
अक्सर मैं सोचता हूँ कि,
मैं तुम्हारे संग बर्फीली वादियों में खो जाऊँ !
और तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हे देखूं...
तुम्हारी मुस्कराहट,
जो मेरे लिए होती है, बहुत सुख देती है मुझे.....
उस मुस्कराहट पर थोडी सी बर्फ लगा दूं .
विजय कुमार सपत्ति के लिये कविता उनका प्रेम है। विजय अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा हिन्दी को नेट पर स्थापित करने के अभियान में सक्रिय हैं। आप वर्तमान में हैदराबाद में अवस्थित हैं व एक कंपनी में वरिष्ठ महाप्रबंधक के पद पर कार्य कर रहे हैं।
यूँ ही तुम्हारे संग देवदार के लम्बे और घने सायो में
तुम्हारा हाथ पकड़ कर चलूँ......
और उनके सायो से छन कर आती हुई धुप से
तुम्हारे चेहरे पर आती किरणों को ,
अपने चेहरे से रोक लूं.....
यूँ ही किसी चांदनी रात में
समंदर के किनारे बैठ कर
तुम्हे देखते हुए ;
आती जाती लहरों से तेरा नाम पूछूँ ..
यूँ ही किसी घने जंगल के रास्तो पर
टेड़े मेडे राहो पर पढ़े सूखे पत्तो पर चलते हुए
तुम्हे प्यार से देखूं ..
और तुम्हारा हाथ पकड़ कर आसमान की ओर देखूं
और उस खुदा का शुक्रिया अदा करूँ .
और कहूँ कि
मैं तुमसे प्यार करता हूँ .....
5 टिप्पणियाँ
विजय कुमार जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति !!!
जवाब देंहटाएंshukriya shilpa ji
हटाएंshukirya rajeev ji , meri kavita ko sthaan dene ke liye !
जवाब देंहटाएंरचनाकार में प्रकृति प्रेम की झलक साफ झलकती है विजय कुमार जी का अभियान सफलता की ओर अगणनीय अघारि हो और हिंदी के प्रति जागरूक रहें की मंगल कामना
जवाब देंहटाएंविजय कुमारजी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लिखी है, कविता ! प्रकृति का सोंदर्य दर्शाने के लिए आप यश के हक़दार ! गाँव गंगाणी में एक ऐसे इंसान से मेरी मुलाक़ात हुई जो फटे कपडे पहना करता है, और वह कई पत्थर की खानों का मालिक है ! उसने जवानी में अपनी कमर पर रखकर भरी हुई धान की बोरियां ढोयी है ! ऐसे श्रमिक पर आप कविता तैयार करें ! "श्रम की पूजा"
दिनेश चन्द्र पुरोहित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.