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अटल सत्य [कविता] - संजय वर्मा "दृष्टि"

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मृत्यु अटल सत्य
दाह शरीर में से
शेष हड्डीयां और राख रहकर
हो जाती मानव मूर्ति विलिन
पंचतत्व में

 संजय वर्मा
रचनाकार परिचय:-
संजय वर्मा "दृष्टि" २-५-१९६२ को उज्जैन में जन्मे लेखक है। कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनके पत्र और रचनाएँ नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। आप आकाशवाणी से भी काव्य पाठ कर चुके हैं। इन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है
मानव मृत्यु का
अनवरत चलते आ रहे क्रम से
क्षण भर आता वैराग्यता का बोध
जो समा जाता
हर एक स्मृति पटल पर

मृत्यु के सच को
अच्छाई /भलाई के विचारों पर
मृत मानव के प्रति श्रद्धांजलि स्वरूप
चिंतन करते मानव
श्मशान के बाहर आते ही
छाई वैराग्यता को
श्मशान में उठे धुँए की तरह
कर जाते है विलिन

कुछ समय तक
जिंदगी रुलाती रहती
किंतु नए मेहमान के आने पर
मिलान करती /खोजती
अपने एवं अपने पूर्वजो के चेहरों की आकृति
खुश हो जाती अब जिंदगी

देखते -देखते
फिर से जिंदगी बूढ़ी हो जाती
मृत्यु का क्रम अनवरत
मानव मूर्ति फिर होने लगती विलिन
क्षण भर की वैराग्यता
फिर से समा जाती
अस्थिर मन में
यही संकेत फिर से
दे जाता मृत्यु
अटल सत्य को

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