रमेशराज,
15/109, ईसानगर,
अलीगढ़-२०२००१
|| लोक-शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
…………………………………………………………………..1.
मीठे सोच हमारे, स्वारथवश कड़वाहट धारे
भइया का दुश्मन अब भइया घर के भीतर है।
इक कमरे में मातम, भूख गरीबी अश्रुपात गम
दूजे कमरे ताता-थइया घर के भीतर है।
नित दहेज के ताने, सास-ननद के राग पुराने
नयी ब्याहता जैसे गइया घर के भीतर है।
नम्र विचार न भाये, सब में अहंकार गुर्राये
हर कोई बन गया ततइया घर के भीतर है।
नये दौर के बच्चे, तुनक मिजाजी-अति नकनच्चे
छटंकी भी अब जैसे ढइया घर के भीतर है।
+रमेशराज
+|| लोक- शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
……………………………………………………………………………………..2.
खद्दरधरी पट्ठा, जन-जन के अब तोड़ें गट्टा
बापू के भारत में कट्टा देख सियासत में।
तेरे पास न कुटिया, तन पर मैली-फटी लँगुटिया
नेताजी का ऊंचा अट्टा देख सियासत में।
तेरी मुस्कानों पर, रंगीं ख्वाबों-अरमानों पर
बाजों जैसा रोज झपट्टा देख सियासत में।
खुशहाली के वादे, तूने भाँपे नहीं इरादे
वोट पाने के बाद सिंगट्टा देख सियासत में।
+रमेशराज
+|| लोक- शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
………………………………………………………………………….3.
बेपेंदी का लोटा, जिसका चाल-चलन है खोटा
उससे हर सौदे में टोटा आना निश्चित है।
जो गोदाम डकारे, जिसका पेट फूलकर मोटा
उसके हिस्से में हर कोटा आना निश्चित है।
रेखा लाँघे सीता, रावण पार करे परकोटा
इस किस्से में किस्सा खोटा आना निश्चित है।
उसकी खातिर सोटा, जिसने बाँध क्रान्ति-लँगोटा
विद्रोही चिन्तन पर ‘पोटा’ आना निश्चित है।
+रमेशराज
+|| लोक- शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
………………………………………………………………………….4.
रोयें पेड़ विचारे, जैसे वधिक सामने गइया
कुल्हाड़ी देख-देख डुगलइया थर-थर काँप रही।
वाणी डंक हजारों, पूत का जैसे रूप ततइया
उसके आगे बूढ़ी मइया थर-थर काँप रही।
मन आशंका भारी, जीवन की डगमग है नइया
बाज को आता देख चिरइया थर-थर काँप रही।
जहाँ घोंसला उसका, अब है भारी खटका भइया
साँप को देख रही गौरइया, थर-थर काँप रही।
गैंग-रेप की मारी, जिसका एक न धीर-धरइया
अबला कैसे सहै चबइया, थर-थर काँप रही।
बन बारूद गया है जैसे सैनिक युद्ध-लड़इया
कबूतर को अब देख बिलइया थर-थर काँप रही।
+रमेशराज
+|| लोक- शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
………………………………………………………………………………….5.
राजनीति के हउआ, कपिला गाय खौंटते कउआ
निधरन को नित नये बनउआ देखे इस जग में।
नीम-आम मुरझायें, नागफनी-सेंहड़ लहरायें
सूखा में भी हरे अकउआ देखे इस जग में।
जो हैं गांधीवादी, वे सारे व्यसनों के आदी
उनके पड़े जेब में पउआ देखे इस जग में।
क्या बाबू-, क्या जज या डी.एम-मिनिस्टर
ज्यादातर रिश्वत के खउआ देखे इस जग में।
+रमेशराज
+|| लोक- शैली ‘रसिया’ पर आधारित तेवरी ||
…………………………………………………………....................6.
नदी किनारे पंडा, सबको मूड़ रहे मुस्तंडा
धर्म से जुड़ा लूट का फंडा पूरे भारत में।
अब तो चैनल बाबा, जनश्रद्धा पर बोलें धावा
ऐंठकर दौलत बांधें गंडा पूरे भारत में।
लोकतंत्र के नायक, खादी-आजादी के गायक
थामे भ्रष्टतंत्र का झंडा पूरे भारत में।
घनी रात अँधियारी, खोयी प्यारी सुई हमारी
उसको टूँढें हम बिन हंडा पूरे भारत में।
मोहनभोग खलों को, सारे सुख-संयोग खलों को
सज्जन को सत्ता के डंडा पूरे भारत में।
सोफे ऊपर बैठी, विदेशी दे आदेश कनैटी
देशी नीति पाथती कंडा पूरे भारत में।
हम सबने फल त्यागे, लस्सी देख दूर हम भागे
प्यारे कोकाकोला-अंडा पूरे भारत में।
आबदार अपमानित, जिसने किया सदा यश अर्जित
अब तो सम्मानित हैं बंडा पूरे भारत में।
+रमेशराज
2 टिप्पणियाँ
हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.