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गणत्रंत्र दिवस की कविताएं [कविता]- कुलवंत सिंह

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कवि कुलवंत सिंहरचनाकार परिचय:-






कवि कुलवंत सिंह



1. माँ इसको कहते

जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नही विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते .
माँ इसको कहते .

इस धरती ने हमको पाला,
तन अपना है इसने ढ़ाला,
इसकी पावन संस्कृति में हम
सराबोर रहते .
माँ इसको कहते .

इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते .

देश धर्म क्या हमने जाना,
अपनी संस्कृति को पहचाना,
जाएँ कहीं भी विश्व में हम
याद इसे रखते .
माँ इसको कहते .

मिल जुल कर है हमको रहना,
नहीं किसी से कभी झगड़ना,
मानवता की ज्योत जला हम
प्रेम भाव रखते .
माँ इसको कहते .

2. भारती

भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .

देश के युग तरुण कहाँ हो ?
नव सृष्टि के सृजक कहाँ हो ?
विजय पथ के धनी कहाँ हो ?
रथ प्रगति का सजा सारथी .

भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .

शौर्य सूर्य सा शाश्वत रहे,
धार प्रीत बन गंगा बहे,
जन्म ले जो तुझे माँ कहे,
देव - भू पुण्य है भारती .

भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .

राष्ट्र ध्वज सदा ऊँचा रहे,
चरणों में शीश झुका रहे,
दुश्मन यहाँ न पल भर रहे,
मिल के सब गायें आरती .

भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .

आस्था भक्ति वीरता रहे,
प्रेम, त्याग, मान, दया रहे,
मन में बस मानवता रहे,
माँ अपने पुत्र निहरती .

भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .

द्रोह का कोई न स्वर रहे,
हिंसा से अब न रक्त बहे,
प्रहरी बन हम तत्पर रहें,
सैनिकों को माँ निहारती .

भारती भारती भारती,
आज है तुमको पुकारती .

3. देश हमारा

गाएँगे हम गाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

इसकी माटी तिलक हमारा,
देवलोक सा भारत प्यारा,
कण-कण जिसका लगता प्यारा,
नही किसी से जग में हारा,

जग में मान बढ़ाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

बहे प्रीत की अविरल धारा,
भक्ति से संसार संवारा,
मानवता का बना सहारा,
तीन लोक में सबसे न्यारा,

दिल में सदा बसाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

आँख उठा कर जिसने देखा,
यँ फिर छेड़ी सीमा रेखा,
नही करेंगे अब अनदेखा,
पूरा कर देंगे हम लेखा,

घर घर खुशियाँ लाएँगे !
गीत देश के गाएँगे !!

4. प्रतिज्ञा

तीन रंग का अपना झंडा
सबसे ऊँचा फहराएँगे,
हो भारत जग में अग्रिम सदा
कर्म देश हित कर जाएँगे ।

भेदभाव से दूर रहें हम
विश्व बंधु का अपना नारा,
प्रेम जगाएँ हर मानस में
बन फूल खिले हर जन प्यारा ।

हर विपदा से लोहा लेकर
हर बाधा को पार करेंगे,
घर घर में हम दीप जलाकर
अंधकार को दूर करेंगे ।

सत्कर्मों के पुष्प खिलाकर
सुमन सुरभि हम बिखराएँगे,
देशभक्ति के सच्चे राही
नाम देश का कर जाएँगे ।

निज गौरव, निज मान हेतु हम
जान निछावर कर जाएँगे,
स्वाभिमान के धनी बहुत हैं
देश हेतु खुद मिट जाएँगे ।

ज्ञान, विज्ञान नया सीखकर
कीर्ति ध्वजा हम फहराएँगे,
उजियारा हर जीवन फैले
ज्ञान ज्योति से भर जाएँगे ।

प्रगति पथ विश्वास से बढ़कर
हर क्षेत्र क्रांति कर जाएँगे,
खुशियां हर जीवन में छाएँ
कर्म देश हित कर जाएँगे ।

