ललित कर्मा " डिसुर "
सूरज भैया फटी हुई है पोटली
केसर की रंगत सारे आकाश मे फैली (१)
अद्भुत लालिमा नभ मे छाई
किंतु चिंता यह क्या हो आई (२)
भोर ही पर सारा रंग खत्म हो चला
संध्या पर करेगें क्या बोलो भला (३)
ध्यान रखने का माँ ने कहा था
सब ले आए घर मे जहाँ-जहाँ था (४)
आगे क्या करोगे बतलाओ ना
चुप न रहो उपाय सुझाओ ना (५)
रवि तपा इसी श्रम से सारा दिन
बटोरता रहा केसर चुटकी गिन-गिन (६)
थैली भरी फिर कुछ राहत पाई
अब घर लौटने की बारी आई (७)
रंग भर मुट्ठी सांझ के माथे पर मला
अहा संध्या सजी रंग से माहिर कला (८)
संतोष की सांस ले विश्राम की डगर
खुश-खुश चला थैली ले रवि अपने घर (९)
3 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसूरज भैया आजकल बादलों की ओट में लुका छुप्पी खेल रहे हैं
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसंतोष की सांस ले विश्राम की डगर
खुश-खुश चला थैली ले रवि अपने घर |
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.