नामः-वीरेन्द्र ‘सरल‘ पिताः- स्व द्विजराम साहू माताः-श्रीमती भानबाई साहू जन्म तिथिः-14-06-1971 शिक्षाः-एम ए (हिन्दी साहित्य) सृजन यात्राः-1997 से प्रकाषित कृति-‘कार्यालय तेरी अकथ कहानी‘ यष पब्लिकेशन्स दिल्ली (राश्ट्रीय स्तर पर चर्चित व्यंग्य संग्रह) पुरस्कार, सम्मान- (1) शब्द शिल्पी सम्मान1999, संगम साहित्य समिति मगरलोड़ (2)दिशाबोध विभूति सम्मान 2012 दिशाबोध साहित्य समिति आदर्शग्राम नवागाँव (मगरलोड़) (3) गौर गौरव सम्मान 2013 सृजन साहित्य समिति कोरबा (छ ग ) (4) हरिशंकर परसाई सम्मान 2013 भारतीय साहित्य सृजन संस्थान पटना (बिहार प्रकाषन-दैनिक अखबारों एवं राश्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाषन पताः-ग्राम बोड़रा,पोश्ट-भोथीडीह,व्हाया-मगरलोड़ ,जिला-धमतरी (छ ग) मो-7828243377
पड़ोस वाले परम नास्तिक भैया जी के घर से आजकल सुबह-सुबह खूशबूदार अगरबत्ती और लोहबान जलने की भीनी महक आने लगी थी। सस्वर आरती पाठ सुनाई देने लगे थे। त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च च सखा त्वमेव का जाप सुनाई देने लगा था और ‘हे पतित पावनी, अर्थ-पद-प्रतिष्ठादायनी, काले-कारनामे छिपायनी, माता कुर्सी! यदि मै इस बार फिर चुनाव जीत गया तो तेरे पाये में चार तोला सोना मढ़वाउंगा और अपने लिये सोने का एक छत्र बनवाउंगा। बस चुनाव जीतने भर की देर है फिर तो बस सोना ही सोना है। हे माता कुर्सी मुझ पर कृपा करना मै बस तेरी शरण में हूं। जाउं कहां तजि शरण तुम्हारे जैसी स्तुति सुनाई देने लगी थी। ये सब सुनकर मेरा दिमाग चकरा जाता था पर मामला कुछ भी समझ मे नही आता था।
एक दिन मैने बाजू वाले काका से पूछा- हमारे भैया जी को क्या हों गया है काका! उनकी तबियत ठीक तो है? आजकल वे एकदम बदले-बदले से लग रहे हैं। कुछ खास बात है क्या? काका ने मुझे समझाते हुये कहा-सब समय-समय का फेर है बेटा! चुनावी मानसून सिर पर है तो तैयारी तो करनी ही पड़ेगी। गिरगिट को भी रंग बदलने में कुछ समय लगता है पर अपने भैया जी इस कला में उससे भी दो कदम आगे है। आजकल भैया जी की भक्ति भावना महंगाई की तरह आसमान छू रही है। दिन चढ़ने तक सोने वाले भैया जी अलसुबह स्नान कर कुर्सी के सामने बैठकर ध्यान लगाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। फिर दिन निकलते ही वोटों के तलाश में ऐेसे निकल पड़ते हें जैसे रात होते ही शेर शिकार पर निकल जाता है। मुझे काका की बातें कुछ-कुछ समझ में आ रही थी पर मन में अभी भी एक जिज्ञासा शेष थी। मैने काका से पूछा-काका! भैयाजी आजकल एक ढफली लेकर कुछ गुनगुनाते रहतें हैं, इसका क्या रहस्य है? काका ने कहा- अरे निरे मुर्ख हो। जरा सी बात तुम्हें समझ में नही आती है। भई, सब अपनी ढफली अपना राग अलाप रहे है तो हमारे भैया जी इसमें पीछें क्यों रहे। वे भी यही कर रहें है। मेरी जिज्ञासा शांत हो गई थी। मैं समझ गया था कि मौसम रंग बदलने लगा है। भैया जी चुनाव बुखार से पीड़ित हो गये हैं वरना हमारे भैया जी ऐसे तो नही थे।
