जुल्फों की घटा छितरा बोली रह औकात में,
मनन कुमार सिंह संप्रति भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर मुंबई में कार्यरत हैं। सन 1992 में ‘मधुबाला’ नाम से 51 रुबाइयों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसे अब 101 रुबाइयों का करके प्रकाशित करने की योजना है तथा कार्य प्रगति पर है भी। ‘अधूरी यात्रा’ नाम से एक यात्रा-वृत्तात्मक लघु काव्य-रचना भी पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार है। कवि की अनेकानेक कविताएं भारतीय स्टेट बैंक की पत्रिकाएँ; ‘जाह्नवी’, ‘पाटलीपुत्र-दर्पण’ तथा स्टेट बैंक अकादमी गुड़गाँव(हरियाणा) की प्रतिष्ठित गृह-पत्रिका ‘गुरुकुल’ में प्रकाशित होती रही हैं।
गया समय तेरा अब मत भटको जज्बात में।
तारे तूने तोड़े खूब,अबतक झोली खाली क्यूँ
चाँद का घूँघट हटा था कैसे-कैसे हालात में।
डूब गये तारे हँसते,धड़कन मेरी बढ़ती रही,
देखा कैसा ग्रहण लगा अमावस की रात में?
रातें तो हैं सिलसिला आती-जाती रहती हैं,
हम उलझ के रह गये हैं कबके सवालात में?
सूर्य का पर्याय हूँ,आलोक लिये जलता रहा,
सवाल है तू मेरे लिए,मैं हूँ तेरे खयालात में।
*
0 टिप्पणियाँ
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.