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नवगीत-2 [ नवगीत] - आकुल

 आकुल रचनाकार परिचय:-

आकुल, कोटा


दीप जलाए हैं जब-जब
छँट गए अँधेरे।

अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनाएँ
नई-नई आशाओं के
नवदीप जलाएँ
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्‍वर्ण घरोंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकाएँ।

क़दम बढ़ाये हैं जब-जब
छँट गए अँधेरे।

जयघोषों के सँग-सँग
आहुति देते जाएँ
यज्ञ रहे प्रज्‍ज्‍वलित
सिद्ध हों सभी ऋचाएँ
पथभ्रष्‍टों की उन्‍नति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र मे जगती रहतीं
सभी दिशाएँ।

ध्‍येय बनाए हैं जब-जब
छँट गए अँधेरे।

आतिशबाजी से मन के
मनुहार जताएँ
घर-घर ड्योढ़ी
दीपाधार सजाऍं
भाग्‍य बुझाएँ
अँधेरे सूने रहते स्‍वप्‍न
फुलझड़ि‍यों से
गलियों में गुलज़ार सजाएँ।

हाथ मिलाए हैं जब-जब
छँट गए अँधेरे।

मनमाला में गोखरु
मनके नहीं पिरोएँ
गढ़ कंगूरों में
संगीने नहीं पिरोएँ
पतझड़ के मौसम में
शिकवा क्‍या फूलों से
गुंजा की माला में
तुलसी नहीं पिरोएँ।

दर्प गलाए हैं जब-जब
छँट गए अँधेरे।

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