गंगा धर शर्मा 'हिन्दुस्तान' (कवि एवं साहित्यकार)
अजमेर(राजस्थान)
अजमेर(राजस्थान)
चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.
चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.
इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.
है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.
गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.
हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.
जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.
ना सराहत की उसे कोई कसर होने को है.
है शिकायत , कीजिये लेकिन हिदायत है सुनो.
जो कबाहत की किसी ने तो खतर होने को है.
पा निजामत की नियामत जो सखावत छोड़ दे.
वो मलामत ओ बगावत की नजर होने को है.
शान 'हिन्दुस्तान' की कोई मिटा सकता नहीं.
सरफ़रोशों की न जब कोई कसर होने को है.
2 टिप्पणियाँ
ना सराहत की उसे कोई कसर होने को है.
जवाब देंहटाएंहै शिकायत , कीजिये लेकिन हिदायत है सुनो.
वाह, वाह सर...बहुत दमदार...
आदरणीय हंस साहब, आपके उत्साह-वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.