HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

कमलेश्वर को याद करते हुए. [जीवन परिचय]- गोवर्धन यादव

रचनाकाररचनाकार परिचय:-

गोवर्धन यादव.
१०३, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा(म.प्र.) 480-001 94243-56400
जन्म 6 जनवरी 1932 ( मैनपुरी उ.प्र.) मृत्यु- 27 जनवरी 2007( फ़रीदाबाद हरियाणा)

“ अजीब दिन थे, नीम से झरते हुए फ़ूलों के दिन. कनेर में आती पीली कलियों के दिन. न बीतने वाली दोपहरियों के दिन और फ़िर एक के बाद एक-लगातार बीतते हुए दिशाहीन दिन”. अपने चर्चित उपन्यास “ कितने पाकिस्तान” में जब यह पंक्तियां कमलेश्वर ने लिखीं होगीं तो सोचा भी नहीं होगा कि ऎसी ही किसी वसन्त ऋतु में वे इस संसार को अलविदा कह जाएंगे.

आगरा विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक में अज्ञानवश कमलेश्वर के नाम के आगे स्वर्गीय लिखा गया था. जब यह बात उनके मित्रों ने उन्हें फ़ोन पर बातें करते हुए पूछा था- “कमलेश्वर तुम मरे कब थे?” बातों ही बातों में खुलासा हुआ और उन्होंने उसी अंदाज में एक लेख लिखा “कमलेश्वर अभी जिन्दा है”. आज हम जब कमलेश्वर के कहनी संग्रह” राजा निरबंसिया” पर चर्चा करते हैं तो इस बात की याद हो आना स्वाभाविक है कि सचमुच एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार, अद्भुत कथा-शिल्पी, बेजोड़ पत्रकार, कुशल पटकथा लेखक जो कहानियों के माध्यम से, सिनेमा के माध्यम से, उपन्यास के माध्यम से, भास्कर में प्रति सोमवार को एक आलेख के साथ घर-घर तक पहुंच जाने वाला कमलेश्वर, सचमुच में आज हमारे बीच नहीं है. साहित्य सिनेमा के माध्यम से गहरे व जीवन्त रूप से जुड़े कमलेश्वर ने मनोहर श्याम जोशी के तर्कों को आत्मसात करते हुए कहा था कि-“ जो भी विद्या मुझे पास बुलाएगी, उसके पास जाना चाहूंगा. अनामंत्रित ढंग से विद्याओं से मेल-मिलाप नहीं करुंगा”

उन्होंने एक फ़िल्म “आंधी” की पटकथा लिखी थी जिसकी नायिका सुचित्रा सेन थी, के हाव-भाव को इंदिरा गांधी से जोड़कर देखा गया. आपातकाल के दौरान सरकारी पक्ष के बहिष्कार का एक अनुठा तरीका इजाद किया था उन्होंने और सारिका के पन्नों में उन अंशों को सरकारी नौकराशाहों के सामने रखने की बजाय काली श्याही से ढंककर अपना विरोध जताया था. दूरदर्शन के क्षेत्रीय निदेशक बनाने की चर्चाओं के बीच जब वे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी से मिलवाये गए तो उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से बताया कि मैंने आपातकाल के खिलाफ़ अखबारों में तमाम सम्पादकीय और आंधी फ़िल्म की कहानी लिखी है. इंदिराजी उनकी बेबाकीपन और स्पष्टवादिता की कायल हुईं और ८०-८२ के मध्य वे दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर आसीन किए गए.

वे साहित्य को परम्पराओं और सीमाओं में बांधने के खिलाफ़ थे. श्री राजेन्द्र यादव तथा मोहन राकेश के साथ मिलकर उन्होंने “नई कहानी” आंदोलन का सूत्रपात किया था. प्रसिद्ध आलोचक डा.नामवरसिंह ने उनकी नई कहानी को श्रेय न देकर निर्मल वर्मा की कहानी “ परिन्दे” को श्रेय दिया था. सही शब्दों में कहा जाए तो श्री कमलेश्वर नई सृजनशीलता के प्रणेता ही नहीं, वरन हर उस नयेपन के समर्थक थे, जिसकी सामाजिक सार्थकता पर उन्हें यकीन था. उनका स्वयं का व्यक्तित्व और साहित्य मानवतावाद को प्रतिबिम्बित करता है. अपनी रचनाओं में उन्होंने एक तरफ़ शहरी जीवन की जटिलताओं-समस्याओं और संवेदनशून्यता तथा जीवन की धृष्टताओं को बखूबी रेखांकित किया तो समकालीन जीवन के जटिल प्रश्नों को सेकुलर दृष्टि से सुलझाने का प्रयत्न किया. इस तरह उनके लेखन में संप्रेषणीयता आयी, वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे. अपनी रचनाओं में उन्होंने लोक शैली व उससे जुड़े प्रतीकों का भी जीवन्त रूप में इस्तेमाल किया.

“नयी कहानी” आंदोलन के सूत्रपात के साथ ही उन्होंने मुंबई में “सारिका” का संपादन, साथ ही समान्तर कहानी आंदोलन चलाया, जिसमें मराठी के दलित आंदोलन को शामिल कर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया. आज हिन्दी में दलित साहित्य आंदोलन की जो रूप रेखा है उसके पीछे आपका बड़ा हाथ था. वस्तुतः कमलेश्वर ऎसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने समय से आगे जाकर सोचने का जज्बा था.

