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माँ [लघुकथा]- शबनम शर्मा

रचनाकाररचनाकार परिचय:-

शबनम शर्मा
अनमोल कुंज, पुलिस चैकी के पीछे, मेन बाजार, माजरा, तह. पांवटा साहिब, जिला सिरमौर, हि.प्र. – 173021 मोब. - 09816838909, 09638569237

आदत है हर रोज़ शाम को मन्दिर जाकर कुछ समय बिताने की। दिवाली थी उस दिन। पूरा दिन काफ़ी व्यस्त रही, शाम को भी काम खत्म नहीं हो रहा था। पर मन था कि एक चक्कर मन्दिर का काट आऊँ। जैसे-तैसे काम निबटाकर मैं मन्दिर चली गई। मन्दिर का पुजारी उस अहाते में ही छोटी सी कुटिया में रहता था। मन्दिर में माथा टेक कर मैं पुजारी जी के पास कुछ देने चली गई। देखा पुजारी जी घर में पूजा कर रहे थे व उनकी आँखों से बरबस आँसू टपक रहे थे। मैं भी जूते उतार कर धीरे से वहां बैठ गई। 5-10 मिनट बाद उन्होंने आँखें खोली। मुझे देखकर बोले, ‘‘माफ़ करना बिटिया, कुछ भावुक हो गया। देखो ये मेरी माँ की तस्वीर, मैं आज के दिन इसकी पूजा करता हूँ। आपको बताऊँ, हम 9 भाई-बहन थे, मेरा बाप शराबी था, दिवाली से 4 दिन पहले ही जुआ खेलने बैठ जाता था, मेरी गरीब माँ, फटे-पुराने कपड़ों में, प्लास्टिक की चप्पल पहने, कमज़ोर सी देह में लोगों के घरों में बासन माँजती, झाडू-फटका करती। इन दिनों लोग उससे बहुत काम लेते, घर साफ़ करवाते, कपड़े धुलवाते, बासन मंजवाते, फिर कहीं मिठाई का डिब्बा और 5 रू. देते। वह सारी थकान भूल जाती व सामान लाकर हमारे सामने खोलकर रख देती। हम सब भाई-बहन बिन कुछ महसूस किये खुष हो-होकर, शोर मचाकर खाते। बस हमारी दिवाली मन जाती। आज सब कुछ है पर माँ नहीं है।’’ कहकर वे फिर से रोने लगे।





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