अगर हो इजाजत तो
एक प्रश्न पूछे श्रीमान
क्षमा सहित
मेरी जिज्ञासाओं का
करें समाधान
कब तक मनायेंगे आप बकरीद
और हमें होना होगा शहीद
क्या तुम्हें भाता नहीं जिन्दा हमीद .....
माफ करें
एक प्रश्न और मेरे आका
अब आप कौन सा
करने वाले हैं धमाका
जनता को बदा है
और कितना धोखा, फांका ...।
कविताकोश से बकरीद पर विशेष
एक प्रश्न पूछे श्रीमान
क्षमा सहित
मेरी जिज्ञासाओं का
करें समाधान
कब तक मनायेंगे आप बकरीद
और हमें होना होगा शहीद
क्या तुम्हें भाता नहीं जिन्दा हमीद .....
माफ करें
एक प्रश्न और मेरे आका
अब आप कौन सा
करने वाले हैं धमाका
जनता को बदा है
और कितना धोखा, फांका ...।
कविताकोश से बकरीद पर विशेष
रचनाकार
श्रीरंग
जन्म | 01 जुलाई 1964 |
---|---|
जन्म स्थान | इलाहाबाद |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
यह कैसा समय (कविता-संग्रह)
नुक्कड़ से नोमपेन्ह (कविता-संग्रह) |
1 टिप्पणियाँ
श्री रंगजी,
जवाब देंहटाएंकितनी ख़ूबसूरत तालिफ़े क़ुबूल है आपमें, आपकी छोटी से कविता पढ़कर दिल खुश हो जाता है ! जनाब मैंने भी एक हास्य नाटक रच डाला, जिसमें इस्लामी किरदारों की व्यंगात्मक गतिविधियाँ दर्शाई गयी है ! कुल १२ भाग है, इस नाटक के ! एक खंड का नाम है, बकरो मन्नत रो [बकरा मन्नत का]! इस भाग में मैंने यह दर्शाया है - मामू जान 'प्यारे मियाँ' किस तरह मोमिनो में फैले मज़हबी अंधविश्वास को आधार बनाकर कुरबानी के बकरे बेचा करता है ! जिसका कोई मज़हबी मक़सद नहीं होता, केवल मोमिनो को बेवकूफ बनाकर पैसे कमाना होता है !' यह नाटक मुस्लिम दानिश व साहित्यकारों को बहुत पसंद आ रहा है ! उनका कहना है, अल्लाह ताआला अब कोई ख़बरसाँ भेजने वाला नहीं, बस अब इस कौम को खुली आँखों से देखना है के "आप इंसान होकर हेवान की तरह, कैसे अबोध पशुओं की कुरबानी देते जा रहें हैं ? ऐसा आपके साथ होता, तो क्या आप मंज़ूर करते इस नाइंसाफी को ?"
दिनेश चन्द्र पुरोहित dineshchandrapurohit2@gmail.com
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.