अविनाश कुमार
मूल नाम- विकास शर्मा
मूल निवासी- खतौली
जिला- मुजफफरनगर
मो0- 9045573791
मूल नाम- विकास शर्मा
मूल निवासी- खतौली
जिला- मुजफफरनगर
मो0- 9045573791
दिल के जज्बातो पर पहरा बैठाया है
लगता है ख्वाबों में कोई आया
जिसने चुपके से किसी ने दिल का दरवाजा खटकाया है [1]
मैं था हबीब तेरा !
तू ही नसीब मेरा !!
इससे पहले कि भर लेता तुझे आगोश मैं अपने !
तूने ही बना डाला मुझको रकीब तेरा !! [2]
हबीब-दोस्त, रकीब-दुश्मन
हर ओर गहरा सन्नाटा छाया है
दिल के जज्बातो पर पहरा बैठाया है
लगता है ख्वाबों में कोई आया
जिसने चुपके से किसी ने दिल का दरवाजा खटकाया है[3]
वे लोग जो कुछ पैसों के लिए अपना जमीर बेच देते है उनको धुतकरती एक मुक्तक
क्यों लहु भरा इन ऑखों में
क्यों बैचनी है ख्वाबों में
बस यही सोचता रहता हॅू मैं
जमीर ही मर गया इंसानों में[4]
कलाम किसी और का सुनाया नहीं जाता !
दिल अब किसी और से लगाया नहीं जाता !!
जब से पिये है,तेरी ऑखों के नशीले जाम !
पैमाना अब इन हाथों से उठाया नहीं जाता !! [5]
आज फिर ख्यालों पर तेरा पहरा हो गया
तु जो इक बार मुस्कुराई तो ये बंजर दिल हो गया
तूने जो इक बार पलकें उठाई
और उठाकर जो पलके झुकाई तो अविनाश तेरा हो गया
मेरा इश्क आवारा नहीं !ये दिल बेचारा नहीं !!
मिट जाऊॅ भले तेरी मोहब्बत मैं !
मगर तुझसे जुदा हो जाना गवारा नहीं !![7]
कुछ लोग कहते है कि तुम हो कौन हैं तुम्हारी है पहचान क्या !
मैं कहता हॅू उनसे कि ये सच है कि मेरी पहचान क्या!!
पर जिस दिन तुम मेरे दर्द ये जुड जाओगे!
तो ये भी जान जाओगे कि है अविनाश क्या!! [8]
जिसकी ऑखें चमके सितारों की तरह..................
जिसका हुस्न महके गुलाबों की तरह
जब वो हॅस दे तो ऑगन भी चहक उठे बुलबुलों की तरह
ऐ दोस्तो मेरा महबूब है अंधेरी रात में चिरागों की तरह............................[9]
मैं कई रातों से सोया न था !
कोई ख्वाब इन ऑंखों में संजोया न था !!
लगातार गिरी मुझपर कई आफतों की बिजलियॉं !
मगर मैं कभी रोया न था !![10]
आब-ए-तल्ख पीकर भी हंसता हॅू मैं !
ख्वाब बनकर तेरी ऑखों में बसता हॅू मैं !!
तू भी मोहब्बत करती है मुझसें !
यही मान हर रोज खुद ही को ठगता हॅू मैं !![11]
आज फिर चांद पूरा है
तेरे बिन मेरा हर ख्वाब अधूरा है
तेरे बिन अधूरे है रात और दिन मेरे
तेरे बिन मेरे ख्यालों का संसार अधूरा है [12]
मैं अब तेरा साथ ना दे पॉऊगा !
फिर हाथों में हाथ ना लें पॉऊगा !!
तु अब चाहें कितनी मोहब्बत कर मुझसें !
मैं बदले में तुझे वो प्यार ना दे पॉऊगा !! [13]
तेरे साथ जो बिताये पल बस वो ही सवेरा है
तेरे बिन जिया हर इक पल अंधेरा है
कभी तो पा सकॅूगा तुझको
बस यही ख्वाब मेरा है[14]
तेरे आने पर ये ऑंखें बोलती है और लब खामोश रहते है !
बस यही फसाना है अपनी मोहब्बत का !!
कि लबों से हम कुछ कह नही पाते !
और निगाहों की भाषा तुम समझ नहीं पातें !![15]
दिवाने हम है या नहीं ये तो खुदा जानता है
पर मुझे ये बेदर्द जहॉं पागल मानता है
कितना तडपा हॅू मैं तुझसे दूर होकर ये तो बस मेरा दिल जानता है
कितनी मोहब्बत है तुझसे ये मेरा दिल जानता है या तेरा दिल जानता है'[16]
कोई फरियाद मेरे दिल से तेरे दिल तक पहॅुंची तो होगी '
मेरे ऑंख से गिरे ऑंसू की खनक तेरे कानों तक पहॅुंची तो होगी
तन्हाई मैं कभी तू भी तो मेरे बारे में सोची तो होगीं
तू माने या ना माने मेरी तरह तू भी कभी तडपी तो होगी '[]17]
ख्वाबे-ए-मोहब्बत इन ऑंखों में कम नहीं......
तेरे इश्क में जलकर फना हो जाने का गम नहीं
आखिरी कतरा भी जलकर रोशन करे तेरी मोहब्बत को
इस जिन्दगी के लिए इतनी भी शोहरत कम नहीं............[18]
1 टिप्पणियाँ
इस कृति में व्यक्त भाव तो अच्छे हैं, लेकिन वर्तनी (स्पेलिंग) की त्रुटियां दिखती हैं जिन्हें सुधारा जाना चाहिए।
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