उस चर्चा के दो दिन बाद ही भैया जी सुबह-सुबह मेरे घर दनदनाते हुये धमक पड़े और मुझे देखकर मुस्कुराने लगे। मैंने देखा, भैया जी के आसमान पर चढ़े हुये भाव अभी शीत ऋतु के तापमान की तरह उतरा हुआ था। चेहरे से दीनानाथ होने का दर्प गायब हो गया था और आंखो में अनाथ हो जाने का खौफ मंडराने लगा था। शासक का दिल याचक में बदलने लगा था। उन्नत ललाट पृथ्वी की तरह अपने अक्ष पर साढ़े तेईस अंश सामने की ओर झुक गया था। हमेशा जेठ की तरह अंगार बरसाने वाली जुबान से सावन की तरह विन्रमता की मूसलाधार बारिश होने लगी थी। हाथ आपस में ऐसे जुड़ गये थे, मानो उसने अपने हथेलियों के बीच क्विक फिक्स का मजबूत जोड़ लगा रखा हो। आंखों से ऐसे दीनता झलक रही थी मानो कह रही हो कि बस एक वोट का सवाल है बाबा। दया करना। पत्थर दिल भैया जी अभी मोम की पुतले की तरह एकदम मुलायम लग रहे थे।
भैया जी ने मुस्कुराते हुये कहा-ऐसे क्या देख रहे हो भाई ,कुछ नई बात लग रही है क्या मुझमें? मैनें हड़बड़ाते हुये कहा-अं हां। भैयाजी बैठिये ना । बहुत दिनो के बाद आपके शरीर कमल मेरे आंगन पर पडे हैं। भैयाजी ने मुस्कुराते हुये कहा-अरे ऐसा मत बोलो भाई, हम तो आपके सेवक है। मैं आश्चर्य में पड़ गया। भैया जी की वाणी में आज इतनी मिठास थी मानो किसी ने कौएं के गले में कोयल का स्वर प्रत्यारोपित कर दिया हो। चुनाव जीतने के बाद हम आपके हैं कौन कहने वाले आज कह रहे हैं कि हम तुम्हारे है सनम , ना जुदा होंगें हम। हो खुशी चाहे गम। भैया जी ने आगे कहा-आप सब तो हमारे जिगर के टुकड़े है। मेरे मन में विचार आ रहा था कि चुनाव के समय इन्हें सेवक बनने का दौरा पड़ता है और जीतने के बाद इनके सिर पर शासक होने का भूत सवार हो जाता है। मेरे मनो-भावों से अनभिज्ञ भैया जी ने आगे कहा-मैं तो आपसे मिलने के लिये इतना ब्याकुल हो गया था जितना शबरी भी श्रीराम से मिलने के लिये नही हुई रही होगी पर क्या करे भाई समय मिलता नही था। आज समय मिला और में हाजिर हो गया आपके दर्षण करने के लिये। अब मैं चलता हूं । अभी मुझे और भी शिकार के लिये, सॉरी प्रचार के लिये जाना है। बस जरा ध्यान रखना। आप तो वैसे भी समझदार हैं और समझदार के लिये इशारा काफी है। और हाँ एक बात और चुनाव प्रचार के लिये आज यहाँ दुर्गति मैदान में राजधानी से कुछ जादूगर आ रहें है। आप भी वहाँ पधारिये तो बड़ी कृपा होगी, आइयेंगा जरूर। वैसे आज वहाँ काफी भीड़ रहेगी। मैनें पूछा-भैया जी! क्या वहाँ जाने और बैठने की ब्यवस्था हो पायेगी? भैया जी ने प्रेमिका की ओर देखते हुये प्रेमी की तरह मुझे घनघोर प्यार से देखा फिर मुस्कुरा कहा- अरे! आपको तो हम अपने पलको पर बिठाकर ले जायेंगें और वहाँ यदि बैठने की जगह नही होगी तो अपने दिल में बिठा कर रखेंगें। ठीक, अब तो आप खुश है ना? मैं डरा कि कहीं भैया जी जोश में आकर यह न गा बैठे , दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर ,यादों को तेरी दुल्हन बनाकर ,रख लूँगा मैं दिल के पास, मत हो मेरी जान उदास। इसलिये मैं चुप रह गया और भेया जी आगे बढ़ गये।