5. देवों का वरदान

देवों का है यह वरदान ।
प्यारा अपना हिंदुस्तान ।

है अनमोल हमारा देश ।
सिमटे हैं कितने परिवेश ।

नित नया कर प्रकृति शृंगार ।
दिखलाती है रूप हजार ।

पावन धरती स्वर्ग समान ।
जन्म यहीं लूँ, है अरमान ।

ऋषि मुनि संतों का है वास ।
देवि देवता का आभास ।

खोजें फैला ज्ञान अथाह ।
चलते रहें प्रगति की राह ।

सदविचार का करें प्रसार ।
दूर रहे अहं विकार ।

वीरों की है भूमि महान ।
भाषा, संस्कृति, गुरु सम्मान ।

सत्य अहिंसा बहती धार ।
मानवता के गुणी अपार ।

गौरवमय अपना इतिहास ।
अर्व अनेक भरें उल्लास ।

हम खुद हैं अपनी पहचान ।
जय जय जय हो हिंदुस्तान ।

6. हिंद - देश

दुनिया में है सबसे प्यारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

धरती पर है देश निराला,
जग को राह दिखाने वाला,
कोटि नमन करते इस भू को
ले गोदी सबको है पाला ,

योग अहिंसा, ज्ञान, ध्यान की
बहती पावन निर्मल धारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

भांत भांत के फूल खिले हैं,
इस धरती के रंग में ढ़ले हैं,
गोरे, काले यां हों श्यामल
दिल के लगते सभी भले हैं,

जप तप पूजा धर्म न्याय की
दिलों में बहती अमृत धारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

मिलन अनोखा संस्कृति का है,
भाषा, वाणी, बोली का है,
सबको दिल में बसाता देश
ऋषियों, मुनियों, वेदों का है,

सत्कर्मों से, सदभावों से,
मानवता का बना सहारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

देवों की है महिमा गाता,
हर जन मंदिर मस्जिद जाता,
इस धर्म धरा पर कर्मों से
पुण्य प्रगति की अलख जगाता,

पर्वत, नदियों घाटी ने मिल,
इस भू को है खूब संवारा ।
हिंद देश है सबसे न्यारा ॥

7. होते वीर अमर

जब से हमने ठान लिया है,
सबने हमको मान लिया है,
भारत माँ की रक्षा को हम
सदा रहें तत्पर ।
होते वीर अमर ॥

नन्हे बालक हम दिखते हैं,
लेकिन साहस हम रखते हैं,
कोई टिके न, जब चलते हम
वीरता की डगर ।
होते वीर अमर ॥

भले देश पर मर मिट जाएँ,
सीने पर ही गोली खाएँ,
दुश्मन भले ही सामने हो
चलते रहें निडर ।
होते वीर अमर ॥

देश भक्ति है अपना नारा,
जिसने भी हमको ललकारा,
उसको धूल चटा देंगे हम
एक एक गिनकर ।
होते वीर अमर ॥

तूफानों में हम घिर जाएँ,
काल प्रलय बन आ जाए,
मिट जाए हमसे टकरा कर
खड़े रहें डटकर ।
होते वीर अमर ॥

8. जय हो ! भारत माँ की जय हो !

मुकुट शीश उन्नत शिखर
पदतल गहरा विस्तृत सागर
शोभित करती सरिताएं हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

सत्य, अहिंसा, त्याग भावना
सर्वमंगल कल्याण प्रार्थना
जन -जन हृदय महक रहा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

पुरा संस्कृति उत्थान यहीं पर
धर्म अनेक उद्गम यहीं पर
पर उपकार सार निहित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

विद्वानो, वीरों की पुण्य धरा
बलिदानों से इतिहास भरा
तिलक रक्त मस्तक धरा हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

साहित्य, खगोल, आयुर्विज्ञान
योग, अध्यात्म, अद्वैत, ज्ञान
ज्ञानी, दृष्टा, ऋषि, गुणी हों
जय हो ! भारत माँ की जय हो !

राष्ट्र उत्थान भाव निहित हो
धर्म दया से अनुप्राणित हो
जग में भारत विस्तारित हो
जय हो ! भारत माँ की जय हो !



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