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होली - हाइकु, माहिया, सेदोका, तांका- [कविता]- सुशील शर्मा




WRITER NAMEरचनाकार परिचय:-


सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाध‍ि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं |

आपकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभ‍िन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश‍ित हो चुकी हैं।

आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं

1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009

इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |


1तांका -19- होली-सुशील शर्मा

होली बहार
फूला है कचनार
बाजे मृदंग
होली की हुड़दंग
गुलाल सतरंग

फागुनी प्यार
सपने सतरंगी
उड़े अबीर
साजन का आँगन
रंगों से सराबोर।

टेसू के फूल
सुगंध बिखराये
भीनी सी गंध
फागुन की दस्तक
पहुंची मन तक।

सेदोका-1
5 7 7 5 7 7 ( षट्पदी कुल 38 वर्ण )
होली- सुशील शर्मा

ब्रज की बाला
कान्हा ने रंग डाला
उमड़ा ब्रज गांव
उड़ा गुलाल
मस्ती भरी उमंग
सतरंगी चेहरे।

चुनरी लाल
कुमकुम केसर
होंठ रंगे गुलाबी
फागुन आया
मधुवन महका
लाल टेसू दहका।

होली आई रे
बौराई अमराई
भगोरिया नचाई
पलाशी रंग
साजन बरजोरी
चोली रंग भिगोई।

माहिया -1
(तीन पदी 12 ,10 ,12 मात्राएँ )
होली- सुशील शर्मा

रोम रोम सहर उठा
ये फागुनी हवा
तन मन में चढ़ा नशा।

आयो फागुन झूमत
ऋतु बसंत के साथ
तन मोहित मन हर्षित।

राधा खेलत होरी
ग्वालन बालन संग
श्याम करत बरजोरी।

हवा में बिखरे रंग
पीली चुनरिया
बुरांस के दरख्तों पर

रंग भरी पिचकारी
होली में मन भर
कपट कन्हाई मारी


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हाइकु -76
होली ,रंग ,गुलाल- सुशील शर्मा

कान्हा की होरी
संग है राधा गोरी
रंगी है छोरी।

होली के रंग
साजन सतरंग
चढ़ी है भंग।

हंसी ठिठौली
हुरियारों की होली
भौजी है भोली।

भीगा सा मन
प्रियतम आँगन
रंगी दुल्हन।

शर्म से लाल
हुए गुलाल गाल
मचा धमाल।

रिश्तों के रंग
ख़ुशी की पिचकारी
भौजी की गारी

राधा है न्यारी
सखियों के संग में
कान्हा को रंगा

मौर रसाल
दहके टेसू लाल
गाल गुलाल।

केसरी रंग
राधा के गोरे अंग
कृष्ण आनंद।

बृज की बाला
कान्हा ने रंग डाला
मस्ती की हाला।
गाल गुलाल
चुनरी भयी लाल
रंगा जमाल।


ब्रज की होरी
कान्हा रंग रसिया
मन बसिया

फागुन सजा
अब आएगा मजा
मृदंग बजा।

महंगे रंग
गरीब कैसे खेले
होली बेरंग।

सफ़ेद साड़ी
इंतजार करती
सत रंगों का

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