रमेशराज,
15/109, ईसानगर,
अलीगढ़-२०२००१
सुनना मेरे बाबुल, बछिया बहुत तिहारी व्याकुल
बगिया का मुरझाया-सा गुल, दुःख की मारी है।
सत्य मानियो मइया, पिंजरे में है सोच चिरइया
ततइया ससुर, सास बरइया, ननद कुठारी है।
क्या बतलाऊँ दीदी, कितने घाव दिखाऊँ दीदी
और तो और जिठानी बैरिन बनी हमारी है।
सुन लो चाचा-चाची, मैं कहती हूँ साँची-साँची
देने की अब मुझको फाँसी की तैयारी है।
सब दहेज के भूखे, देवर-जेठ, बाप पप्पू के
हर कोई कुत्ते-सा भूके बारी-बारी है।
बधिकों के द्वारे पर, अब दिन-रात काँपती थर-थर
बँधी रहेगी बोलो कब तक गाय तुम्हारी है?
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