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दोस्ती [कविता]- मनन कुमार सिंह

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दोस्ती का हाथ बढ़ा,

 मनन कुमार सिंह  रचनाकार परिचय:-



मनन कुमार सिंह संप्रति भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर मुंबई में कार्यरत हैं। सन 1992 में ‘मधुबाला’ नाम से 51 रुबाइयों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसे अब 101 रुबाइयों का करके प्रकाशित करने की योजना है तथा कार्य प्रगति पर है भी। ‘अधूरी यात्रा’ नाम से एक यात्रा-वृत्तात्मक लघु काव्य-रचना भी पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार है। कवि की अनेकानेक कविताएं भारतीय स्टेट बैंक की पत्रिकाएँ; ‘जाह्नवी’, ‘पाटलीपुत्र-दर्पण’ तथा स्टेट बैंक अकादमी गुड़गाँव(हरियाणा) की प्रतिष्ठित गृह-पत्रिका ‘गुरुकुल’ में प्रकाशित होती रही हैं।

फिर अपर हाथ बढ़ा,
उमगों का वितान तना,
दिल -दिल का भाव कढ़ा,
और फिर हो गयी दोस्ती !
हो गये हम दोस्त फिर,
सोचते यह सब चले चिर,
कामना उर की उमगी,
बरबस वह कहने लगी---
तुम्हारी दोस्ती मिसाल हो,
हृदय-हृदय विशाल हो,
पल-पल कहता काल हो
कि हो गयी है दोस्ती,
कि हो गयी है दोस्ती,
नर की खातिर नर
जीवन-भर काम करेगा,
एक दूसरे के सुख का
भी ध्यान करेगा,
हर घर हर घर की
ललना का मान करेगा,
क्या कुछ नहीं कर सकता ?
हर कुछ यह इंसान करेगा,
जियेगा इंसा की खातिर,
और उसीके नाम मरेगा।
दोस्ती कब सोचती कि
क्या करूँ,मैं कुछ कहूँ कि
चुप रहूँ ?
मौन मेरा फर्ज नहीं,
दोस्ती खुदगर्ज नहीं,
यह तो हृदय का भाव है,
इसमें कहाँ दुराव है ?
भाव -धारा बह रह रही,
मौन मन सब कह रही:
मन से मन को मिलने दो,
मन के फूलों को खिलने दो,
दूर दंभ-तम रहने दो,
दंभी को अपनी कहने दो,
हम तो अपनी बात कहेंगे,
मानव-मानव साथ रहेंगे,
चार दिन चलेगी गोली,
हो जायेगी खाली झोली,
तब निकलेगी मन की बोली,
कौन बीज यह हमने बोया ?
अपने-अपनों को बस काटा,
हमने अपनों को बांटा,

अभी पड़ा समय का चांटा,
नहीं कोई अब कहता अपना,
नहीं दिखता कोई सपना,
जो है उसे बचा लेंगे,
और नहीं अब हो कुछ क्षय,
हर नर हो हर्षित,निर्भय,
अपनी जय कर,रे नर नश्वर,
और धरा पर नय-ही-नय हो,
ताप मुक्त हो, शापमुक्त हो,
सबका जीवन मंगलमय हो,
मानवता बस रहे सोचती कि
क्या निभाते नर नश्वर,
नर से नर की दोस्ती !
नर से नर की दोस्ती !! *

*

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