नवीन विश्वकर्मा (गुमनाम पिथौरागढ़ी)
पर बस्ती में सलामत कोई बशर न था
तू था जिंदगी का मेरे रतन एक कीमती
सिवा तेरे जिंदगी में कोई भी गुहर न था
मुझसे मिले सफर में थे ऐसे भी हमसफ़र
रहजन तो थे बहुत इक भी रहगुजर न था
इन सरहदों ने बाँट दिए देखो सबके दिल
इस बात का परिंदों पे कोई असर न था
कटती रही ये उम्र हो ज्यूँ रात पूस की
अफ़सोस याद की तेरी कोई शरर न था
वो ही मेरी शब सहर थी वो ही मेरी सांस थी
उसकी गली में फिर भी हमारा गुजर न था
1 टिप्पणियाँ
नविन विश्वकर्मा जी, "सिवा तेरे जिंदगी में कोई भी गुहर न था" दिलचप्स गझल
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