नाम : वर्षा ठाकुर
शिक्षा: बी ई (इलेक्ट्रिकल)
पेशा: पी एस यू कंपनी में अधिकारी
मेरा ब्लौग: http://varsha-proudtobeindian.blogspot.in
रोज नयी सुबह के साथ
शुरू होती है
एक नयी कहानी
जो रात के साथ
खत्म भी हो जाती है
कभी नमक कम पड़ता है
कभी शक्कर ज्यादा
पर कहानी जरुर बनती है
पन्ना दर पन्ना
रात दर रात
नये किस्से बुनती
एक दिन ऎसे ही, जिन्दगी
पूर्णविराम ले लेती है
उपन्यास बन जाती है।
आप पूछते हैं , कहानी कहाँ है?
जी यहीं है, ओर किरदार भी
लम्हों की सियाही से
लिखते जा रहे हैं
अध्याय पर अध्याय
हर वो शख्स
जो छूता है मुझे
आँखों से, हाथों से
बातों से
बन जाता है, किरदार इसका।
आप भी तो हैं।
जब साँसें लगा दें
पूर्णविराम इसपर
हो जायेगी तैयार, ये भी
किसी अंधेरी दराज में
धूल खाने के लिये।
1 टिप्पणियाँ
वर्षा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी ये पूर्णविराम कविता बहुत ही बढ़िया लगी. पूर्ण विराम का महत्त्व क्या हैं इससे पता चलता हैं.
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.