ललित कर्मा " डिसुर "
छाता-छाता गोल-गोल
घूम रहा है गोल-गोल
क्या लाई हो बरखा रानी
कान मे धीरे बोल-बोल.
गरजा बादल जोर-जोर
हम मचाए शोर-शोर
बारिश की गीली बूँदें
भीगे सब-सब दौड़-दौड़
मेघ हमारी फोटो खीचें
हम खड़े थे आँखे मींचे
बादल ही बादल वहाँ थे
खेल रहे थे उनके नीचे.
तर-बतर हो लौटे हम
गीले ज्यादा सूखे कम
मस्ती करके थक गए सारे
बरखा रानी अब तो थम.
छींक पे माँ ने डांट पिलाईं
जल्दी फिर दवाईं लाईं
अब ना जाना ओ मुन्ने-मुनिया
पी लो गर्मा-गरम दूध-मलाईं
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