नाम : सुशांत सुप्रिय ( कवि , कथाकार व अनुवादक ) जन्म : २८ मार्च , १९६८ प्रकाशित कृतियाँ : # कथा-संग्रह -- हत्यारे ( २०१० ) हे राम ( २०१२ ) # काव्य-संग्रह -- एक बूँद यह भी ( २०१४ ) ( सभी पुस्तकें नेशनल पब्लिशिंग हाउस , जयपुर से ) कविताएँ व कहानियाँ कई भाषाओं में अनूदित व पुरस्कृत । संपर्क : मो -- 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com
बचपन में मुझे
एक राजकुमारी का क़िस्सा
सुनाती थी
राजकुमारी पढ़ने-लिखने
घुड़सवारी , तीरंदाज़ी
सब में बेहद तेज़ थी
वह शास्त्रार्थ में
बड़े-बड़े पंडितों को
हरा देती थी
घुड़दौड़ के सभी मुक़ाबले
वही जीतती थी
तीरंदाज़ी में उसे
केवल ' चिड़िया की आँख की पुतली ' ही
दिखाई देती थी
फिर क्या हुआ --
मैं पूछता
एक दिन उसकी शादी हो गई --
माँ कहती
उसके बाद क्या हुआ --
मैं पूछता
फिर उसके बच्चे हुए --
माँ कहती
फिर क्या हुआ --
मैं पूछता
फिर वह बच्चों को
पालने-पोसने लगी --
माँ के चेहरे पर
लम्बी परछाइयाँ आ जातीं
नहीं माँ
मेरा मतलब है
फिर राजकुमारी के शास्त्रार्थ
घुड़सवारी और
तीरंदाज़ी का
क्या हुआ --
मैं पूछता
तू अभी नहीं
समझेगा रे
बड़ा हो जा
खुद ही समझ जाएगा --
यह कहते-कहते
माँ का पूरा चेहरा
स्याह हो जाता था ...
माँ
अब मैं समझ गया
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6 टिप्पणियाँ
सुशांत सुप्रिय जी बधाइयां !
जवाब देंहटाएंरचनाकार जब लिखता ,गम लिखता |
वही किस्सा गोई औ वह दम लिखता ||
माँ की ममता को रहजब,कम लिखता |
बच्चों का पालन पोषण ,हरदम लिखता||
बहुत सच्ची कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, माँ को उसके सारे बच्चें सबसे शक्तिशाली ही लगते हैं, इसलिए वों हमेशा ही हमें उसी हिसाब से कहानी बताती हैं. लेकिन कहानी जैसे हमारे जीवन में कभी भी कुछ नहीं होता हम जैसे जैसे बड़े होने लगते हैं तो हमें उस कहानी के पीछे की कहानी पता चलती हैं.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.