सारिका में श्री कमलेश्वर जी ने लेखकों के संघर्ष को चित्रित करता एक स्तम्भ “ गर्दिश के दिन” प्रारंभ किया जो काफ़ी लोकप्रिय हुआ. उनकी सदाशयता इतनी मशहूर थी कि कई जरुरतमंद कथाकारों को वे पहले पारिश्रमिक दे दिया करते थे और उनकी कहानियां बाद में प्रकाशित होती थीं. आपने सैंकड़ों फ़िल्मों व धारावाहिकों की पटकथाएं लिखीं, जिनमें “आंधी” और “बर्निंग ट्रेन” काफ़ी चर्चित रहीं. आपको दूरदर्शन के प्रथम पटकथा लेखक के रूप में जाना जाता था. परिक्रमा तथा बंद फ़ाईलें काफ़ी लोकप्रिय हुए. भारतीय कथाओं पर आधारित प्रथम साहित्यिक धारावाहिक “दर्पण” भी कमलेश्वर जी ने ही लिखा था. संभवतः प्रेमचंद जी के बाद कमलेश्वर ही एक ऎसी शख्सियत थे, जिन्होंने आजीवन अपने शब्दों को हथियार बनाकर शोषण के विरुद्ध सर्वहारा बनकर संघर्ष किया.

कमलेश्वर के व्यक्तित्व और रचनाधर्मिता को किसी खास फ़्रेम में जड़कर देखना मुनासिब नहीं होगा. वे एक साथ बहुत कुछ थे. ’कितने पाकिस्तान” में उन्होंने हर प्रकार की साम्प्रदायिकता व अंधता पर जमकर चोट की. हिन्दी में “कितने पाकिस्तान” पहला ऎसा उपन्यास है जिसके बारह संस्करण छपे और हाथों हाथ बिक गए. यहां तक की लोग फ़ोटो कापी पढ़कर ही संतुष्टि पाने लगे थे. बीसियों भाषा में इस उपन्यास का अनुवाद हुआ.

कमलेश्वर से जुड़ना यानि अपनी चेतना से जुड़ना होता है. वे कब अचेतन मन से होते हुए चेतना के फ़लक पर आ जाते हैं, पता ही नहीं चल पाता. बचपन से लेकर अब तक उनकी, न जाने कितनी ही कहानियां मुझे पढ़ने को मिली, वे अपनी जोरदार उपस्थिति के साथ कहानियों को नया मोड़ देते दिखे, नया शिल्प देते दिखे. उपन्यास तो उनके ढेरों हैं पर “आंधी” ही पढ़ पाया जिस पर फ़िल्म भी बनी थी.

उन्होंने कहानियों के अलावा उपन्यास, समीक्षाएं, नाटक, संस्मरण आदि लिखे. एक बार पाठक-मंच से उनका कहानी संग्रह “ राजा निरबंसिया” पढ़ने को मिली, जिसमें कुल जमा सात कहानियां है. देवा की मां, पानी की तस्वीर, धूल उड़ जाती है, सुबह का सपना, मुरदों की दुनियां, आत्मा की आवाज तथा राजा निरबंसिया. कितनी ही बार ये कहानियां पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से सामने आयीं. जितनी भी बार पढ़ा, हर बार कुछ नयी सी लगी मुझे. आपके लिखने का ढंग ही कुछ ऎसा था जो पाठकों को बांध कर रखता है. यथार्थ और कल्पनाशीलता का अद्भुत समन्वय यहां देखने को मिलता है, जो रागात्मक संबंधों को जोड़ता है. भावुकता का अतिरेक होने के बावजूद उनके पात्र कमजोर नहीं पड़ते. एक अद्भुत जिजीविषा के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं. पात्रों का चित्रण सहज और स्वाभाविक होता है. कहीं भी कृत्रिमता दिखाई नहीं देती. कथावस्तु में तात्कालिकता की तीव्रता, भावुकता व आवेगधर्मिता से मुक्त होते हुए भी पात्र अपना असर डालते हैं.

कमलेश्वर में यह गुण सदा से रहा है कि वे स्वयं आगे बढ़कर अपना कद नहीं बढ़ाते बल्कि अपने समकालीनों-समवय तथा खासकर युवा पीढ़ी को भी मार्ग देते रहे हैं. एक बार संबंध स्थापित हो जाने पर आप भले ही भूल जाएं, कमलेश्वर की स्मरण-शक्ति से आप बाहर नहीं जा सकते. आप उन्हें पत्र डालना भूल जायें लेकिन कमलेश्वर अपने पत्रों के माध्यम से उन तक जा पहुंचते और उनका हाल जान लेते.

आज वे हमारे बीच भले ही नहीं हैं लेकिन अपनी कहानियों आदि के माध्यम से हमारे आसपास, हमारे ही इर्दगिर्द मौजूद हैं.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------
गोवर्धन यादव.
१०३, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा(म.प्र.) 480-001 94243-56400




एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. गोवर्धन यादव जी, कमलेश्वर जी के याद में जीवन परिचय पढ़कर अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  2. नई कहानी के सशक्त हस्ताक्षर कमलेश्वर का कृतित्व और व्यक्तित्व सदैव अनुकरणीय बना रहेगा. नई कहानी में भोगवाद और स्त्री-पुरुष सम्बंधों को प्रधानता देने का लांछन आलोचक,समालोचक उन पर लगाते हैं लेकिन समय की मांग और समाज का यथार्थ जब सृजन से विमुख हो जाता है तब साहित्य की ग्राहता सीमित हो जाती है.
    महान कथा-शिल्पी को हमारा नमन...

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...