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सिवा तेरे जिंदगी में कोई भी गुहर न था [ग़ज़ल] - गुमनाम पिथौरागढ़ी

Ishq-Faiz

रचनाकार परिचय:-



नवीन विश्वकर्मा (गुमनाम पिथौरागढ़ी)
अखबार में कहीं जला कोई घर न था

पर बस्ती में सलामत कोई बशर न था



तू था जिंदगी का मेरे रतन एक कीमती

सिवा तेरे जिंदगी में कोई भी गुहर न था





मुझसे मिले सफर में थे ऐसे भी हमसफ़र

रहजन तो थे बहुत इक भी रहगुजर न था



इन सरहदों ने बाँट दिए देखो सबके दिल

इस बात का परिंदों पे कोई असर न था



कटती रही ये उम्र हो ज्यूँ रात पूस की

अफ़सोस याद की तेरी कोई शरर न था




वो ही मेरी शब सहर थी वो ही मेरी सांस थी

उसकी गली में फिर भी हमारा गुजर न था

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1 टिप्पणियाँ

  1. नविन विश्वकर्मा जी, "सिवा तेरे जिंदगी में कोई भी गुहर न था" दिलचप्स गझल

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