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कभी ख्वाब बनते [कविता]- मनन कुमार सिंह

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कभी ख्वाब बनते,
फिर ख्वाबों की फेहरिश्त बनायी जाती,

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 मनन कुमार सिंह  रचनाकार परिचय:-



मनन कुमार सिंह संप्रति भारतीय स्टेट बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर मुंबई में कार्यरत हैं। सन 1992 में ‘मधुबाला’ नाम से 51 रुबाइयों का एक संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसे अब 101 रुबाइयों का करके प्रकाशित करने की योजना है तथा कार्य प्रगति पर है भी। ‘अधूरी यात्रा’ नाम से एक यात्रा-वृत्तात्मक लघु काव्य-रचना भी पूरी तरह प्रकाशन के लिए तैयार है। कवि की अनेकानेक कविताएं भारतीय स्टेट बैंक की पत्रिकाएँ; ‘जाह्नवी’, ‘पाटलीपुत्र-दर्पण’ तथा स्टेट बैंक अकादमी गुड़गाँव(हरियाणा) की प्रतिष्ठित गृह-पत्रिका ‘गुरुकुल’ में प्रकाशित होती रही हैं।

ख्वाब आजमाये जाते,
फिर ख्वाबे-जहां आजमायी जाती।

हकीकत हो हर ख्वाब अपना
ऐसी आस लगायी जाती,

दर-दर पे माथा टेकते,
देवालयों में चाहत दुहरायी जाती।

ख्वाब-ए-मुहब्बत मुश्तकबिल तेरा,
दिलों में पायी जाती,

अलौकिक सुर सरिता-सी,
शिद्दत से जमीं पर लायीजाती।
ख़ैरख़्वाहे-मुहब्बत कहाते,
दिल की जुबां पर लायी जाती?

सदियाँ गुजरीं,तेरा क्या,
यह बार- बार समझायी जाती ?

जुबां को थाम,
सांसें कम नहीं,
दूर इनकी दुहाई जाती।

दिल- दिल का तार पुराना,
उन के घर तकपुरवाई जाती।

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