और फिर मैं चली
तलाशती अपनी कथा---
तलाशती अपनी कथा---
मनन कुमार सिंह संप्रति भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर मुंबई में कार्यरत हैं। सन 1992 में ‘मधुबाला’ नाम से 51 रुबाइयों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसे अब 101 रुबाइयों का करके प्रकाशित करने की योजना है तथा कार्य प्रगति पर है भी। ‘अधूरी यात्रा’ नाम से एक यात्रा-वृत्तात्मक लघु काव्य-रचना भी पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार है। कवि की अनेकानेक कविताएं भारतीय स्टेट बैंक की पत्रिकाएँ; ‘जाह्नवी’, ‘पाटलीपुत्र-दर्पण’ तथा स्टेट बैंक अकादमी गुड़गाँव(हरियाणा) की प्रतिष्ठित गृह-पत्रिका ‘गुरुकुल’ में प्रकाशित होती रही हैं।
कि कौन हूँ मैं,
क्या ध्येय मेरा,
क्या प्रेय मेरा,
कौन मुझको है बनाता,
निर्माता नजर नहीं आता।
अपनी साँसें थामे मैं गगन से
आ गयी बरबस धरा पर,
भार अपना ही ढोती,
समेटती किस्मत के मोती,
और नहीं कुछ था अपर।
धरा से भी तिक्त प्यासी
विकीर्ण-सी वह सिकता-राशि,
जो अपने कण-कण से प्यासी
थी कभी सागर के तल में,
उदधि के अंतर की ज्वाला
उछली, सिकता को दूर उछाला,
रवि-रश्मि से मैं संतप्त,
पवन-पाश में फिर बंधकर,
उछली, चली गगन को छूने,
चढ़ती गयी, चहकती पल-पल,
आयी याद सरिता की कल-कल,
सोचा---
कितना चढ़ जाऊँगी,
गगन के माथे मढ़ जाऊँगी,
संघनित होंगे मेरे सपने,
दूर देश में मेरे अपने,
मेघ बनूँगी,गगन तनूँगी,
बरसूंगी फिर सागर में,
करूंगी वहीं उजागर मैं कि
बादल चाहे कहीं गरजे,
पर पाया जाता प्रायःऐसा
कि बरसेगा वह सागर में,
सोचता विस्तार कितना मैं लिए,
क्यूँ भला मैं बरसूंगा,बोलो
तेरी छोटी-सी गागर में?
बादल मुझसे है,
मैं उससे नहीं,
मैं सागर-सरिता-सिकता से हूँ,
तो क्यों हवा के संग
रंगू मैं इन मेघों के रंग?
जो विस्तार लिए इतना अपार,
भिंगो सके नहीं संसार,
हाँ,कभी डुबो देते जरूर,
ये बिना पंख के मयूर,
धरा के स्नेह से सिंचित,
समर्थ,जीवनयुक्त ये मगरूर।
इसीलिए मैं आज अपनी
सिकता पर बरसी हूँ,
जिसकी खातिर कई
जन्मों से तरसी हूँ,
बस आती–जाती रही प्रवाहों में,
उठती-मिटती रही अतल,अथाहों में,
सिकता के आँसू सूख गये,
मैं आँसू-आँसू होती आयी,
जनम-जनम से आँसू पीती,
अपने आँसू ढोती आयी,
चिर प्यासी मैं,
सिकता चिर प्यासी,
मिटती चली मैं,
प्यास बुझाती निज सिकता की,
अपनी भी प्यास थमी अब आकर,
तप्त हृदय से दग्ध हुई अपनी
सिकता को गले लगाकर।
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1 टिप्पणियाँ
va kya bat
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.