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घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल [मालवी कविता]- राजेश भंडारी “बाबु”

रचनाकाररचनाकार परिचय:-


राजेश भंडारी “बाबु”
१०४ महावीर नगर इंदौर
९००९५०२७३४
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल,
“जन धन” वाला हुवा हे माला माल ,
लखपति हुइग्या जो था कदी कंगाल ,
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |
ठग्या सा दिखी रिया बेईमान ने नक्काल
सरकार भी चली री हे चाल पे चाल
रद्दी कागज़ वाई गयो करोडो को माल
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |
काला धन वाला की खेचाई गी हे खाल
फ़साने सरकार फेकी री जाल पे जाल
अच्छा अच्छा स्याणा का बुरा हुवा हे हाल
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |
बेईमान होण पानी पि पि के बके हे गाल
कानून बाची बाची के बुरा हुवा हे हाल
गुलाबी नोट दिखावे हे रोज नया कमाल ,
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |
बेंक ने सरकार का खजाना हुवा गच
अबे नि कई तकलीफ ने मच मच
घुसखोर मेनेजर के जेल में दिया डाल
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |
बाई बेन होण को भी बुरो हुवो हे हाल
शरम का मारे हुई रिया हे गाल लाल
छिपाई छिपाई के राख्यो थो खजानों
सबके मालम पड़ने पे मची रयो बवाल
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |
मुफलिसी की जिन्दगी हुई हे उनकी आज
करोडो कीमत रखता जिनकी मुछ का बाल
दन निकालना मुश्किल पड़ी रिया जिनके
भारी पडेगो मुफलिसी को यो नवो साल
घनो याद रेगो यो नोटबंदी को साल |




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