भैया जी का कुशल अभिनय देखकर मै साचने लगा ,वास्तव में कुर्सी से संयोग इंसान को जितना स्वर्गिक सुख देता है उससे कहीं ज्यादा उसकी बिछोह की कल्पना दारूण दुख भी देती है। एक-एक वोट के लिये ना जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते है। कितने वानरों से दोस्ती का ढोंग रचना पड़ता है और ना जाने कितने शबरियों के जूठे बेर खाने पड़ते है। कुर्सी आदमी से जो कुछ कराये वह कम है और कुर्सी पाकर आदमी जो कुछ भी करे वह उससे भी कम है।
भैया जी तो चले गये पर जाते-जाते मुझे जादू का प्रलोभन दे गये। वैसे जादू हमेशा मानव मन को आकर्शित करता रहा है। मै उससे अछूता कैसे रह सकता था। निर्धारित समय पर मैं भी जादू का खेल देखने के लिये दुर्गति मैदान की ओर चल पड़ा।
सड़क पर चलते समय मैं आजू-बाजू का दृष्य देख चमत्कृत था। बेनर,पोश्टर और फ्लैक्सों की बाढ़-सी आई हुई थी। जिन पर शुभ्र-धवल वस्त्रों से सुसज्जित भैया जी टाइप लोगों की सौम्य मुस्कुराहट के साथ जनता से अपने आप को सेवक बना लेने की अपील करती हुई तस्वीरें थी। हर तस्वीर के नीचें य ऊपर सुनहरे ख्वाब दिखाने वाले वाक्य लिखे हुये थे। किसी ने आसमान से तारे तोड़ लाने का वादा लिखा था तो किसी ने स्वर्ग को जमीन पर उतार लाने की सौगंध खाई थी। ऐसा लग रहा था मानों सपनों के सौदागर सुनहरे ख्वाब बेचने के लिये अपनी तस्वीरों के साथ विज्ञापन कर रहें हों।
अचनाक पीछे शोर-गुल हुआ जिसे सुनकर मेरा ध्यान भंग हुआ। पीछे मुड़कर देखा तो एक भैया जी पूरे लाव-लश्कर के साथ खुली जीप पर सचार होकर माइक में अपने आप बड़बड़ा रहे थे। पिछले कार्यकाल में हमारी संपत्ति बिना किसी ज्ञात स्रोत के पाँच -से-दस गुनी बढ़ गई , हमें क्षमा करना। पिछले चुनाव में किये वादे हम जरा भूल गये , हमें क्षमा करना। संपत्ति पाते ही हम आपके कव्हरेज क्षेत्र से कुछ बाहर हो गये थे, हमें क्षमा करना। मैनें साथ चल रहे एक मित्र से कहा-देखा ,कितने सहृदय है ये लोग। अपनी पिछली भूल के लिये बेचारे जनता से क्षमा माँगते हुये फिर रहें है। मित्र ने मुझे डपटते हुये कहा-सब नौटंकी है। क्षमा माँगो अभियान के बहाने ये सब फिर से जनता से वोट ही माँग रहे हैं, समझा।
