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हमारे इर्द-गिर्द [कविता] - डॉ महेन्द्र भटनागर

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 डा. महेंद्र भटनागर रचनाकार परिचय:-


डा. महेंद्रभटनागर
सर्जना-भवन, 110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर -- 474 002 [म. प्र.]

फ़ोन : 0751-4092908 / मो. 98 934 09793
E-Mail : drmahendra02@gmail.com
drmahendrabh@rediffmail.com



मेरे देश में
ओ करोड़ों मज़लूमो।
तुम्हें
अभी फुटपाथों से
छुटकारा नहीं मिला,
खौलते ख़ून के समुन्दर में
तैरते-तैरते
किनारा नहीं मिला।
बीसवीं शताब्दी के
इस आँठवें दशक में भी
सिर पर
खुला आसमान है,
नीचे
नंगी धरती।
सूनी निगाहें
ठण्डी आहें
विकलांग निरीहता
सर्दी, बरसात, आँधी।
मोटे-मोटे
खादीपोश
बदकिरदार
व्यापारियों-पूँजीपतियों,
मकान-मालिकों,
कॉलोनी-धारियों,
वकील-नेताओं के
मुँह में
यथा-पूर्व
विराजमान है-‘गाँधी’!
बँगलों और कोठियों में
दीवारों पर
टँगे हैं गाँधी।
(या सलीब पर लटके हैं गाँधी!)
तिकड़मी मस्तिष्क के
बद-मिज़ाज
नये भारत के ये ‘भाग्य-विधाता’
‘एम्बेसेडर’ में
धूल उड़ाते
मज़लूमों पर थूकते
मानवता को रौंदते
अलमस्त घूमते हैं,
किंचित सुविधाओं के इच्छुक
उनके चरण चूमते हैं।
मेरी पूरी पीढ़ी हैरान है।
नेतृत्व कितना बेईमान है।





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