बदली छायी

डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]
फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com
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काली भयानक रात,
चारों ओर झंझावात,
पर, जलता रहेगा - दीप---मणिदीप
सद्भाव का / सहभाव का।
उगती जवानी देश कीे होगी नहीं गुमराह।
उजले देश की जाग्रत जवानी
लक्ष्य युग का भूल होगी नहीं गुमराह,
तनिक तबाह।
मिटाना है उसे - जो कर रहा हिंसा,
मिटाना है उसे-
जो धर्म के उन्माद में फैला रहा नपफ़रत,
लगाकर घात गोली दाग़ता है
राहगीरों पर / बेव़्ाफ़सूरों पर।
मिटाना है उसे - जिसने बनायी
धधकती बारूद-घर दरगाह।
इन गंदे इरादों से
नये युग की जवानी
तनिक भी होगी नहीं गुमराह।
चाहे रात काली और हो,
चाहे और भीषण हों चक्रवात-प्रहार,
पर, सद्भाव का: सहभाव का
ध्रुव-दीप / मणि-दीप
निष्कंप रह जलता रहेगा।
साधु जीवन की
सतत साधक जवानी / आधुनिक,
होगी नहीं गुमराह।
कि देश हमें नहीं दिखता,
विश्व-मानवता का लिबास
हमें नहीं फबता।
इस पृथ्वी पर मात्र हम रहेंगे -
हमारे धर्मवाले
हमारी जातिवाले
हमारे प्रांत वाले
हमारी जबान वाले
हमारी लिपि वाले,
यही हमारा देश है,
यही हमारा विश्व है।
कौन तोड़ेगा इस पहचान को?
ख़ाक करेगा इस गलीज जहान को?
नये इंसानो!
आओ, क़रीब आओ
और मानवता की ख़ातिर
धर्म-विहीन, जाति-विहीन
समाज का निर्माण करो,
देशों की भौगोलिक रेखाएँ मिटाकर।
विभिन्न भाषाओं
विभिन्न लिपियों को
मानव-विवेक की उपलब्धि समझो।
नये इंसानो!
अब चुप मत रहो
तटस्थ मत रहो।
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3 टिप्पणियाँ
डा. महेंद्रभटनागर जी आपकी सभी कविताएँ बढ़िया होती हैं.
जवाब देंहटाएंदिनांक 31/01/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
आपकी लिखी हुई गजल हमेशा ही बहुत बढ़िया होती हैं.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.