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क्या तुम्हे एहसास है [कविता] - लावण्या शाह

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 लावण्या शाहरचनाकार परिचय:-



बम्बई महानगर मे पली बडी हुई स्वर्गीय पँ. नरेन्द्र शर्मा व श्रीमती सुशीला शर्मा के घर मेरा जन्म १९५० नवम्बर की २२ तारीख को हुआ.
जीवन के हर ऊतार चढाव के साथ कविता , मेरी आराध्या , मेरी मित्र , मेरी हमदर्द रही है.

विश्व ~ जाल के जरिये, कविता पढना , लिखना और इन से जुडे माध्यमो द्वारा भारत और अमरीका के बीच की
भौगोलिक दूरी को कम कर पायी हूँ -

स्व ~ केन्द्रीत , आत्मानूभुतियोँ ने , हर बार , समस्त विश्व को , अपना - सा पाया है.
.
पापाजी की लोकप्रिय पुस्तक " प्रवासी के गीत " को मेरी श्राधाँजली देती , हुई मेरी प्रथम काव्य पुस्तक " फिर गा उठा प्रवासी " प्रकाशित --

" स्वराँजलि" पर मेरे रेडियो वार्तालाप स्वर साम्राज्ञी सुष्री लता मँगेषकर पर व पापाजी पर प्रसारित हुए है.

http://www.historytalking.com/hindi.htm




क्या तुम्हे एहसास है अनगिनत उन आंसूओं का ?
क्या तुम्हे एहसास है सड़ते हुए नर कंकालों का ?
क्या तुम्हें आती नहीं आवाज़ , रोते नन्हे मासूमों की ?
क्या नहीं जलता ह्रदय देख पीड़ितों को ?
अफ्रीका एशिया के शोषित बीमार बेघर शोषित कोटि मनुज
अनाथ बालकों की सूनी लाचार आँखें देख देख कर
लया नहीं दुखता दिल तुम्हारा, आँख भर आती नहीं क्यों ?
क्यों मिला उनको ये मुकद्दर खौफनाक दुःख से भरा ?
कितने भूखे प्यासे बिलखते रोगिष्ट आधारहीन जन
छिन्न भिन्न अस्तित्त्व के बदनुमा दाग से ये तन !
लाचार आँखें पीछा करतीं हुईं जो न रो सकें
ये कैसा दृश्य देख रही हूँ मार कर मेरा मन !
एहसास तो है उनकी विवशताओं का मुझे भी
पर हाय! कुछ कर नहीं पाते कुछ ज्यादा ये हाथ मेरे
लाघवता मनुज की ये असाधारण विवशता ढेर सी
भ्रर्मित करती मेरे मन की पीड़ा मेरे ही ह्रदय को !
यह वसुंधरा कब स्वर्ग सी सुंदर सजेगी देव मेरे ?
कब धरा पर हर जीव सुख की सांस लेगा देव मेरे ?
कब न कोई भूखा या प्यासा रहेगा ऑ देव मेरे ?
कब मनुज के उथ्थान के सोपान का नव सूर्योदय उगेगा ?



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1 टिप्पणियाँ

  1. कब न कोई भूखा या प्यासा रहेगा ऑ देव मेरे ?
    कब मनुज के उथ्थान के सोपान का नव सूर्योदय उगेगा ? ......किसी के पास नहीं है उत्तर

    जवाब देंहटाएं

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