
बम्बई महानगर मे पली बडी हुई स्वर्गीय पँ. नरेन्द्र शर्मा व श्रीमती सुशीला शर्मा के घर मेरा जन्म १९५० नवम्बर की २२ तारीख को हुआ. जीवन के हर उतार चढाव के साथ कविता, मेरी आराध्या, मेरी मित्र, मेरी हमदर्द रही है.
विश्व-जाल के जरिये, कविता पढना, लिखना और इन से जुडे माध्यमो द्वारा भारत और अमरीका के बीच की भौगोलिक दूरी को कम कर पायी हूँ. स्व-केन्द्रीत आत्मानूभुतियोँ ने हर बार समस्त विश्व को अपना सा पाया है.
पापाजी की लोकप्रिय पुस्तक "प्रवासी के गीत" को मेरी श्राधाँजली देती हुई मेरी प्रथम काव्य पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित है.
"स्वराँजलि" पर मेरे रेडियो वार्तालाप स्वर साम्राज्ञी सुष्री लता मँगेशकर पर व पापाजी पर प्रसारित हुए है.
विश्व-जाल के जरिये, कविता पढना, लिखना और इन से जुडे माध्यमो द्वारा भारत और अमरीका के बीच की भौगोलिक दूरी को कम कर पायी हूँ. स्व-केन्द्रीत आत्मानूभुतियोँ ने हर बार समस्त विश्व को अपना सा पाया है.
पापाजी की लोकप्रिय पुस्तक "प्रवासी के गीत" को मेरी श्राधाँजली देती हुई मेरी प्रथम काव्य पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित है.
"स्वराँजलि" पर मेरे रेडियो वार्तालाप स्वर साम्राज्ञी सुष्री लता मँगेशकर पर व पापाजी पर प्रसारित हुए है.
लेकर फौलादी वीरता पहाड़ों की
घटादार बरगद सी असीमता
ग्रीष्म के सूरज से ले प्रखरता
लिया महासागर सा गाम्भीर्य
प्रकृति से लिया ह्रदय विशाल
रात्रि सा दिया विश्राम परिश्रम को
सदियों की विद्वत्ता हुई समाहित
दीं फिर गरूड़ सी ऊंचाईयां भी !
वसंत से ले फिर सुहानी भोर
दिया विश्वास का बीज जो फले
चिर - काल सी फिर दी धीर ,
परिवार की आवश्यकताऐं भी !
मिलाये प्रभु ने सारे गुण साथ
और रहा नहीं तब कुछ भी शेष
हँसे वे देख यह प्रतिमा अप्रतिम
दिया प्यारा सा नाम इसे ' पिता ' !
० लावण्या के कोटि कोटि सादर वंदन
1 टिप्पणियाँ
ऊपर से नारियल जैसे सख्त और अंदर से नरम ऐसे होते हैं पिता, जो कभी भी अपना दर्द अपनों को नहीं दिखाते ऐसे होते हैं पिता.
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