तूने मुझे एक नाम दिया,
मनन कुमार सिंह संप्रति भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर मुंबई में कार्यरत हैं।
सन 1992 में ‘मधुबाला’ नाम से 51 रुबाइयों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ,
जिसे अब 101 रुबाइयों का करके प्रकाशित करने की योजना है तथा कार्य प्रगति पर है भी।
‘अधूरी यात्रा’ नाम से एक यात्रा-वृत्तात्मक लघु काव्य-रचना भी पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार है।
कवि की अनेकानेक कविताएं भारतीय स्टेट बैंक की पत्रिकाएँ; ‘जाह्नवी’, ‘पाटलीपुत्र-दर्पण’ तथा स्टेट बैंक अकादमी गुड़गाँव(हरियाणा) की प्रतिष्ठित गृह-पत्रिका ‘गुरुकुल’ में प्रकाशित होती रही हैं।
मैंने सुन लिया।
मैंने तुझे एक नाम दिया,
तूने गुन लिया।
फिर धुन बनी तेरी-मेरी,
फिर मेरी-तेरी।
बस वही धुन बज रही
तब से अबतक,
जाने बजेगी कबतक?
नाम दो,पर धुन एक
बजती है प्यार की,
जीते हैं हम-तुम
सोहबत इंतजार की,
बजती रहेगी धुन यह,
कहती रहेगी सुन यह---
प्यार न मापा जाता है,
करो,समझ में आता है।
*
*
1 टिप्पणियाँ
अच्छी रचना!मनन कुमार सिंह जी,
जवाब देंहटाएंप्यार बनाए रखियें नाम दो,पर धुन एक |फिर मेरी-तेरी।
बस वही धुन बज रही,तब से अबतक,सुन्दर लाइनें !!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.