नवीन विश्वकर्मा (गुमनाम पिथौरागढ़ी)
कोई जलता आफताब हो जैसे
कोई खुलकर मिले नहीं अब तो
शख्स हर इक नकाब हो जैसे
ज़ख्म मिलते हैं किश्तों मे गोया
गम का बाकी हिसाब हो जैसे
रोज किरदार बदले है वो तो
मानो कोई किताब हो जैसे
तिनका तिनका शज़र खयालों का
तेरा मिलना अजाब हो जैसे
कहते हैं सब महकता हूँ मै
याद तेरी गुलाब हो जैसे
तू भी गुमनाम है यकीं काबिल काबिल
दिखता लेकिन खराब हो जैसे
1 टिप्पणियाँ
जगजीत जी की आवाज मे सुना है।बेहतर रचना।आभार...।
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