HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

नवगीत-1[ नवगीत] - आकुल

 आकुल रचनाकार परिचय:-

आकुल, कोटा


जाते ही नवरात दौर
त्‍योहारों के चलने लगे
अनगिन सपने पलने लगे।

रुत भी आ गई सकुचाई
छत फैली सौड़ रजाई
गली, चौक पथ पगडंडी
रंग-रोगन और पुताई
मधुमास खिले बौर फूटे
कलियाँ चटकी गदराई
मगन मयूर नाचे तक-धिन्
भँवरों ने पींग बढ़ाई।

चौपालों में रात चंग
ढप ढोल झाँझ बजने लगे
अनगिन सपने पलने लगे।

आँगन द्वारा सजीं लटकनें
रोशन टिम-टिम तारों सी
बेदम हैं ये लटकन सुबह
नकली बंदनवारों सी
सजी बारियाँ ड्योढ़ी कुंज
आशापालव हारों सी
और सभ्‍यता लोक संस्‍कृति
पलती क्षितिज किनारों सी

गाँवों की सौगात खेत-
खलिहान आज फलने लगे
अनगिन सपने पलने लगे।

रोशन अफ़्जाई से लोग
शहरों में मन बहलाते
पशुधन फसलें संग लोग
गाँवों में स्‍वप्‍न सहलाते
तीज-त्‍योहार लोक-गीतों से
जीवन का रँग भरते
नकलीपन शहरों के मगर
जीवन के रंग मिटाते

तो भी आज हाथ गाँवों के
 शहरों को बढ़ने लगे
अनगिन सपने पलने लगे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...