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तुम और मैं [कविता] - दीप्ति शर्मा

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 दीप्ति शर्मा रचनाकार परिचय:-



नाम - दीप्ति शर्मा
जन्म तिथि - 20 फरवरी
जन्म स्थान - आगरा
प्रारम्भिक शिक्षा - पिथौरागढ़ 6 क्लास तक .. फिर 2 साल भीमताल .. और अब आगरा में हूँ
हाल ही में बी टेक ख़तम हुआ है वर्ष 2012 में .
पिता जी - सरकारी नौकरी में हैं जल निगम में अभियन्ता
माता जी - गृहणी हैं
मैं बचपन से ही लिख रही हूँ |
adress - 72, ADAN BAGH EXTENTION DAYAL BAGH AGRA 282005 (U.P)
blog- deepti09sharma.blogspot.com



मैं बंदूक थामे सरहद पर खड़ा हूँ
और तुम वहाँ दरवाजे की चौखट पर
अनन्त को घूँघट से झाँकती ।
वर्जित है उस कुएँ के पार तुम्हारा जाना
और मेरा सरहद के पार
उस चबूतरे के नीचे तुम नहीं उतर सकतीं
तुम्हें परंपराऐं रोके हुये है
और मुझे देशभक्ति का ज़ज़्बा
जो सरहद पार करते ही खतम हो जाता है
मैं देशद्रोही बन जाता हूँ
और तुम मर्यादा हीन
बाबू जी कहते हैं.. मर्यादा में रहो, अपनी हद में रहो
शायद ये घूँघट तुम्हारी मर्यादा है
और मेरी देशभक्ति की हद बस इस सरहद तक.. ।

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2 टिप्पणियाँ

  1. मर्यादा के लिये जीवन मूल्य भावभूमि तैयार करते हैं. सैनिक और स्त्री के मर्यादा में बंधे होने की कशमकश को प्रस्तुत करने का प्रयास उत्तम है.

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