
देवी नागरानी
480 वेस्ट सर्फ स्ट्रीट, एल्महर्स्ट, IL-60126
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लोरी सुना रही है, हिंदी जुबाँ की ख़ुशबू
रग-रग से आ रही है, हिन्दोस्ताँ की ख़ुशबू
भारत हमारी माता, भाषा है उसकी ममता
आंचल से उसके आती सारे जहाँ की ख़ुशबू
भाषा अलग-अलग है, हर क्षेत्र की ये माना
है एकता में शामिल हर इक ज़बाँ की ख़ुशबू
भाषा की टहनियों पे हर प्राँत के परिंदे
उड़कर जहाँ भी पहुंचे, पहुंची वहाँ की ख़ुशबू
शायर ने जो चुनी है शेरो-सुख़न की भाषा
आती मिली-जुली सी उसके बयाँ की ख़ुशबू
महसूस करना चाहो, धड़कन में माँ की कर लो
उस अनकही ज़बां से, इक बेज़बाँ की ख़ुशबू
परदेस में जो आती मिट्टी की सौंधी- सौंधी
ये तो मेरे वतन की है गुलिस्ताँ की ख़ुशबू
दीपक जले है हरसू भाषा के आज ‘देवी’
लोबान जैसी आती कुछ-कुछ वहाँ की ख़ुशबू।
2 टिप्पणियाँ
जवाब देंहटाएंआ0 नांगरानी जी
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई --बधाई
सादर
आनन्द.पाठक
Aapka Bahut abhaar ise pas and Karne ke liye
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.