हमारी बात-चीत चल ही रही थी तभी मेरे मोबाइल का रिंगटोन बजा। मैनें कॉल रिसीव करते हुये पूछा-कौन? जवाब मिला-आप इन क्षमा माँगो अभियान वालों के झांसे में मत आइये, हम लोग मौका दो अभियान वाले बोल रहें हैं। आज सद्गति मैदान में हमारा एक भंयकर सम्मेलन हो रहा है। आप अपने इष्ट-मित्रों के साथ सपरिवार पधार कर हमें अनुग्रहित करें। हमारा नारा है कि पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें। इतना कहकर उसने फोन काट दिया। दुर्गति और सद्गति मैदान के बीच खड़ा मै असमंजस में पड़ गया कि आखिर हम किधर जायें। फैसला करना मेरे लिये टेढ़ी खीर साबित हो रही थी। मैनें घड़ी देखी। दोनों कार्यक्रमों के समय में पर्याप्त अन्तर था। इसलिए सोचा, अभी तो दुर्गति मैदान की ओर ही चलना ठीक है बाद में सद्गति तो मिल ही जायेगी और में दुर्गति मैदान की ओर बढ़ चला।
वहां काफी भीड़ थी। भारी पंडाल लगा था। सामने बहुत ही खूबसूरत मंच बनाया गया था। मंच पर एक बड़ा-सा फ्लेक्स लगा था जिस पर क्षमा मांगो अभियान लिख था और क्षमा मांगने वालों की तस्वीरे छपी थी। डी जे साउंड सिस्टम से ‘लेके पहला-पहला प्यार, भरके आंखो में खुमार जादू नगरी से आया है कोई जादूगर ‘ का मधुर गीत बज रहा था। अचानक गीत बंद हुआ और घोषणा हुई कि क्षमा मांगो अभियान के प्रणेता और हम सब के मुखिया मंच पर तशरीफ ला रहे है। भीड़ की निगाहें मंच पर टिक गई ओर ध्यान माइक पर एकाग्र हो गया। कुछ ही देर में अपनी मंडली के साथ मंच पर एक जादूगर प्रकट हुआ जिसके हाथ में एक पिटारा था। जादूगर को सपेरा समझकर छोटे बच्चें डर के मारे पीछे हट गये। स्वागत-सत्कार की तमाम औपचारिकताओं को धता बताते हुये जादूगर ने सीधे माइक थाम कर कहना शुरू किया। सबसे पहले मैं आप सभी से क्षमा मांगता हूं। अभी तक हमने जो कुछ भी किया, कृपा करके उसे भूल जाइये और फिर से हमें ही जिताइये। मेरे हाथ में आप जो पिटारा देख रहे हें वह कोई साधारण पिटारा नही बल्कि भानुमति के पिटारे से भी ज्यादा करामाती है। यह कहकर उसने पिटारा खोल दिया। उस पिटारे में से द्रोपदी के चीर और हनुमान के पूंछ से भी ज्यादा लम्बा एक घोषणा-पत्र निकला। जिसमें इतने लोक-लुभावन वादे किये गये थे जितना कोई प्रेमी भी अपनी प्रेमिका से नही करता। बहुत सारी चिकनी-चुपड़ी बातें कर लेने के बाद उस जादूगर ने अंत में बस इतना ही कहा, आप अपना कीमती वोट बस हमें ही दीजिये। बदले में हम आपको सपनों की रंगीन दुनिया की सैर करायेंगे। फिर सभा समाप्त हो गई और जादूगर गधे के सींग की तरह मंच से गायब हो गया। भीड़ धीरे-धीरे छटने लगी।
हम लोग भी वहां से लौटने लगे। बस कुछ दूर ही पैदल चल पाये थे कि हमारे सामने एक चार पहिया वाहन आकर रूक गया। उसमे बैठे कुछ लोग हमें जबरदस्ती वाहन के भीतर खींचने लगे। मैं समझ गया, ये मौका दो अभियान वाले हैं जो जबरन सेवा करने के लिये मरे जा रहे हैं। अनिच्छा से ही सही पर हमें गाड़ी में सवार होना ही पड़ा। गाड़ी सद्गति मैदान की ओर दौड़ने लगी।
