
सुशील कुमार शर्मा व्यवहारिक भूगर्भ शास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक हैं। इसके साथ ही आपने बी.एड. की उपाधि भी प्राप्त की है। आप वर्तमान में शासकीय आदर्श उच्च माध्य विद्यालय, गाडरवारा, मध्य प्रदेश में वरिष्ठ अध्यापक (अंग्रेजी) के पद पर कार्यरत हैं। आप एक उत्कृष्ट शिक्षा शास्त्री के आलावा सामाजिक एवं वैज्ञानिक मुद्दों पर चिंतन करने वाले लेखक के रूप में जाने जाते हैं| अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में शिक्षा से सम्बंधित आलेख प्रकाशित होते रहे हैं |
आपकी रचनाएं समय-समय पर देशबंधु पत्र ,साईंटिफिक वर्ल्ड ,हिंदी वर्ल्ड, साहित्य शिल्पी ,रचना कार ,काव्यसागर, स्वर्गविभा एवं अन्य वेबसाइटो पर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपको विभिन्न सम्मानों से पुरुष्कृत किया जा चुका है जिनमे प्रमुख हैं
1.विपिन जोशी रास्ट्रीय शिक्षक सम्मान "द्रोणाचार्य "सम्मान 2012
2.उर्स कमेटी गाडरवारा द्वारा सद्भावना सम्मान 2007
3.कुष्ट रोग उन्मूलन के लिए नरसिंहपुर जिला द्वारा सम्मान 2002
4.नशामुक्ति अभियान के लिए सम्मानित 2009
इसके आलावा आप पर्यावरण ,विज्ञान, शिक्षा एवं समाज के सरोकारों पर नियमित लेखन कर रहे हैं |
माँ पर लघु कथाएं
माँ -1
मेरे कमरे की खिड़की पर चिड़िया जोर जोर से चिल्ला रही थी। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया किन्तु जब उसकी चिचियाहट बढ़ गई तो मुझे लगा कोई बात जरूर है। वह बार बार मेरे पास कर फिर खड़की पर बने घोंसले पर जा कर बैठ रही थी। मैंने पास जाकर देखा तो घोंसलें में उसका एक बच्चा मरा पड़ा था। मैंने जैसे ही उस बच्चे को उठाने की कोशिश की चिड़िया जोर जोर से चीखने लगी और मेरे हाथ पर अपनी चोंच मारी मैं घबड़ा गया किन्तु जैसे तैसे मैंने उस मरे
हुए चूजे को घोंसले से निकला। चिड़िया के लिए मन बहुत दुःख रहा था। मेरी पानी के आँखों में आंसू भरे थे। हमने पीछे बगीचे में ले जाकर उस चूजे का दाह संस्कार किये पीछे बगीचे तक चिड़िया जोर जोर से चीखती हुई हमारे पीछे आई और दाह संस्कार तक बहुत चीखी जैसे अपने बच्चे के लिए माँ बिलखती है। दोपहर को जब में सोकर उहा तो चिड़िया चुपचाप मेरे सिरहाने वाली खिड़की पर बैठी मेरी ओर एक तक देख रही थी। उसकी उस चुप्पी में कृतग्यता के भाव थे।
माँ -2
पिछले वर्ष मेरी बेटी का कक्षा 12 वीं का परीक्षा परिणाम आया था। अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होकर भोपाल के सबसे अच्छे कालेज में उसका दाखिला हो गया था।सब बहुत प्रसन्न थे किन्तु मेरी पत्नी और माँ उसी दिन से उदास हो गईं थी। आखिर वह दिन भी आ गया जब बिट्टो को भोपाल जाना था। वह अपना सामान बांध रही थी। बहुत प्रसन्न थी आज जीवन के आकाश में उसकी पहली उड़ान थी। दादाजी उसको निर्देश दे रहे थे। उसकी दादी गुमसुम एक कोने में चुपचाप बैठी थी। मेरी पत्नी किचिन में उसके लिए नाश्ते की तैयारी कर रही थी। मैंने किचिन में जाकर देखा तो उसका पूरा चेहरा आंसुओं से तर था। झर झर आंसू बह रहे थे। मैंने समझने की कोशिश की तो मेरी पत्नी के एक वाक्य ने मुझे निरुत्तर कर दिया।
"आप बाप हो माँ नहीं "
माँ -3
पड़ोस में रवि का मकान था ,पिता शिक्षा विभाग में क्लर्क थे। रवि १० वर्ष का होगा तब उनका देहवसांन हो चुका था।माँ ने गरीबी में पाला पोषा बड़ा किया। बड़े होने पर पिता की जगह अनुकम्पा नौकरी मिल गयी। अच्छे घर में शादी हुई सुन्दर बहु और बूढ़ी माँ के बीच कलह से रवि परेशान हो गया।रवि को परेशां देख कर माँ ने कहा "बेटा अब तुम बड़े हो गए हो कमाने भी लगे हो अपने अलग घर देखलो। "रवि माँ की मनस्थिति समझ रहा है बहु मजबूरी में माँ से अलग रहने लगा। माँ अपना पूरा खर्च पेंशन से चलती थी। अचानक रवि की दोनों किडनिया ख़राब हो गईं। इलाज में पूरा पैसा खर्च हो गया। रवि की हालात दिनोदिन बिगड़ने लगी। डॉक्टर ने कहा अब सिर्फ किडनी प्रत्यारोपण ही रवि की जान बचा सकता है इसके लिए कम से कम 15 लाख रुपये और किडनी की आवश्य्कता होगी। आखिर बहु दौड़ती हुई सास के पास पहुंची बोली मांजी मेरे सुहाग को बचा लीजिये। माँ सुनकर अचंभित एवं सकते में आ गई फिर उसने कहा "बहु तुम मत घबराओ मेरे होते हुए तुम्हारे सुहाग को कुछ नहीं होगा। अपना घर बेंच कर रवि की माँ ने रवि को अपनी किडनी दी। आज रवि की किडनी का सफल प्रत्यारोपण हुआ। माँ की किडनी पर बेटा जीवित हो उठा। माँ मृत्यु शैया पर मुस्कुरा रही थी।
माँ -4
आज 53 साल के बाद भी मेरी माँ की आँखे मेरे लौटने तक दरवाजे पर टिकी होती हैं।
आज भी सुबह से शाम तक कोई एक खाने की चीज माँ मुझे जरूर परोसती है।
आज भी ठण्ड के मौसम में चूल्हे पर बनी चने की रोटी मुझे जरूर खिलाती है।
आज भी गाड़ी पर बैठने पर पीछे से एक वाक्य जरूर सुनाई पड़ता है 'भैया गाड़ी
धीरे चलाइयो "
आज भी बीमार पड़ने पर लालमिर्च और राइ से माँ मेरी नजर उतरती है।
आज भी मेरे खाने के समय मेरी पत्नी को मेरी माँ का यह जुमला जरूर सुनना
पड़ता है 'अच्छे से नहीं परसा आज उसने कम खाया है "
आज भी बाहर जाने पर मेरी माँ मुझे 50 रूपये खर्च करने को देती है।
आज भी मेरी बात मनवाने के लिए पिताजी से बहस करती है।
आज भी इतना बड़ा होने के बाद लगता है उनका पांच साल का बच्चा हूँ।
2 टिप्पणियाँ
बहुत मनभावक कथाएं
जवाब देंहटाएंbahut aabhar aapka
हटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.