त चीज... साब घनी सुंदर है...
थानेदारः (कृष्ण सिंह को गले लगाते हुए) तूने तो कमाल का केस ठीक कर डाला। जियो किड़शन सिंह, जिओ।... लोग कहते हैं कि पुलिस काम नहीं करती है। ( ओठों पर जीभ पिफराते हुए) सुनयना... सुनयना को हमारे निजी कक्ष में ले जा।
लक्ष्मणः ( क्रोध् से) निजी-कक्ष क्यों ले जा रहे हैं ?
थानेदारः तुम अभी बालक हो... वहां हम उसका बयान लेंगे। देखेंगे कि दुष्टों ने उसके शरीर को कहां-कहां से छुआ हैे... क्यों किड़शन सिंह ( भद्दी हंसी हंसता है।)
राम: ( क्रोध् में ) दुष्ट थाना अधिकारी, सुनयना को उसके पति को वापस करो,उसे छोड़ दो ...
थानेदार: वापस कर दूं ? हाथ आया शिकार छोड़ दूं , बावरा हो रहा है क्या ? हाथ में आए शिकार को भी कोई छोड़ता है ? भईए, तुम भी तो हिरण के, सोने ( सोने शब्द पर बल देता है) के हिरण के शिकार के चक्कर में भटकते रहे, तुमने भी तो उसे मारकर ही दम लिया। हम भी दुष्टों का दलन करने के लिए हथियार उठाते हैं, थोड़े बहुत क्षत्रिय तो हम भी हैं। अब तो यह तीर कमान पर चढ़ चुका है। अब यह किसी के रोके नहीं रुकेगा। यह तीर तो ऋषि-मुनियों की कमान पर चढ़ कर नहीं उतरता, मेरी क्या बिसात है ? आज संसार की कोई ताकत मुझे नहीं रोक सकती, मैं सुनयना का बयान लेकर ही रहूंगा ।
लक्ष्मण: अनर्गल प्रलाप और कुतर्क मत कर थानाधिकारी, तेरी भलााई इसी में है कि श्रीराम की आज्ञा का पालन कर, सुनयना को उसके पति को तुरंत सौंप दे, वरना ...
थानेदारः वरना क्या कर लेगो... देख पुलिस के काम में दखल देना ठीक नहीं है... दखल दोगे तो मैं तुम दोनों को बंद कर दूंगा... तुम दोनों चुप रहो... वरना...
लक्ष्मण: भैया ये दुष्ट ऐसे नहीं मानेगा, आप आज्ञा दें, इसका संहार आवश्यक है।
थानेदारः अरे जा चिलगोजे... तेरे दूध् के दांत तो टूट लें... हमें मारोगे... हमें खत्म करोगे... हम तो... ( लक्ष्मण क्रोधित मुद्रा में बाण मारते हैं। थानेदार हं... हं करके हंसता है... मंच की पृष्ठभूमि में जाता है। वहां अंधेरा होता है। उसके स्थान पर थानेदार की वरदी पहने सिर पर गांधी टोपी लगाए नेता आता है। लक्ष्मण उसको भी बाण मारते हैं। वह भी हंसता हुआ पृष्ठभूमि में जाता है। उसके स्थान पर थानेदार की वरदी पहने पत्राकार आता है जिसके हाथ में बड़ी-सी पेन है। लक्ष्मण उसे भी मारते हैं। वह भी हंसता हुआ पृष्ठभूमि में जाता है। उसके स्थान पर थानेदार की वरदी में सेठ खेमचंद आता है। उसे भी लक्ष्मण बाण मारते हैं। वह भी हंसता हुआ पृष्ठभूमि में जाता है। ऐसे ही वकील आता है। अततः थानेदार, नेता, पत्राकार, सेठ सब जोर से अट्टहास करते हुए आते हैं। लक्ष्मण फिर बाण मारता है। थानेदार गिरकर मर जाता है। थानेदार की लाश के गिर्द सभी एक घेरा बना लेते हैं। गीत

हाय मर गया, मर गया, थानेदार मर गया।
हमें अनाथ कर गया, थानेदार मर गया।
नेता: मेरा तो चाचा गया
पत्राकारः मेरा तो मामा गया
सेठः मेरा तो भाई गया
हमें विधवा कर गया, थानेदार मर गया
साली जनता का डर गया, मर गया, मर गया।

जनता: साली जनता का डर गया ! थानेदार मर गया! थाना तो जिंदा रहा, थानेदार मर गया।

(नेपथ्य से गीता का मंत्रा गूंजता है)

न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं
भत्वा भविता वा न भूयः
अजो नित्यः शाश्वतोयं पुराणो न
हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवनि गृह्णाति नरो पराणि ।
तथा शरीराणि विहाय
जीर्णान्यन्यानि संयति नवनि देही ।।
नैनं छिंदन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।
(पटाक्षेप)



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1 टिप्पणियाँ

  1. पहले तो इस नाटक की लम्बाई देख कर लगा कि इसे पढे या नही..पर जैसे जैसे पढते गये छोडने का मन ही न किया...बहुत ही अच्छी नाटक...

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