सदगति मैदान का दृष्य भी लगभग वही था जो दुर्गति मैदान का था। वही भीड़, वही पंडाल ,मंच और माइक। अन्तर था तो बस इतना कि यहां मंच पर बैठे जादूगरो के साथ मंच पर एक गाय भी खड़ी थी ,एक पेड़ रखा था और एक चिराग जैसी कोई चीज। भीड़ इन चीजों को बड़ी कौतूहल से देख रही थी। किसी को कुछ भी समझ में नही आ रहा था पर सबके मन एक जिज्ञासा थी। कुछ समय बाद मुख्य जादूगर माइक थाम कर कहने लगा-मेहरबान! कदरदान! साहिबान! मंच पर आप जो गाय देख रहें हैं वह कोई साधारण नही बल्कि कामधेनु हैं और जो पेड़ है वह कल्पवृक्ष है। यदि आप हमें जिताते हें तो यह कामधेनु आपके सभी मनोकामनाओं को पूरा करेंगी और कल्पवृक्ष से आप जो मांगेगें वही मिलेगा। और यह चिराग जो मैंनें अलादिन एंड कम्पनी से खासतौर पर आप सभी के लिये बनवाया है हमें जिताने के बाद आप जैसे ही इसे घिसेंगें वैसे ही बोतल से जिन्न बाहर आकर आपके सामने हुकुम मेरे आका कहते हुये खड़ा हो जायेगा फिर आप उसे जो भी आदेश देंगें वह उसे पूरा करेगा। हमें मालूम है अभी आपको इस पर विश्वास नही हो रहा होगा। चलिये ,हम इसे घिसकर अभी दिखाते हैं। यह कहकर जादूगर चिराग घिसने लगा । सचमुच ही बोतल से जिन्न बाहर निकल आया और हुकम मेरे आका कहकर खड़ा हो गया।
जादूगर भीड़ की तरफ देखकर मुस्कुराया और बोला-देखा आपने? यदि आप में से कोई भी टायल के तौर पर इससे कुछ पूछना चाहें तो पूछ सकते है। भीड़ में से एक आदमी हाथ उठाया तो उसके सामने माइक लाया गया। उस आदमी ने माइक थाम कर पूछा-माननीय! जिन्न महोदय जी, क्या आप देश से भ्रश्टाचार का सफाया कर सकते हैं? गरीबों को उनका वाजिब हक दिला सकते हैं? देश को गरीबी, भूखमरी और बेकारी की समस्या से मुक्ति दिला सकते है। बड़े अपराधियों को सजा दिला सकते है? ये सब सुनकर जिन्न घबराकर बोतल में घुस गया।
जादूगर ने उस आदमी को डांटते हुये कहा-आपने उटपुटांग प्रश्न करके जिन्न जी को नाराज कर दिया। अरे पहले हमें वोट तो दो। जब जीतेंगे , जिन्न साहब जी भर कर खायेगा, उसे शक्ति मिलेगी तभी तो वह आपका आदेश मानेगा। वह आदमी अपना -सा मुंह लिये चुप रह गया। भीड़ में सन्नाटा पसर गया।
जादूगर ने बहुत कुछ कह लेने के बाद अन्त में गांव-गांव में घुम-घुम कर हाथ की सफाई दिखाने वाले किसी छुट भैये जादूगर की तरह कहा-आपके सामने हम अपनी झोली फैलाकर रख दिये हें अब आप अपना वोट इस झोली में डालिये वरना यह गाय सपने में आपको सींग मारने के लिये दौड़ायेगी। पेड़ बुरे-बुरे सपने दिखायेगा और जिन्न तरह-तरह से परेशान करेगा। आप हमें मौका देंगें तभी हम इन्हें अपने वश मे रख पायेंगें, वरना । फिर जादू समाप्त हो गया और जादूगर छू-मंतर हो गये।
भीड़ खिसकने लगी। मेरे बाजू में खड़े एक बुजुर्ग सज्जन अपने आप बड़बड़ा रहे थे। बस यही हो रहा है पिछले कई वर्शो से इस देश में। मंच वही है , बस जादूगर ही बदल रहे है और अपनी जुबानी जादूगरी ही दिखा रहे है। पता नही वह जादूगर कब आयेगा जो आवाम का दर्द समझेगा। अपने जादू से देश की समस्याओं का सफाया करेगा। अभी तो बस इंतजार ,इंतजार और सिर्फ इंतजार ही है।
1 टिप्पणियाँ
बहुत बढ़िया आपका नया लेख अच्छा लगा |
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